मुक्तक/दोहा

दोहे

कलम चली कविराय की, लय ललक आह्लाद
मुग्ध हुए श्रोता सभी, रचना बने अगाध ।।

रस छंदों की मापनी, रचना भाव बनाय
पहला अक्षर प्रेम का, शब्द सराहे आय ।।

बोली भाषा गांव की, माटी रखे सुगंध
सज्जनता अरु साधुता, बैठक में सत्संग ।।

धनी रहे साहित्य वो, जाने सकल जहान
शिल्प सृजन मन रहे, मिले मान सम्मान ।।

युवसुघोष साहित्य शा, बाढ़त दिन अरु रात
छाया का बटवृक्ष बने, दिन दिन हो विख्यात ।।

— महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