हास्य व्यंग्य

बिहार का विकास

६ सितम्बर’१५ यानी रक्षाबन्धन के बाद का रविवार और आज छुट्टी का दिन. खुशमिजाज मौसम में सभी मित्र इंडिया गेट के हरी-हरी दूब पर बैठ शाम के सूरज के ढलने का आनन्द ले रहे थे. खुली-खुली हवा और उस पर खुला-खुला वातावरण. बहुत दिनों बाद दिल्ली के भाग-दौड़ की जिन्दगी से निजात जो मिली थी. अभूतपूर्व आनन्द और उस पर मजाक का माहौल मस्ती के आलम को चरम पर पहुंचाए दे रहा था.
चर्चा चल गयी चुनाव की वो भी बिहार की. हमारे एक मद्रासी मित्र ने मजाकिए बिहारी मित्र विकास को आखिर छेड़ ही दिया.

शुरू-शुरू में विकास तो कुछ सहमा-सहमा सा रहता था, जब वह नया-नया दिल्ली के एक नामी-गिरामी कम्पनी में बतौर इंजीनियर काम पर लगा था और हमारे ही साथ वाले कमरे को किराए पर लिया था. पहले तो हम सभी उसे बिहारी कहकर चिढाया करते. मगर, अब तो विकास बिलकुल खुल चुका था और हर-दिल-अजीज बन चुका था. हम सभी लोग उसके हाजिर जबाबी के कायल थे. उसकी एक खासियत जबर्दस्त थी कि कभी भी बिहार की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देता. जबाब भी ऐसा कि सबकी बोलती बंद करा दे. इसलिए भी लोग अक्सर उसे छेड़ा करते. हंसी मजाक में माहिर इतना कि रोते को भी हंसा दे.

विकास ने भी मजाक में ही सही, लेकिन चेतावनी के मुद्रा में हिदायत देता हुआ बोला – आज के बाद बिहार के विकास से विकास की बात नहीं पूछना यार ! और भाषण की मुद्रा में बोलने लगा – “यूँ तो पूरे विश्व में और भारत देश के पूर्वान्चल में स्थित राज्य बिहार का बड़ा ही विशिष्ट, वरिष्ठ और गरिष्ठ स्थान रहा है. विश्व का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र है जहाँ बिहारी का वास न हो. प्राचीनता में भी राम-सीता को यहीं की भूमि ही रास आई. ज्ञान से अज्ञान तक, आरती से अजान तक, साधना से निर्वाण तक, भूत से वर्तमान तक हर हमेशा विश्व को आईना दिखाता ही रहा बिहार. आदिगुरू शंकराचार्य को भी एक बार घुटने टेकवाने वाला, भगवान बुद्ध को भी ज्ञान करानेवाला, सम्राट अशोक को भी वैरागी बनाने वाला रहा हमारा बिहार. शेर से लेकर बब्बर तक, ज़िंदा को पहुंचाए कब्बर तक, कालीदास से गब्बर तक, हींग से मुसब्बर तक सब में बिहार आगे रहा है और भविष्य में भी रहेगा.

ये तो हुई पुरानी बात. अब उपलब्धियां गिनाते हैं मंडल पार्ट-१ की. इस अवधि में इतना विकास हुआ कि विश्व का कोई भी देश उतना नहीं कर सका होगा, यहाँ तक कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, रूस, जर्मनी चीन भी नहीं. मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि विश्व के सभी देशों के विकास को मिलाकर जो पैमाना बनता हो उससे भी कहीं ज्यादे विकास किया है बिहार ने. जिसका साक्षात और जीता-जागता प्रमाण तो मैं स्वयं हूँ, जो बिहारी विकास के कारण यहाँ देश की राजधानी दिल्ली में आप सबों के बीच खूंटे की तरह खड़ा हूँ. है कोई विश्व का वैज्ञानिक जो मेरी तरह रूप-रंग और काठी का आदमी बना सके ? नहीं न ! तो फिर मान गये न बिहार के विकास को.

आगे सुनो बिहारी विकास के मुख से बिहार के विकास की गाथा. बेशक, दुनियाँ मंगल ग्रह पर आदमी भेज ले, दुनियाँ भर का ज्ञान सहेज ले, बेशक, चाँद पर भी दौड़ा ले आदमी. मगर, जानवर का चारा आदमी को खिलाकर मुख्य मंत्री के कुर्सी तक तो दौड़ा कर दिखा दे. तब मानूंगा विकास.

