बाल कहानी

हम चींटी की तरह बन क्यूँ नहीं बन जाते…!

एक पेड़ पर एक कौवा रहता था और पास ही एक पेड़ पर एक चिड़िया का घोंसला था। कौवा बहुत शैतान था अक्सर चिड़िया को सताया करता था। चिड़िया कमजोर होने के कारण कुछ कह नहीं पाती थी और अपने घोंसलें में दुबक कर बैठ जाती थी।एक दिन तो कौवे ने चिड़िया का नया गिलास चुरा ही लिया जो वह पानी पीने के लिए खरीद कर लाई थी। चिड़िया ने कौवे की बहुत मिन्नत की, पर वो शैतान नहीं माना। हार कर चिड़िया ने उसको सबक सिखाने की ठानी। आखिर वह कब तक उसके जुल्म सहती। उड़ कर वह एक लकडहारे के पास पहुंची और सारी बात बता कर बोली “भाई तुम उस पेड़ को ही काट दो नहीं तो काटने का उपक्रम ही करो ! मैं कौवे के आतंक से बहुत परेशान हूँ !”

लकडहारे ने उसे डांट कर भगा दिया कि  वो ऐसे फालतू काम नहीं करेगा।

चिड़िया भी नाराज़ हो कर सीधे राजा के पास पहुँच गयी।  सारी बात बता कर बोली “राजा जी ; आप लकडहारे को जेल में डाल दीजिये वो मेरी बात नहीं सुनता !”

राजा कहाँ सुनने वाला था चिड़िया की बात, सो वह वहां से भी निराश हो गयी और रानी के पास जा पहुंची।

उसे भी सारी बात बता कर बोली “रानी जी ;आप राजा जी से रूठ जाइये वो मेरी बात की सुनवाई नहीं करते ! “.

रानी अपने राजा से क्यूँ रूठती  भला; वो भी चिड़िया की  शिकायत पर …!

अब चिड़िया चुहिया के पास जा पहुंची सारी बात बता कर बोली “चुहिया रानी , तुम रानी के के सारे अच्छे-अच्छे कपडे कुतर दो,वह राजा जी से नहीं रूठती !”.

चुहिया ने भी उसकी बात नहीं मानी, बस चुप-चाप मूंगफली कुतरती रही।

चिड़िया अब बिल्ली के पास पहुंची और फिर से सारी बात समझाई और बोली “बिल्ली रानी तुम चुहिया को खा जाओ !”.इस पर बिल्ली उस पर पंजा मारती हुई सी बोली पहले तो तुम्हें ही क्यूँ ना खा जाऊं !”.

चिड़िया फिर भी नहीं हारी और वो कुत्ते के पास जा पहुंची और अपनी बात समझाते हुए कहा “भाई तुम जरा बिल्ली पर जोर से भोंको ना ..!वह मेरी बात नहीं सुनती और मुझे ही खा जाने की बात करती है !”

कुत्ता कुछ ना बोला और बस चिड़िया को घूरता रहा।

अब चिड़िया डंडे के पास पहुँची  और  उसे कहा कि  वो कुत्ते पर वार करे ! लेकिन  डंडा भी चुप रहा।

चिड़िया आग के पास पहुंची और सारी बात समझाते हुए और अब तक हुए अन्याय की बात बताते हुए बोली “आग ,तुम डंडे को जला दो !”.

आग भी शांत हो कर जलती रही वह भी अन्याय और कुशासन  पर नहीं भड़की।

इस पर चिड़िया नदी के पास पहुंची और बोली “नदिया ,तुम आग को बुझा दो !”.

नदी के कारण पूछने पर उसने सारी बात बता दी तो नदी भी बस अनसुनी कर बहती रही !

अब चिड़िया खीझ कर हाथी के पास पहुँच कर बोली “हाथी दादा ;तुम नदी का सारा पानी पी जाओ !”और सारी वस्तुस्थिति बताई .

पर हाथी ने तो उसे ही चुप करवाया और बोला तुम कहाँ -कहाँ घुमोगी कोई भी नहीं सुनेगा तुम्हारी …जाओ नया गिलास ही ले आओ।

चिड़िया रो ही पड़ी और निराश हो गयी …इतने में उसको एक नन्ही सी,बारीक़ सी आवाज़ आयी “चिड़िया रानी ,तुम क्यूँ रो रही हो ! क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकती हूँ !”. चिड़िया ने निराशा भरे शब्दों में कहा “नहीं तुम क्या करोगी मेरे लिए, तुम तो नन्ही सी चींटी हो मेरे क्या काम आओगी ?”. चींटी बोली “तुम बताओ तो ,क्या मालूम कोई काम आ ही जाऊं !”.

चिड़िया ने शुरू से आखिर तक अपने साथ हुए जुल्म और अन्याय की बात बतला दी…चींटी ने उसे सांत्वना देते हुए कहा “चलो मेरे साथ मैं हाथी की सूंड को काट खाऊँगी !”…हाथी ने जब  चिड़िया के साथ चींटी को आते देख समझ गया कि  अब उसकी खैर नहीं और बोला “मैंने कब मना किया था,चलो अभी नदी के पास !”.

नदी भी यह देख घबरा गयी और आग को बुझाने चल पड़ी। आग यह देख डंडे पर भड़क गयी और डंडा भी कुत्ते की तरफ चल पड़ा।

डंडे को देख कुत्ता जोर-जोर से भौंकने लगा उसे सुन बिल्ली भी डर गयी और चूहे की तरफ भागी और चूहा दौड़ कर रानी की अलमारी की तरफ लपका।

रानी बोली “अरे मैं तो आज ही राजा से रूठ जाउंगी ! “.

जब राजा ने सुना तो वो भी घबरा गया और तुरंत लकडहारे को बुला कर  पेड़ काट देने का आदेश दिया .

लकडहारे के पेड़ के पास पहुँचते ही कौवा, चिड़िया के पास उसका गिलास लेकर पहुँच गया और माफ़ी मांगते हुए बोला “मुझे माफ़ कर दो चिड़िया रानी और पेड़ मत कटवाओ , नहीं तो कितने ही पंछियों के घर उजड़ जायेंगे !”.

चिड़िया को दूसरों के घर उजड़ने में कोई ख़ुशी थोड़ी मिलनी थी. उसने भी कौवे को माफ़ कर दिया।

यह तो कहानी की बात थी जो मुझे बचपन में बहुत पसंद थी कि कैसे एक छोटी सी चींटी ने एक चिड़िया को इन्साफ दिलाया। अब  भी सोचती हूँ कि एक छोटी सी चींटी में शारीरिक बल नहीं होने के बावजूद आत्म बल के बल पर चिड़िया की मदद की। फिर हम सब यानि आम  जनता जो बुद्धिबल और आत्म बल दोनों से भरपूर है हम चींटी की तरह बन  क्यूँ नहीं बन जाते …!

— उपासना सियाग

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।

One thought on “हम चींटी की तरह बन क्यूँ नहीं बन जाते…!

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कहानी !

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