यात्रा वृत्तान्त

हरसूद यात्रा

2004 में इंदिरा सागर बांध की चपेट में आया हमारा शहर हरसूद वर्तमान में वहाँ कोई नहीं रहता। बारिश में वहाँ लगभग 20 फिट तक पानी भरा रहता हैं गर्मी के दिनों में रास्ता खुल जाता हैं तब harsood जाया जा सकता हैं। स्टेशन से होकर सड़क आज भी हमें हरसूद तक ले जाती हैं। साई मंदिर जिसका निर्माण हरसूद डूब के कुछ वर्षो पूर्व ही हुआ था वह खाली हैं वहाँ के साई नाथ नये हरसूद में विस्थापित हो गये हैं। हरसूद जाने वाले सर्वप्रथम इस मार्बल के साई मंदिर को निहारते हुये हरसूद की और बढ़ते हैं रास्ते में बिखरे हुये घर, मलवा, टूंटी फूटी इमारतों की ईटे और उगी घास फूस की हरियाली हरसूद की शोभा बढ़ाती हैं। उस धरा पर कदम रखते ही आसमान भी अपना सा लगता हैं और धरती भी अपनी सी लगती हैं। उस धरा पर आज भी हरसूद बसा हुआ नजर आने लगता हैं पर सब कुछ बिखर चुका हैं और एक पल में ही वास्तविकता का आभास होता हैं। वहाँ पर सब बिखरा, उजाड़, वीरान ही नजर आता हैं सरस्वती कुण्ड शिवालय की भूमि इतनी समतल नगर आती हैं कि कहा ही नहीं जा सकता कि यहाँ कभी कोई प्राचीन शिवालय था। वहाँ वृक्ष नाला कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता हैं। नगर में मंदिर के गुम्बद के कुछ बचे अवशेष जो देखे जा सकते हैं मस्जिद की मीनार को देख आज भी अजान की आवाज कानो में सुनाई पड़ती हैं। मंदिरो को देख घंटियों की आवाज कानो में बजने लगती हैं। पुलिया पार करते ही नगर का नाला उफान पर आता प्रतीत होता हैं और बारिश में जब नाला पूर जाता था वो दृश्य आँखों के सामने से ओझल होता जाता हैं जैसे-जैसे बाजार की और बढ़ते हैं वो बाजारों की रौनक वो सजी दुकाने, वो हॉट बाजार, वो सब्जी की दुकाने, होटले अपनी ओर बुलाती हैं। वो गांधी चौक का स्तम्भ, वो सरकारी भवन, स्कूल हमें याद आते हैं। हर एक गली अपनी और बुलाती हैं कहाँ जाऊ कुछ समझ नहीं आता हैं। बड़ी दुविधा में हूँ इतने सालो बाद हरसूद में आया हूँ सबसे पहले खेड़ापति हनुमान से भेट करना चाहता हूँ। उनका और मेरा बचपन का साथ हैं और वो आज भी हरसूद में ही हैं हरसूद आने का मेरा एक कारण उनसे मिलना था मेरी आँखे इतने सालो में उन्हें देखने को तरस गई थी आज उनसे मुलाकात हो ही गई। मेरी एक और इच्छा पूरी हुई। अब शाम ढलने को हैं अँधेरा हो चुका हैं मैं अपने घर गया वह देखते ही मुझें पहचान गया कुछ देर उसके साथ बैठा। एक बार फिर अपना बचपन जी लिया। अब मैंने अपने शहर हरसूद को जी भर के देखा और अपनी स्मृति में उसे बसा लिया। हरसूद यात्रा कर मुझें अभूतपूर्व आनंद मिला।
पुरानी यादे ताजा हुई और फिर वहाँ से विदाई ली। उसे अपने दिल में बसा कर ले आया फिर एक बार। वो हमेशा हमें बुलाता रहेगा और हम उससे मिलने जाते रहेंगे बार-बार।
✍? शिवेश अग्रवाल नन्हाकवि, खिरकिया-हरदा (म.प्र.)
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शिवेश हरसूदी

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