संस्मरण

मेरी कहानी 132

पिंकी की शादी हुए एक वर्ष बीत चुक्का था और रीटा ने भी बीटैक कर लिया था और उसे कालज से फार्ग होते ही टीएसबी बैंक में जॉब की ऑफर आ गई जो उस ने उसी वक्त स्वीकार कर ली। बैंक भी टाऊन सेंटर में ही थी और जाना आना भी कोई मुश्किल नहीं था और रीटा की एक क्लास फैलो भी कुछ दिन हुए यहीं काम पे लगी थी। शुरू में कुछ मुश्कलें रीटा को आईं लेकिन जल्दी ही उस ने सब कुछ समझ लिया और अपने काम में पर्सन रहने लगी। कभी मैं उसे छोड़ आता और कभी वह बस पे चली जाती।

अभी कुछ महीने ही हुए थे कि एक दिन बुआ और निंदी आये। बुआ ने कुलवंत को बताया कि उन की निगाह में एक अच्छा लड़का है और खानदान भी अच्छा है, सिर्फ एक ही बात है कि लड़के का पिता ड्रिंक बहुत करता है लेकिन शरीफ इतना है कि उन के सारे खानदान में इतना शरीफ कोई नहीं है। सुन कर मुझे कुछ धक्का सा लगा क़्योंकि अभी एक साल ही तो हुआ था पिंकी की शादी को। ऐसे तो घर में एक दम हम अकेले पढ़ जाएंगे, मैं सोचने लगा। कुलवंत ने मुझे कहा कि शादी तो हम ने एक दिन करनी है ही, अगर रिश्ता अच्छा मिल जाए तो जल्दी क्या और देर क्या। फिर हम ने रीटा से बात की तो उस ने कहा कि वह लड़के से मिलकर ही कुछ बता सकती थी।

इस के कुछ हफ्ते बाद ही लड़का और उन के माता पिता हमारे घर ही आ गए, लड़के के दादा जी भी साथ ही थे। चाय पानी के बाद रीटा और कमलजीत को आपस में बात करने का अवसर दिया गया। कुछ देर बाद जब वह दोनों हमारे पास आये तो हम ने रीटा को अकेले में पूछा कि उस को लड़का पसंद था या नहीं। रीटा ने कहा कि बेछक कमलजीत कुछ साँवले रंग का है लेकिन सुभाव में हमारे खानदान जैसा ही है। यह बातें बुआ ने पहले ही हमें बता दी थी कि इस खानदान में सभी बच्चे बहुत अच्छे हैं और लगता था कि इन को इंगलैंड की कोई हवा ना लगी हो, इंडिया में ही रहते हों। रीटा और कमलजीत दोनों के हाँ कहने पर कमलजीत के दादा जी ने रीटा को उसी वक्त शगुन दे दिया और बात पक्की हो गई।

अपनी बहन सुरजीत कौर और गियानों बहन को हम ने बता दिया और वह बहुत खुश हुए और सभी हमें वधाइयां देने लगे कि हम युवावस्था में ही कबीलदारी की ज़िम्मेदारी से फार्ग हो जाएंगे। अब फिर से वह ही तैयारियां होने लगीं लेकिन अब की बार खाना हम ने किसी हाल में देने का मन बना लिया था और हमारे समधी मंगल सिंह जी की भी यही इच्छा थी ख़ास कर कमलजीत के दादा जी की। कमलजीत के दादा जी तो इतने अच्छे थे कि शादी के बाद कभी मैं देर से उन्हें मिलने आता तो मुझे झिड़कते कि मैं उनको मिलने के लिए इतनी देर क्यों लगा देता हूँ। वह अब नहीं रहे लेकिन आख़री दम तक वह मेरे गाए धार्मिक गीतों की टेप को सुनते रहे। मैं कोई इतना अच्छा गायक तो नहीं हूँ लेकिन जितना भी मुझे गाना आता था रोज़ हारमोनियम से गाता रहता था और कभी रिकार्ड भी कर लेता था । एक बात और भी थी, कि कमलजीत के दादा जी 90 के ऊपर थे, उनके घुटने नकारा हो चक्के थे, इस लिए सारा दिन अपने कमरे में बैठे रहते या पंजाबी के अखबार पड़ते रहते या मेरी टेप सुनते रहते।

