लघुकथा

लघुकथा : विषपान

पार्सल खोला तो एल्बम था. पहला पृष्ठ पलटा. उसके मातापिता का फोटो था, “मुझे माफ़ कर देना. आप मुझे बहुत प्यार करते थे. हर छोटी बड़ी चीज का ध्यान रखते थे. मगर मैं ने आप के साथ धोखा किया.” आँख से आंसू टपक पड़े.

दूसरा पृष्ठ पलटा. यह उस के प्रेमविवाह का चित्र था, “मैंने आप को जीजान से ज्यादा चाहा है. इसके लिए मातापिता के अरमानों को बलिदान कर दिया.” कहते हुए उसने चित्र को चूम लिया.

तीसरे पृष्ठ पर अस्पताल का चित्र था. उसने पलंग पर सोई हुई पुत्री को देखा, “बेटी ! मैं तेरी इच्छा का भी ध्यान रखूंगी. ताकि तू मेरी तरह कदम न उठाने को मजबूर न हो,” कहते हुए उसे माँ की सूनी आँखें याद आ गईं.

चौथे पृष्ट पर पति का चित्र था, “अब मैं भी आप के साथ अमेरिका में सुख से रहूंगी.” उस की निगाहों में सपने तैरने लगे थे.

उसने अगला पृष्ठ पलटा. यहाँ कागज पर लिखा था ,”मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ. तेरे बिना रह नहीं सकता हूँ.” पढ़कर उस ने कागज चूम लिया, “मैं भी,” कहते हुए वह यादों में खो गई.

जब होश आया तो अगला पृष्ठ पलटा . वह चौंक गई. यहाँ पति दो बच्चे और एक औरत के साथ खड़े थे. “ये पहले से ही शादीशुदा थे,” वह एक झटके के साथ आकाश में उडती हुई जमीन पर आ गई. उसकी निगाहों के सामने मातापिता का सवाली चेहरा घूम गया.

दुनिया में उसका एक मात्र सहारा उसका पति था, वह भी धोखेबाज निकला. पास ही रस्सी पड़ी थी. उसने पंखे पर डाली. स्टूल पर चढ़ गई. तभी उस की बच्ची जोर से रो पड़ी.

“हे भगवान ! अब तो मेरे अमृत मंथन का विषपान मुझे ही करना पड़ेगा.” कहते हुए वह बच्ची से लिपटकर रो पड़ी और उस की निगाहें शंकर भगवान के गले पर अटक गईं। 

— ओम प्रकाश क्षत्रिय 

*ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

नाम- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जन्म- 26 जनवरी’ 1965 पेशा- सहायक शिक्षक शौक- अध्ययन, अध्यापन एवं लेखन लेखनविधा- मुख्यतः लेख, बालकहानी एवं कविता के साथ-साथ लघुकथाएं. शिक्षा-बीए ( तीन बार), एमए (हिन्दी, अर्थशास्त्र, राजनीति, समाजशास्त्र, इतिहास) पत्रकारिता, लेखरचना, कहानीकला, कंप्युटर आदि में डिप्लोमा. समावेशित शिक्षा पाठ्यक्रम में 74 प्रतिशत अंक के साथ अपने बैच में प्रथम. रचना प्रकाशन- सरिता, मुक्ता, चंपक, नंदन, बालभारती, गृहशोभा, मेरी सहेली, गृहलक्ष्मी, जाह्नवी, नईदुनिया, राजस्थान पत्रिका, चैथासंसार, शुभतारिका सहित अनेक पत्रपत्रिकाआंे में रचनाएं प्रकाशित. विशेष लेखन- चंपक में बालकहानी व सरससलिस सहित अन्य पत्रिकाओं में सेक्स लेख. प्रकाशन- लेखकोपयोगी सूत्र एवं 100 पत्रपत्रिकाओं का द्वितीय संस्करण प्रकाशनाधीन, लघुत्तम संग्रह, दादाजी औ’ दादाजी, प्रकाशन का सुगम मार्गः फीचर सेवा आदि का लेखन. पुरस्कार- साहित्यिक मधुशाला द्वारा हाइकु, हाइगा व बालकविता में प्रथम (प्रमाणपत्र प्राप्त). मराठी में अनुदित और प्रकाशित पुस्तकें-१- कुंए को बुखार २-आसमानी आफत ३-कांव-कांव का भूत ४- कौन सा रंग अच्छा है ? संपर्क- पोस्ट आॅफिॅस के पास, रतनगढ़, जिला-नीमच (मप्र) संपर्कसूत्र- 09424079675 ई-मेल opkshatriya@gmail.com

8 thoughts on “लघुकथा : विषपान

  • लीला तिवानी

    शुक्र है बेटी ने ही बचा लिया. दोनों एक-दूसरे का सहारा बनेंगी.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा ! मैंने इसका शीर्षक ‘आइना’ से बदलकर ‘विषपान’ कर दिया है।

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा ! मैंने इसका शीर्षक ‘आइना’ से बदलकर ‘विषपान’ कर दिया है।

    • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

      आदरणीय विजय कुमार जी आप ने लघुकथा के शीर्षक में जो उम्दा बदलाव किया है उस के लिए दिल से आप का आभार .

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    उम्दा लेखन भाई

    • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

      आदरणीय विभा दीदीजी आप को लघुकथा अच्छी लगी. मेरा लेखन सार्थक हो गया. शुक्रिया आप का.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    दुख्मई लघु कथा ,बहुत अछे ढंग से लिखा है .

    • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

      आदरणीय गुरमेल सिंह जी आप का शुक्रिया. आप को लघुकथा अच्छी लगी. मेरी मेहनत सार्थक हो गई.

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