लघुकथा

लघुकथा : लक्ष्य

ट्रेन अपनी गति से आगे बढ रही थी पर सुमित की धडकन ट्रेन से भी तेज चल रही थी।

“क्या बात है बहुत बैचैन हो ” सामने की बर्थ पर एक तेज आभा लिये व्यक्ति ने पूछा।

उनके अपनत्व भरे व्यवहार से जल्दी ही सुमित सहज होकर उनसे अपनी बात कहने लगा…
“मेरी फ्लाइट है सुबह के चार बजे की और ट्रेन दो घंटे देरी से चल रही है, पता नहीं मिलेगी भी या नहीं ”

“बेटा आपको इससे पहली बाली गाडी से निकलना था न!”

“हाँ बाबा, पर माँ और पत्नी को बडी मुश्किल से समझा पाया,, उनको समझाते समझाते ट्रेन मिस हो गई ”

“पर विदेश क्यों जा रहे, क्या जो सैलरी यहां मिलती है बो पूरक नही ”
“बो मेरा लक्ष्य है 25-30 करोड कमाकर बस फिर आराम की जिन्दगी जी जाये ”
“ओह….. तो इसके लिये अपनो से दूर जा रहे…. एक काम करते हैं… ऐसा कहकर उन्होंने एक चैक निकाला उस पर साइन किया और सुमित को देते हुये कहा- “ये लो 30 करोड की चैक, अब तुमको काम करने की आवश्यकता नहीं, तुम्हारा लक्ष्य पूरा हुआ..”

सुमित हैरानी से उसकी ओर देखने लगा।

“मुझे पता है तुम्हारे दिमाग में बहुत से सवाल आ रहे होंगे कि ये अजीब इन्सान है… जान न पहचान इतनी बडी रकम दे रहा है।”

कुछ देर रुककर एक गहरी सांस लेकर सुमित को चैक देकर बोले “में भी पहले तुम्हारी तरह सोचता था,,, अपने परिवार को समय न देकर बस पैसा ही कमाया….. अब पैसा है परिवार नही तो ये पैसा किस काम का……. मुझे इसका सही वारिस मिल गया इस पैसे से किसी का परिवार तो दूर नही होगा ”

” नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मेरा जीवन लक्ष्यहीन हो जायेगा। फिर ऐसे जीवन का क्या औचित्य है!”

अगले ही पल नवयुवक अपना सामान समेटे अगले स्टेशन पर उतरने के लिए बेताब था ।

— रजनी किन्तु विलगैयां

रजनी बिलगैयाँ

शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट कामर्स, गृहणी पति व्यवसायी है, तीन बेटियां एक बेटा, निवास : बीना, जिला सागर

One thought on “लघुकथा : लक्ष्य

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी रजनी जी, अति सुंदर लघु कथा के लिए आभार.

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