दुनियाँ में जंगल तो बहुत सारे देशों में होंगे मगर, कोई देश आज तक जंगलराज के सर्वश्रेष्ठ सम्मान से सम्मानित हुआ क्या ? बेशक लोग अपमान ही समझें, उसमें भी मान-सम्मान के साथ तमगा तो बिहार ने ही अर्जित की है . लोगों की सोच ही यही रही है कि “जिस भोज में मुझे निमन्त्रण नहीं उसमें बेशक पारा (भैंस) ही क्यों न मरे.” यानी “नहीं मिले तो अंगूर खट्टे हैं.”

और कितना विकास खोजते हो प्यारे भाईयो ! और जगह तो विद्यार्थी पढकर परीक्षा पास करते होंगे. हमारे बिहार में तो बिना पढ़े ही मन माफिक डिग्रीये ले लेते हैं. नहीं तो ठांय- ठांय की डिग्री तो रखले ही है.”

भाषण का क्रम बीच में ही तोड़ते हुए गुजरात के भीरु भाई ने विकास की उपलब्धियों को और गति दी और पूछ ही लिया – “अच्छा ये बताओ कि इतना सारी उपलब्धि तो मंडलराज पार्ट-१ में बिहार ने तरक्की की, तो अब मंडलराज पार्ट-२ में क्या करेगा ?”

भविष्य का उज्ज्वल खाका खींचते हुए विकास ने रफ्तार बढाई और कहा- “घबराईये नहीं. पार्ट-टू के लिए भी प्रयोग चल रहा है. बिहार के बड़े-बडे कागजी डिग्रीधारी मौसम वैज्ञानिक भिड़े पड़े हैं. प्रयोग में- कोई डंडा लेकर तो कोई झंडा लेकर, तो कोई झंडा-डंडा का फंडा लेकर, चंदा के धंधा तक, लंगडा लूल्हा से अंधा तक, बन्दर और बन्दा तक सभी, अभी तक के विकास से भी अधिक विकास के खोज में क्रियाशील हैं.

सबसे बड़ी खोज चल रही है – कुर्सी से मातमपुर्सी तक, काली-गोली गाय से जर्सी तक, क्रूरता से मर्सी तक, घूम-फिरकर कुर्सी तक. पेड़-पहाड़, मौसम बहार, लोहा-पत्थर, दानी-फक्कड, चक्कर-घन-चक्कर, खेत-खलिहान, भोर-विहान, कारीगर-वाजीगर, दरजी और रफ्फुगर तक को खाकर पचाने और खुद को बचाने के उपर रिसर्च चल रहा है. अगर खुदा न खास्ते प्रयोग सफल रहा तो विश्व के सारे वैज्ञानिक गाड पार्टिकल खोजते ही रह जायेंगे और हम बिहारी पूरे विश्व को ही चबाकर घोंट जायेंगे.

चल अब घर चल यार! रात हो गयी. खाना भी बनाना है. भाभी तुम्हारी रक्षाबन्धन पर जो मायके गयी अब तक वापस नहीं आई क्योकि भाईयों ने दादागिरी दिखाई और उसे अपने ही घर में बंधक बना लिया है और मुझसे फिरौती भी मांग रहा है भाई ! कहता है- छोटकू इस बार चुनाव में खड़ा होगा जल्दी से जल्दी पांच लाख का चंदा भेज दो नहीं तो तुम जानो और तुम्हारा काम. लगता है यहीं पुलिस में रिपोट लिखानी पड़ेगी. यहाँ तो भरोसा भी है थोड़ा-थोड़ा. मगर, वहां तो पुलिस भी है बिकी-बिकाई सब राम भरोसे ही चलता है भाई .”

बस, “जय बिहार-जय विकास” के नारे और धन्यवाद ज्ञापन के साथ सभी ने सभा विसर्जित हुई.

— श्याम “स्नेही” शास्त्री
गुरुग्राम, हरियाणा

श्याम स्नेही

श्री श्याम "स्नेही" हिंदी के कई सम्मानों से विभुषित हो चुके हैं| हरियाणा हिंदी सेवी सम्मान और फणीश्वर नाथ रेणु सम्मान के अलावे और भी कई सम्मानों के अलावे देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति से प्रतिष्ठा अर्जित की है अध्यात्म, राष्ट्र प्रेम और वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों पर इनकी पैनी नजर से लेख और कई कविताएँ प्रकाशित हो चुकी है | 502/से-10ए, गुरुग्राम, हरियाणा। 9990745436 ईमेल-snehishyam@gmail.com

2 thoughts on “बिहार का विकास

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा व्यंग्य !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    कभी गर्व कभी शर्म हम बिहारियों के हिस्से
    सिक्के के दोनों पहलु को पहलु में छिपाये

    रोचक आलेख

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