संस्मरण

मेरे पापा

आज पापा नहीं हैं ।जब थे तब हैप्पी फादर्स डे कहने का चलन नहीं था लेकिन मेरे पापा खुश रहते थे ।मैने उन्हे कितना खुश रखा यह मै नही जानती मगर इतना जानती हूँ कि उन्होने मेरी हर खुशी का ध्यान रखा । शायद मम्मी से भी ज़्यादा । मै बहुत लाडली थी और इसी कारण ज़िद्दी भी और पापा मेरी हर ज़िद पूरी करते थे । पापा ने हमें ज़िन्दगी का हर ऐशो आराम दिया ।ठाठ से पाला । खूब घूमना घामना, खाना पीना ,नौकर चाकर —
मुझे जीवन भर इस बात का अफसोस रहेगा कि पापा के आखरी समय मै उनके साथ नही थी न ही उनकी कोई सेवा कर सकी । भारतीय परिवेश मे पली बढ़ी लड़की अपनी घर गृहस्थी मे रम जाती है।उस पर काम काजी हो तो और किसी चीज़ के लिए समय भी कम पड़ जाता है।फिर कभी सपने में भी नही सोचा था कि पापा इतनी जल्दी चले जाएंगे। काश ज़िन्दगी रिवाइन्ड हो सकती तो —
सिर्फ कह देने भर से फादर हैप्पी हो जाते तो आज के दिन कम से कम हर फादर खुश होगा । मगर खुशियां कह देने भर से नही मिलतीं। जब इस प्रथा का चलन नहीं था तब भी फादर खुश रहते थे क्यों कि तब उन्हें खुश रहने के लिए इस एक दिन का इन्तज़ार नहीं करना पड़ता था ।
–खैर, चलन है तो है और तजुर्बेकार कहते हैं कि नए दौर में नए चलन के साथ चलना ही समझदारी है और मैं नासमझ तो बिल्कुल भी नही हूँ। तो हैप्पी फादर डे टू आॅल फादर्स, मेरे बच्चों के फादर भी इसमें शामिल हैं । 🙂