कविता

बेटी हूँ या भूल

जिस दिन मेरा जन्म हुआ तुम,
फूट फूट क्यों रोई माँ
क्या सपनों की माला टूटी,
जो तुमने पिरोई माँ
जब मैं तेरी कोख में थी ,
तू कितना प्यार लुटाती थी
जब से तेरी गोद में आयी
आँसू क्यों छलकाती है
ढोल नगाड़े बजे नहीं माँ,
न ही किन्नर गान हुआ
क्यों इतना मातम छाया माँ,
क्यों तेरा अपमान हुआ
तेरे सपनों की माला का मैं,
मोती क्यों न बन पायी
जहाँ दूध छलकाना था क्यों,
आँखें तूने छलकायीं
खोया आखिर क्या है तूने,
जब से मुझको पाया है
तेरी गोद का आश्रय क्यों माँ,
मेरे लिये पराया है
धरती पर तो हर एक पौधा,
एक सा जीवन पाता है
फर्क नहीं पड़ता इससे माँ,
कौन सा फल वो उगाता है
घास फूस हो या तरु कोई,
कंटक वृक्ष भले ही
पर धरती की गोद में सारे,
हिल-मिल कर पले हैं
तेरी ममता का सोता क्यों माँ,
आँसू बनकर पिघल गया
मेरे हिस्से की ममता आखिर,
कौन सा राक्षस निगल गया
मुझे न तेरा प्यार चाहिए न,
तेरी जायजाद चाहिये
तेरे दिल के इक कोने में,
बस मीठी सी याद चाहिए
मेरे आने से पापा के माँ,
कन्धे क्यों झुक जाते हैं
हाथ बढ़े थे प्यार भरे जो,
ठिठुक वहीं रुक जाते हैं
तुम दोनों की बगिया में,
उगा नया एक फूल हूँ मैं
पर तुम ऐसे डरते हो क्यों,
जैसे कोई भूल हूँ मैं।

लवी मिश्रा

कोषाधिकारी, लखनऊ,उत्तर प्रदेश गृह जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश