राजनीति

महिला अधिकारों के नाम पर महातमाशा

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में भगवान शनि महाराज का पवित्र तीर्थ शनि शिंगणापुर है। जोकि षनि महाराज का अत्यंत लोकप्रिय पवित्र धार्मिक तीर्थस्थल है। यह एक ऐसा शनि मंदिर हैं जहां पर खुले में पूजा होती है। इस पवित्र मंदिर में विगत चार सौ वर्षों से भी अधिक समय से महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।यहां पर अभी तक ट्रस्ट का अध्यक्ष और पुजारीगण सभी पुरूष ही होते रहे हैं लेकिन विगत दिनों काफी समय के बाद यहां के ट्रस्ट का अध्यक्ष एक महिला अनिता शेटे को बनाया गया है। यहां पास ही में एक गांव है। जिसके बारे में आज भी कहा जाता है कि यहां पर चोरी आदि नहीं होती है इसलिये यहां के निवासी अपने घरों आदि में ताले नहीं लगाते है। यहां पर शनि अमावस्या व अन्य महत्वपूर्ण पर्वो पर भारी भीड़ उमड़ती है। लेकिन अब शनि शिंगणापुर विवादों के घेरे में आ गया है।विगत 26 जनवरी से यह बहस का कंद्र बन गया है। लगभग सभी दलों व मीडिया जगत के आधुनिकतावादी तथा विज्ञान को आधार मानकर धर्म को येनकेन प्रकारेण अपमानित करने वाले तथाकथित विकासवादी विलासिता में डूबे रहने वाले लोग व अपनी राजनीति को चमकाने वाली भूामता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई जैसे लोगो ने विवाद खड़ा कर दिया है।

पूरे देशभर में शनि विवाद को खड़ा करने वाली भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई की मांग है कि शनि मंदिर में भी महिलाओं को उसी प्रकार से पूजा करने का अधिकार दिया जाये जिस प्रकार से अन्य मंदिरों में मिला हुआ है। तृप्ति देसाई ने अपनी हक की आवाज को पुरजोर तरीके से उठाने का समय चुना 26 जनवरी का दिन आखिर क्यों ? तृप्ति देसाई ने अपनी मांग के समर्थन में शनि शिंगणापुर जाने का कार्यक्रम संभवतः 26 जनवरी को इसलिए चुना क्योंकि उन्हें इसकी आढ़ में केवल अपनी राजनीति चमकाने का अवसर मिल सके और अंतराष्ट्रीय जगत में भारत की छवि को महिला विरोधी साबित किया जा सके। तृप्ति देसाई का यह आंदोलन पहली नजर में महिला अधिकारों के समर्थन के आढ़ में असहनशीलता की राजनीति करने वालों को मुददा देने का एक असफल प्रयास था। यह हिंदू समाज की छवि को गहरा आघात पहुंचाने की सोची- समझी साजिश के तहत उठाया गया बेसिरपैर का मुददा है।

इस पूरे प्रकरण में सबसे सार्थक बात यह हुई है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने त्वरित कार्यंवाही करते हुए तृप्ति देसाई से मुलाकात करके उनका समर्थन कर दिया और अहमदनगर के डीएम से शनि शिंगणापुर के ट्रस्टयियों से मध्यस्थता करके रास्ता निकालने का आदेश दिया। दूसरी तरफ भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी और मुख्तार अब्बस नकवी सहित समस्त संघ परिवार , अखाड़ा परिषद ने भी भूमाता ब्रिगेड की मांग का समर्थन करके विपक्षी दलों की एक और साजिश को फिलहाल दबा दिया है। हालांकि शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की मांग को लेकर वहां की हाईकोर्ट में एक पीआईएल भी दायर हो गयी है। भूमाता ब्रिगेड का मंदिर में महिलाओं की पूजा करने का अधिकार मांगना तो सही लगता है लेकिन उन्होनें जिस समय यह मांग की है और जिस प्रकार से उठायी है उसमें संदेह और राजनैतिक साजिश की बूं नजर आ रही है। तृप्ति देसाई अपनी मांग ऐसे उठा रही हैं जैसे कि हिंदू समाज में हिंदू महिलाओं पर अभी भी पाबंदिया हैं। साथ ही कहीं उनका यह आंदोलन महाराष्ट्र में भाजपा- शिवसेना की सरकार को अस्थिर करने की साजिश का अंग तो नहीं हैं ? तृप्ति देसाई ने अपने आंदोलन को अभी तक उग्र रूप क्यों नहीं दिया था वे यह आंदोलन तो कांग्रेस की सरकारों के दौरान भी चला सकतीं थीं।

रही बात महिला अधिकारों पर तरह- तरह के आंदोंलनो की । अब शनि मंदिर में महिलाओं की पूजा के अधिकारों के बीच चल रही तीखी बहसों में एक प्रश्न यह भी सामने आ गया है कि क्या भूमाता बिगे्रड की तृप्ति देसाई मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं को पुरूषों के समकक्ष नमाज अदा करवाने का अधिकर दिलवाने के आंदोलन करेंगी? क्या तृप्ति देसाई मदरसों में मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा व बुर्का प्रथा के खिलाफ आंदोलन कर सकेंगी। आज उप्र ही नहीं देश के अनेक राज्यों में युवतियों के साथ बर्बर गैंगरेप हो रहे हैं उनकी हत्या हो रही है। क्या भूमाता बिग्रेड उन महिलाओं को न्याय दिलाने में सक्षम है।

अभी हाल ही पश्चिमी उप्र में कई युवतियों का गैंगरेप किया गया है और उनका वीडियो बनाकर उसे सोशल मीडिया में अपाधियों ने वायरल कर दिया। पीड़िता ने आत्महत्या कर ली और आरोपी मस्त हो गये इस पूरे प्रकरण में पुलिस पस्त हो गयी। सांप्रदायिक तनाव व्याप्त है। आज उन पीडिताओं के पक्ष में बोलने वाला उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं हैं। लेकिन यही तृप्ति देसाई आज अपनी राजनीति की रोटी सेकने के लिये तथा हिंदू धर्म व समाज को बदनाम करने के लिए बकवास कर रही हैं। अगर तृप्ति देसाई में जरा सा भी साहस बचा है तो मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों में प्रवेश को लेकर वह सड़क पर लोटकर आंदोलन करके दिखायें अगर नहीं तो उनका यह राजनैतिक स्टंट है। आजकल महिला अधिकार आंदोलन भी महातमाशा बनकर रह गया है। पश्चिमी उप्र सहित कई जिलों में महिलाओ के साथ दर्दनाक कांड हुए लेकिन कोई भी बड़ी महिला पत्रकार व सामाजिक संस्था ने अभी तक बड़े पैमाने पर आंदोलन नहीं किये। यह भी एक विशेष प्रकार की असहनशलता है जिसके नये पैमाने गढ़े जा रहे हैं।

शनि मंदिर में महिलाओं का प्रवेश एक ही शर्त हो कि तृप्ति देसाई केवल हिंदू महिलाओं के लिये नहीं अपितु इसी प्रकार मुस्लिम महिलाओं के लिए भी आंदोलन करें। नहीं तो यह तृपित का ढोंग है केवल ढोंग।

मृत्युंजय दीक्षित