क्षणिका

क्षणिकाएँ

‘ ख़त’

ये सूखे हुए पत्ते
मुहब्बत भरे ख़त हैं
जो कभी लिखे थे
बहार ने मौसम के नाम
पढ़ लिए, बीत गए
रीत गए तो
हटा दिए।
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‘डायरी’

डायरी के कुछ पन्ने
चहकते हैं, महकते हैं
और कुछ में है सीलन
आँसुओं की
कुछ ख़ामोश हैं
इंतज़ार में छुअन की
कि कोई अहसास तो
उन्हें भी मिलेगा।
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‘प्रकाश’

प्रकाश दीप में कहाँ था ?
त्याग का घी ही जला था।
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‘चाँद’
आधा, पौना चाँद देकर..
रात ने है बहला दिया…
पहुँच कहीं सके ही नहीं….
सफर सदियों तक चला किया…
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अनिता मंडा