मेरे छोटे भाई तब इंडिया में ही रहते थे और मेरी इच्छा थी कि वह भी रीटा की शादी अटैंड करे। निर्मल बहुत दफा इंग्लैण्ड आने की कोशिश कर चुक्का था लेकिन उस को वीज़ा मिल नहीं रहा था। फिर जब एक खत में उस ने लिखा कि इंगलैंड का पानी उस की किस्मत में नहीं है तो मुझे एक आईडीआ सूझा। मैंने एक लैटर ब्रिटिश हाई कमिश्नर ऑफ इंडिया दिल्ली को लिखा कि मैं अपनी बेटी रीटा को उस की शादी पर एक सरप्राइज़ देना चाहता था। मैंने लिखा कि मेरी बेटी ने मेरे भैया को तब का देखा हुआ था जब वह बहुत छोटी थी। मैं एक ब्रिटिश पासपोर्ट होल्डर था जिस का नमबर यह और यह पीटरबरह से इस डेट को इशू हुआ था, कृपा उन को कुछ दिन के लिए आने की इजाजत दे दी जाए। मुझे पता था कि अगर वीज़ा मिल गया तो यह छै महीने के लिए ही होगा। मैंने निर्मल की सारी डिटेल भी पहले ही लिख दी थी। निर्मल जब दिली इंटरवयू के लिए गया तो उन्हों के पास मेरी सारी डिटेल तो पहले ही मौजूद थी, उन्होंने उसी वक्त वीज़ा लगा दिया।

इधर तो हम शादी की तैयारियां कर रहे थे और उधर गियानों के पति भैया अर्जुन सिंह की छाती में पानी भर गया। एमरजैंसी उन को हसपताल में भर्ती कराया गया और तुरंत उन का औपरेशन करना पड़ा। कुछ दिन हसपताल में रह कर वह घर आ गए और हम से हंसने लगे कि एक नर्स ने इधर से पकड़ा एक ने उधर से पकड़ा और उनको ढा लिया। ऐसे बहुत सी बातें उन्होंने कहीं और धीरे धीरे वह अच्छे होने लगे। इसी दौरान उन के लड़के बलवंत जसवंत अक्सर हमारे घर आते रहते और हम उन से मशवरा करते रहते। गर्मिओं के दिनों में शादियां बहुत होती हैं और इन दिनों हाल मिलने मुश्किल हो जाते हैं। उन दिनों बड़े होटलों में डिनर देने का रिवाज़ नहीं था।

सिटी कौंसल के दफ्तर में एक दिन मैं गया और पता कर लिया कि जिस तारीख को रीटा की शादी थी, उस दिन पैंडीफोर्ड हाई स्कूल का हाल खाली था यानि कि कोई बुकिंग नहीं थी। मैंने उसी वक्त डिपॉज़िट दे दिया और एक सरदर्दी खत्म हो गई। इस के बाद खाने बनाने के लिए इस दफा अपने एक दोस्त की मिठाई की दूकान में गया। मेरे यह दोस्त पहले बसों में मेरे साथ काम किया करते थे और अब उसने काम छोड़ कर यह काम शुरू कर दिया था, उस के बेटे भी साथ थे। यह थे मिस्टर वर्मा और इन्होने अभी दो साल पहले ही यह काम DIOMOND FOOD के नाम से शुरू किया था।

जो जो उस ने सप्लाई करना था, मुझे बहुत अच्छा लगा। उन्होंने खुद ही हाल में खाना डिस्पोजेबल ट्रेओं में डालना था और हमारे लड़कों ने महमानों को सर्व करना था। आखर में उन्होंने खुद ही सब बर्तन ले जाने थे और हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं थी। बीयर सप्लाई के लिए मैं ब्लॉक्सविच चले गया। जब कभी मैं वालसाल गैरेज में काम किया करता था तो बीअर की दूकान इस गैरेज के साथ ही होती थी, तब से मैं इस शख्स जिस को बौब कहते थे, जानता था। बॉब के साथ सारी सैटलमैंट हो गई। उस ने सीधा हाल में आकर बीअर के बैरल के साथ पंप फिट कर देने थे और चार सौ ग्लास ले आने थे। यह बड़े काम हो गए थे।

