सामाजिक

बच्चे हमारे आचरण से सीखते हैं, उपदेश से नहीं

एक बार अपनी एक मित्र के घर जाने का मौक़ा मिला। मेज़बान मित्र ने अपनी नन्ही सी पोती से कहा कि आंटी को नमस्ते करो। सहमी हुई सी बच्ची ने मुँह फेर लिया। उसकी दादी ने बच्ची का मुँह मेरी ओर घुमाते हुए बच्ची से फिर कहा कि आंटी को नमस्ते करो। बच्ची ने नमस्ते नहीं करनी थी सो नहीं की। दादी ने बच्ची को डांटते हुए कहा, ‘गंदी बच्ची नमस्ते करना भी नहीं जानती, भाग यहाँ से।’ बच्ची रुआंसी सी होकर वहाँ से चली गई। बच्ची ने घर आए हुए मेहमान का अभिवादन क्यों नहीं किया इससे पहले ये सवाल उठता है कि क्या एक नन्ही बच्ची का घर आए हर एक मेहमान या आगंतुक का अभिवादन करना ज़रूरी है और वो भी जिस रूप में हम चाहें उसी तरह से? क्या बच्चों को इसी तरह से संस्कारित किया जाता है?

हम प्रायः बच्चों को इसी प्रकार से संस्कारित करने का प्रयास करते हैं। उन्हें कहते हैं कि ऐसा करो या ऐसा मत करो। सारे दिन उपदेश देते रहते हैं। बच्चा इन उपदेशों से दुखी सा रहता है। कई व्यक्ति ख़ुद तो मेहमान का यथोचित स्वागत अथवा अभिवादन नहीं करते लेकिन अपने बच्चों से चाहते हैं कि वो हर आने-जाने वाले का स्वागत व अभिवादन ठीक से करें। कुछ व्यक्ति न तो स्वयं मेहमानों की ठीक से आवभगत करते हैं और न अपने बच्चों से ही ऐसा चाहते हैं। दोनों ही स्थितियाँ अच्छी नहीं कही जा सकतीं। जहाँ तक बहुत छोटे बच्चों का संबंध है उनका बड़ों की ही तरह स्वागत या अभिवादन करना बिलकुल ज़रूरी नहीं। इसका ये अर्थ नहीं है कि वो आगंतुकों से मिलना-जुलना या उनका प्यार पाना नहीं पाना चाहते। वो भी सबसे मिलना-जुलना व उनका प्यार पाना चाहते हैं लेकिन अपने तरीक़े से। हो सकता है बच्चा संकोच कर रहा हो अतः नए लोगों अथवा मेहमानों से घुलने-मिलने के लिए उसे कुछ समय देना चाहिए। संकोच के समय बच्चे से बलपूर्वक कुछ करवाना उसे जिद्दी बनाना है।

बच्चों की अपनी दुनिया होती है। वो अपने ढंग से शुरूआत करना चाहते हैं। कई बार वो शब्दों से नहीं अपने कार्यों से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाना चाहते हैं। एक बार एक परिचित के घर गए। उनका बच्चा कभी बिस्कुट ला कर सामने रख देता तो कभी दूसरी खाने-पीने की चीज़ें और अपनी तोतली ज़बान में कहता कि आप तो तुछ था ही नहीं रए। क्या यह किसी अभिवादन से कम था? बच्चों का मेहमानों या आगंतुकों के लिए पानी या जलपान स्वयं ले जाने की ज़िद करना उनका अभिवादन ही तो है। आप मेहमानों के लिए पानी या नाश्ता वगैरा ले जाते हैं तो बच्चा भी ऐसा ही करने की कोशिश करता है। तो आप अपने बच्चों से मेहमानों का जैसा स्वागत या अभिवादन करवाना चाहते हैं वैसा ही आप स्वयं कीजिए। यदि आप में शिष्टाचार है तो बच्चा भी वही शिष्टाचार अपना लेगा। इसलिए बच्चों को अच्छे संस्कार देने के लिए माता-पिता व दादा-दादी को बच्चों से ज़िद करने की बजाय उनके सामने अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करना चाहिए। दुनिया में ऐसी कोई किताब या पाठ्यक्रम नहीं है जो बच्चों को शिष्ट, व्यवहारकुशल व नैतिक बना सके। दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, बड़े भाई-बहनों व अन्य नज़दीकी रिश्तेदारों से ही बच्चा शिष्टाचार व नैतिकता का पाठ सीखता है।

श्रीमती आशा गुप्ता