गीत/नवगीत

गीत : हो तुम कहां ओ जाने जां…

ये नदियां ये बहारें और ये हुस्न परियां
चारों ओर फूल कलियां और नजारे
देख इनको याद आयी तुम्हारी सांझ सकारे
हो तुम कहां ओ जाने जां…

ये बुलबुल और तारे
जमीं पे फैले अनगिनत सितारे
वो खुशबू वो यादें जमीं पे उतारे
वो इस तरह का चलना मचलना
बार बार मन को संवारे
हो तुम कहां ओ जाने जां…

ये वर्षा ये पानी तेरे गेसुओं की रवानी
तुझे याद कर ये दिल यही पुकारे
वो मदमस्त आंचल तेरा आंखों में मुहब्बत का नूर प्यारा
चिलमन को हवा के देखा तो निकली न बहारें
हो तुम कहां ओ जाने जां…

पहाड़ों से आती मचलती हुई ये हवा
पुकारे यही हो तुम अभी जवां
बादलों की ये रवानी दिल को रुसवा कर गई
प्यार मोहब्बत में रुसवाई भर गई
बार बार दिल यही पुकारे
हो तुम कहां ओ जाने जां…

ये हवाओं के झोंके मुझे बिल्कुल न रोकें
तड़फती ये बिजुरियां मन को न टोकें
मन को कैसे समझाऊं कैसे बहकाऊं
ये दिल सांझ सवेरे यही पुकारे
हो तुम कहां ओ जाने जां…

संतोष पाठक 

संतोष पाठक

निवासी : जारुआ कटरा, आगरा