इसी दौरान बहन गियानों के पति भैया अर्जुन सिंह ज़्यादा बीमार पढ़ गए और हम सभी फिकरमंद होने लगे। जिस गुर्दुआरे में शादी की रसम होनी थी, उस गुर्दुआरे में भैया अर्जुन सिंह जी ने बहुत काम किया था और उनका सभी सत्कार करते थे। एक दिन मैं और भैया अर्जुन सिंह गुर्दुआरे में जा कर प्रधान से मिल कर शादी के बारे में सब कुछ फिक्स कर लिया था और दुःख की बात यह है कि इस के बाद भैया जी कभी गुर्दुआरे में नहीं जा सके। कुछ दिन बाद मेरे भाई निर्मल का टेलीफोन आ गया कि वह इस तारीख को आ रहा था। मैं और कुलवंत उस दिन हीथ्रो एअरपोर्ट पर जा पहुंचे। निर्मल हमें देख कर खुश हो गया और हम उसे घर ले आये।

निर्मल के आने से घर में रौनक हो गई। शादी में अभी काफी समय रहता था और मैं रीटा और कुलवंत काम पर जाते थे। घर में निर्मल अकेला बोर ना हो जाए, इस लिए मैंने उस को लाएब्रेरी दिखा दी थी और सारा टाऊन का रास्ता भी दिखा दिया था। निर्मल अपने आप लाएब्रेरी में जा कर अख़बार या किताबें बगैरा पड़ता रहता और कभी टाऊन को चले जाता। मैं भी घर आता जाता ही रहता था और कभी कभी मैं निर्मल को पिआज वाले पराठे बना कर खिलाता। पिआज वाले पराठे उस के पसंदीदा थे। कुछ देर बाद जब मैं और कुलवंत राणी पुर गए थे तो निर्मल की पत्नी परमजीत ने हमें बताया था कि एक दफा जब निर्मल के दोनों बेटे किसी बात को ले कर झगड़ रहे थे, जैसे बचपन में बच्चे झगड़ते हैं तो निर्मल उनको बोल रहा था कि “मेरा भाई इंगलैंड में इतनी उम्र का हो कर भी अपने हाथ से पराठे बना कर मुझे खिलाता था और तुम छोटी सी बात पर झगड़ रहे हो ” तुम्हें कुछ सीखना चाहिए और लड़ना झगड़ना नहीं चाहिए।

शादी के दिन नज़दीक आ रहे थे और इधर भैया अर्जुन सिंह चारपाई पर पड़ गए थे, कैंसर की नामुराद बीमारी ने उन पर हमला कर दिया था। कुछ समय पहले जो उन की छाती में पानी भर गया था और ऑपरेशन हुआ था, वह ठीक नहीं हुआ था और कैंसर सैल शरीर में फ़ैल गए थे । भैया अर्जुन सिंह काफी तगड़े थे और उन्हें कभी बीमार देखा ही नहीं था। अब भी वह जब चारपाई पर पड़े थे तो हमारे साथ हंस हंस कर बात कर रहे थे कि कुछ दिनों की बात है वह जल्दी ठीक हो कर शादी के सारे काम करेंगे।

शादी के कार्ड इस दफा पिंकी के पति चरनजीत ने प्रिंट किये थे क़्योंकि वह प्रिंटिंग का काम ही करते थे। जो नज़दीकी रिश्तेदार थे उन को हम खुद उन के घर जा कर कार्ड दे आये थे और अन्य रिश्तेदारों को पोस्ट कर दिए थे। फिर से घर में रौनक होने लगी और इस दफा निर्मल का साथ होने से हमें बहुत हौसला था। बहादर और कमल भी बीच बीच आ जाते। पिंकी की शादी के वक्त मुझे हर दम फ़िक्र रहता था लेकिन इस दफा मैं निश्चिंत था। लगता था जैसे खुदबखुद सब काम हो रहे थे। टैंट फिर लग गया, गोगले पकौड़े मठीआं शकरपारे सीरनी बनने लगे।

