बेटी की नज़र से… …………
यह अश्क भी क्या खूब, हम बेटियों से खेलते हैं
इक ही पल मे यह क्यों, गम और खुशी के बहते हैं
खुदा ने कैसी घड़ी, हम सब के लिए बनाई है
है जनक से जुदाई, यह पिया मिलन की आई है
अंगना मे चहकना, और वो बगिया मे महकना
न भूलूँगी कभी भी, हर छोटी बात पर बहकना
वो सावन के झूले, लहराता बारिश का पानी
दिल मे सजा रखूँगी, बचपन की हर नई निशानी
पलने मे थी लोरी, मैं पिता की बाहों मे पली
यादें सब समेट कर, सजन द्वार पालकी मे चली
मैं अपने ख्यालों मे, सुनहरी किताब सजाऊँगी
कहानी हर पुरानी, पर मन मे उसे बसाऊँगी
— कीर्ति पाहुजा
अति सुंदर