कविता

मैं अब चुप रहूंगी

मैं अब चुप रहूंगी

न करुँगी कोई गिला
न ही कोई शिकवा
और न शिकायत करुँगी
कि मैं अब चुप रहूंगी….

देखूंगी बस चुपचाप
रोज बदलते हुए तुमको
पर अपने लब सी लूँगी
कि मैं अब चुप रहूंगी….

खामोशियों से जान लेना
मेरे दिल के राज़ तुम
मैं अब मौन न तोड़ूँगी
कि मैं अब चुप रहूंगी….

सिसकता हो दिल अंधेरों में
या आखों से शोले टपकते हों
मै खामोशियों को ओढ़ लूँगी
कि मैं अब चुप रहूंगी….

चाहे सपने टूट जाए मेरे
चाहे अपने रूठ जाएँ मेरे
पर अब न तुम्हें सदा दूंगी
कि मैं अब चुप रहूंगी…..

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - priyavachhani26@gmail.com

5 thoughts on “मैं अब चुप रहूंगी

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी प्रिया जी,
    खामोशियों से जान लेना
    मेरे दिल के राज़ तुम.
    बहुत खूब, एक भावपूर्ण, सटीक एवं सार्थक रचना के लिए आभार.

  • राजकुमार कांदु

    बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता !

  • राजकुमार कांदु

    बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    चाहे सपने टूट जाए मेरे

    चाहे अपने रूठ जाएँ मेरे

    पर अब न तुम्हें सदा दूंगी

    कि मैं अब चुप रहूंगी….. बहुत खूब .

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता !

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