धीरे धीरे महमान आने शुरू हो गए और एक दिन हल्दी की रसम के साथ ही स्त्रीओं के लोग गीत शुरू हो गए। सुसराल से पिंकी भी कुछ दिन पहले आ गई थी। जिस दिन चूड़े की रसम थी, उस दिन मैं भैया अर्जुन सिंह को मिलने गया। उदास नज़रों से उन्होंने मेरी तरफ देखा और रो पड़े। उन के वह शब्द मुझे आज तक नहीं भूले,” रीटा की शादी हो रही है और मैं बदकिस्मत यहां पड़ा हूँ “, सुन कर मेरी आँखों में भी आंसूं आ गए। कुछ देर बैठ कर मैं आ गया।

आज फिर हमारे महमान नानकी छक लेकर हमारे दरवाज़े पर खड़े थे। औरतें एक दुसरे की तरफ जोक्स के तीर छोड़ रही थीं और फिर हंस पड़तीं। कुछ समय बाद सभी भीतर आ गए और सभी भाई रीटा को चूड़ा पहनाने लगे। हम बाहर टैंट में बैठे गप्पें हांक रहे थे। लेकिन एक बात हमेशा मेरे दिल में रही है कि बलवंत जसवंत और उन की पत्नीआं हंस हंस कर सब काम कर रही थीं जब कि उधर उन के डैडी, भैया अर्जुन सिंह चारपाई पर पड़े थे। इस बात को मैं कभी भी भूल नहीं पाया हूँ, समय समय पर विचारों में अंतर् आ सकता है लेकिन यह मैं कभी नहीं भूलूंगा कि इस गियानों बहन के खानदान ने हमारे सगों से ज़्यादा हमारा साथ दिया है। सुबह को उसी गुर्दुआरे रामगढ़िया बोर्ड में शादी की रसम होनी थी। गुर्दुआरे जाने से पहले हम ने सोचा कि भा जी अर्जन सिंह को किसी तरह वील चेअर में बिठा कर गुर्दुआरे में ले जाएँ और उन की एक फुफड़ की मिलनी करा दें। मैं और बलवंत गए लेकिन भा जी इतने तंदरुस्त नहीं थे, वह फिर रो पड़े। उदास हुए हम वापस आ गए।

अब की बार मैरेज की रेजिस्ट्रेशन गुर्दुआरे में ही हो जानी थी। बरात बर्मिंघम से ही आणि थी, इस लिए जल्दी ही पहुँच गई थी । गुर्दुआरे के बड़े दरवाज़े पर अब फिर लड़कियां बारात के स्वागत के लिए खड़ी थीं और कुछ हंसी मज़ाक के बाद बरात को अंदर आने दिया गया। मिलनी की रस्म शुरू हो गई और आज मैं अपने दूसरे समधी सरदार मंगल सिंह के गले में हार डाल रहा था। मिलनी के बाद बरात को ब्रेकफास्ट दिया गया और कुछ देर बाद सभी ऊपर के हाल में आने लगे। इस दफा भी ज़्यादा वक्त नहीं लगा। आनंद कारज के बाद यहीं बैठे बैठे मैरेज रिजिस्ट्रार ने रीटा और कमलजीत की OATH की रसम कर दी और मैरेज सर्टिफिकेट उसी वक्त दे दिए।

गुर्दुआरे की सारी रस्में होने के बाद सब सीधे पैंडीफोर्ड हाई स्कूल के हाल में जाने लगे। पैंडीफोर्ड स्कूल का हाल तकरीबन तीन मील दूर था। जब हम रीटा को ले कर वहां पहुंचे तो सारा हाल महमानों से भरा हुआ था और हर चीज़ एक दम सैट थी। मिऊजीकल बैंड वाले लड़के अपने साज सुर कर रहे थे। बीअर वाले ने बीअर के पम्प फिट कर दिए थे और ग्लास भर रहा था और लड़के महमानों के आगे रख रहे थे। अब गाने शुरू हो गए थे। कुछ रस्मों के बाद केक काटने का वक्त आ गया। यूं ही कमलजीत और रीटा ने केक काटा, पटाखे और कॉन्फैटि की बारिश शुरू हो गई। शैम्पेन की बोतल कमलजीत ने खोली और बोतल की झाग दूर दूर तक फ़ैल गई और साथ ही शोर मच गया और डांस शुरू हो गया।

मंगल सिंह और उन के सभी साथी पीने के शौक़ीन थे। मंगल सिंह के पिता जी जिन को मैं मासड जी कह कर बुलाता था, मुझे इच्छारा करके मुझे बुलाते और कहते, ” गुरमेल सिंह ! इस ग्लॉसी से एक घूँट पी ले “. मैं कहता, “मासड जी! मैंने तो सारे काम करने हैं, इस लिए प्लीज़ रहने दो “,लेकिन उन की ज़िद को देखते हुए मैं एक सिप ले लेता। कुछ देर बाद वह फिर मुझे इच्छारा करते और मुझे अपने पास बिठा लेते और कहते, ” गुरमेल बेटा मैं बहुत खुश हूँ, कि रीटा अब हमारी बेटी हो गई “, कुछ देर बाद मैं उठ कर आ जाता लेकिन यह मासड जी का सच्चा प्रेम था जिस को बाद में मैंने जाना। मंगल सिंह भी वैसे ही हैं, जब भी मिलते हैं सगे भाईओं की तरह मिलते हैं।

अब डांस फ्लोर पर सभी नाच रहे थे। मैं कुलवंत और निर्मल सभी गर्म जोशी से नाच रहे थे। ख़ुशी ख़ुशी सारा शादी का समागम सम्पन हो गया और हम सब घर आ गए और विदाई की तैयारियां शुरू हो गईं। मंगल सिंह, मासड जी और उन के और करीबी सम्बन्धी टैंट में बैठे थे और चाए पी रहे थे। कुछ देर बाद रीटा गाड़ी में बैठ गई थी और सभी सखिआं उस से मिल रही थीं। कुलवंत मैं और निर्मल सभी रो रहे थे। इन आंसूओं में ख़ुशी और बिछुड़ जाने का मिश्रण ही तो था। गाड़ी आँखों से ओझल हो गई थी और हम उदास हुए भीतर आ गए थे। धीरे धीरे सभी अपने अपने घरों को चले गए और दूसरी सुबह को पिंकी और चरनजीत भी चले गए। कुछ दिन अजीब लगा और ज़िंदगी फिर से पटरी पर आ गई, हमारे समाज में इस को ही तो विधि का विधान कहते हैं।

चलता. . . . . . . . . . . .

 

8 thoughts on “मेरी कहानी 132

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। दूसरी बेटी रीता का विवाह संपन्न हुआ और इससे आप पिता के एक कर्त्तव्य व दायित्व से फ्री हो गए। आपको इस किश्त के लिए धन्यवाद कि आपने इन खुशियों में कई वर्ष बाद हमें भी शरीक किया। किश्त अच्छी लगी। धन्यवाद। सादर।

  • लीला बहन , एपिसोड पसंद करने के लिए धन्यवाद . आप तो हो ही जिसे पंजाबी में कहते हैं गुणों की गुथली . यहाँ चाह वहां राह तो आप ढून्ढ ही लेती हैं .

  • लीला बहन , एपिसोड पसंद करने के लिए धन्यवाद . आप तो हो ही जिसे पंजाबी में कहते हैं गुणों की गुथली . यहाँ चाह वहां राह तो आप ढून्ढ ही लेती हैं .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपकी यही हौसला अफ़ज़ाई तो हम सबका हिम्मत बन जाती है.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, जब-जब आप शादी का ज़िक्र करते हैं, हम भी कुछ खास करते हैं. आप हॉर्न्सबी लाइब्रेरी में फंक्शन था, वहां बहुत भारतीयों से मुलाकत हुई, पार्टी हुई, फोटोज़ हुए, बहुत मज़े किए. खुशी और ग़म से मिश्रित यह एपीसोड बहुत आनंददायक लगा. बधाइयां.

  • विजय कुमार सिंघल

    सदा की तरह बहुत रोचक संस्मरण, भाईसाहब !

  • विजय कुमार सिंघल

    सदा की तरह बहुत रोचक संस्मरण, भाईसाहब !

    • धन्यवाद विजय भाई .

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