कविता

जल ही जीवन है

बचपन से हमें याद दिलाती थी दादी नानी।
जितनी आवश्यकता हो, उतना ही खर्च करो पानी।।
बडे़ बूढ़ों की बात पर हमने कभी नहीं मानी।
पीने के पानी के लिए भी आज हो रही है परेशानी।।
तालाबों कुओं, नदियों में कम हो गया है पानी।
इंसान की आंखों में भी अब नजर नही आता पानी।।
पराए होते जा रहे अपनों की आखों में नहीं पानी।
अपने बने हुए परायों की आखों में दिखता है पानी।।
नदियों में हम हैं डाल रहे हमारा कूड़ा कचरा।
जल प्रदूषण गंभीर चुनौती है वर्तमान का खतरा।।
पर्यावरण प्रबंधन का आई.एस.ओ. 14001 करिए प्राप्त।
पर्यावरण संरक्षण के लिए उपाय करिए पर्याप्त।।
ईंधन ऊर्जा के साथ पानी की करिए बचत।
कम करनी होगी प्रति व्यक्ति पानी की खपत।।
प्रति व्यक्ति सौ लिटर प्रतिदिन पानी खर्च होता।
पांच लिटर पानी बचाकर भी प्यासों पर अहसान होगा।।
बाथरूम किचन के वेस्ट पानी का करिए सदुपयोग।
गार्डन सफाई में उपयोग कर कम कीजिए दुरूपयोग।।
खुले नल, रिसते, बहते, लीक होते पानी पर रहे ध्यान।
पानी की बचत से होगा तरसते लोगों पर एहसान।।
सागर के खारे पानी के निर्लवणीकरण के लिए लगाऐं संयंत्र।
समुद्र के पानी को पीने योग्य बनाने के लिए सीखें मंत्र।।
जल चेतना की क्रांति लाऐं यही करें सभी संकल्प।
जल है तो कल है पानी का नहीं है कोई विकल्प।।

दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी