मुक्तक/दोहा

नव वर्ष- दोहे

पुराना कलैंडर झाँक रहा है, नए वर्ष की छाया को
कितना मुश्किल है बंधु, छोड़ कर जाना माया को।

नए कलैंडर के चेहरे पर, अभिमानी मुस्कान है
वक़्त को गुजर जाना है, यह विधि का विधान है।

धूल उड़ाते क़दमों से समय जा रहा भाग कर
जैसे कंधे को धकियाती बंदूक गोली दाग कर।

रेत के महल बना-बना खुश होने का ढोंग किया
क्षण भर की देरी में ही जल लहरों ने रौंद दिया

तकदीर के मोती पल रहे है, समय समान सीप में
बीते कल की बाती जल चुकी, घी रह गया दीप में।

कितने मंजर बदल चुके है, काल चक्र के  वार  से
वक़्त सिखाता है सब को, मिल जुल रहना प्यार से।

विनोद दवे

नाम = विनोदकुमारदवे परिचय = एक कविता संग्रह 'अच्छे दिनों के इंतज़ार में' सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत। विनोद कुमार दवे 206 बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम पोस्ट=भाटून्द तहसील =बाली जिला= पाली राजस्थान 306707 मोबाइल=9166280718 ईमेल = davevinod14@gmail.com