कविता

व्यथा

 

ब्यथा अपने मन की
बताऊ तो किसे
बताती भी हू तो
बताकर क्या करू
आज के इस दौर मे
उलझन ही भरा जगत मे
उलझन को सुलझाने मे
मदद गार किसे बनाऊ
हर मोड पर बेखौख
खड़ी सी हो गई
अपनो से जुदा होकर
गैरो सें जुड गयीं
ये समय न जाने किस
मोड पर ला दी
हर दर्द को छुपाकर
मुस्कुराने का राज बता दी|

— बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।

2 thoughts on “व्यथा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कवितायें !

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कवितायें !

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