कविता

“शोकहर छंद”

आज मजदूर दिवस पर सभी मजदूर भाई बहन को सादर प्रणाम, एवं हार्दिक बधाई

मजदूरों की मज़बूरी को, समझो भी अब दाता जी
देखों बच्चे झुलस रहे हैं, उनके तुमहि विधाता जी।।
कुछ तो सोचो बिगड़ रहा है, भूखा बचपन मरता है
ऐसी भी तो हाल नहीं है, मजदूरी क्युं करता है।।
कल करखाने किसके बूते, बनते तो तुम ही राजा
नियति तुम्हारी कैसी देखों, बजा रहे फिर भी बाजा।।
कहते हो मजदूरी मंहगी, रोब दिखाते मनमानी
रहते वक्त सम्हल तुम जाओ, करो न अब भी नादानी।।
स्वस्थ रहेगा पुर्जा पुर्जा, यदि रहे मजदुर निहाला
उत्पादन भी अच्छा होगा, होगी स्वस्थ पठशाला।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