कविता

कविता

बलात्कार की
कोई परिभाषा नही होती
होती है तो सिर्फ
रूहं तक कांपने वाली पीड़ा
ह्रदय को छलनी करने वाला घाव
जीते जी मर जाने वाली संवेदना
और स्वयं से हार जाने वाली
घृणित मंशा
क्या कुछ नही घट जाता
उस एक हादसे में
जो झंझोड़ कर रख देता है
सारा जीवन
अस्तित्व से लड़कर
कोनसी लड़ाई होती है
मगर ..
लाचार,,बेबस सी आहें
तलाशती रहती है
एक न्याय
जो
कभी साबित होकर भी
न मिले तो
अंतर्मन से टूट जाती है
नारी की वेदना
क्या उम्र निर्धारित होती है
बलात्कार करने की
अगर नही तो फिर
सजा के लिये कैसी उम्र ??
समझ नही पा रही मैं
अगर बचपनें मे हुई है
ऐसी हरकत तो
जवानी में क्या हाल होगा
ऐसे फैसलों से तो
कभी कोई बलात्कारी
न खौफ ज़दा होगा

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने ektasarda3333@gmail.com