लघुकथा

आभासी रिश्तों का दर्द

” ये आपकी सोच नहीं हो सकती , जितना मैंने आपको पढा है , आप नकारात्मक सोच वाली रचनाकार नहीं हो ।”
नव्या ने जैसे ही फेसबुक कविता ग्रुप में कविता पोस्ट की तो त्वरित टिप्पणी देख सकपकाई , पूछने पर मालूम हुआ वो नव्या की पिछली रचनाओं को पढता आ रहा है। अब तो लगातार मैसेज कर नव्या से उसकी रचनाएँ मांग पढने की जिद पर अड गया हारकर नव्या ने विचार कर मेल से अपनी एक रचना भेजी कि हो सकता है, वो रचनाओं को पढकर आवश्यक सुधार बता मार्गदर्शन कर सके , लेकिन नव्या का यह भ्रम बहुत जल्दी ही टूट गया, रचना की तारीफ करना तो दूर जवाब में लिखा, “मुझे आपसे आत्मिक लगाव हो गया है, मैं आपसे निजी मित्रता चाहता हूँ ।”

इतना सुनते ही नव्या अचकचा गई और सीधे
लफ्जों में प्रतिक्रया देते हुए लिखा, “बहुत दुख हुआ कमल जी आपकी बात से, आपने रचना पढने के लिए माँगी थी या निजी मित्रता करने के लिए ? सुना था कि एक मछली सारे तालाब को दूषित करती है ,आज देख भी लिया…..तभी आप जैसे किरदारों की वजह से इस आभासी रंगमंच पर कोई भी महिला किसी पुरुष से मित्रता तो दूर, बात तक करने से कतराती है ।”
इतना लिख नव्या ने आभासीय रंगमंच पर होने वाले नाटक में अपना किरदार निभाने से पहले
ही पर्दा गिरा दिया ।

संयोगिता शर्मा

जन्म स्थान- अलीगढ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- राजस्थान में(हिन्दी साहित्य में एम .ए) वर्तमान में इलाहाबाद में निवास रूचि- नये और पुराने गाने सुनना, साहित्यिक कथाएं पढना और साहित्यिक शहर इलाहाबाद में रहते हुए लेखन की शुरुआत करना।