संस्मरण

मेरी कहानी 200

जिंदगी फिर से पटरी पर आ गई और मैं कुलवंत के साथ गाडी में बैठ कर बच्चों को सकूल से ले आता। इस में कोई ज़िआदा वक्त तो लगता नहीं था लेकिन इस से कुछ अंतरीव पर्संता मिल जाती थी। बाहर दूर कहीं जाना तो बिलकुल बंद हो गिया था और आज तक बंद ही है लेकिन मैं घर में रह कर बोर बिलकुल नहीं था और अभी तक भी नहीं हूँ। बच्चे सब समझते हैं और कोई विवाह शादी हो, वोह सब चले जाते हैं और मैं घर में ही रहता हूँ। वोह मुझे टेलीफून बाकायदा करते रहते हैं, जिस से उन को भी बेफिक्री हो जाती है। यहाँ तक हो सके अभी तक कुछ न कुछ करने की कोशिश करता हूँ। जब कुलवंत बच्चों को साथ ले कर कहीं जाती है, तो चाय और साथ कुछ खाने के लिए इस तरह रख जाती है कि मेरा हाथ आसानी से पहुँच जाए। मैं माइक्रोवेव में पानी का कप्प रख के, उस में दूध और टी बैग डाल कर चाय बना लेता हूँ और खाने के लिए अगर कुछ गर्म करना ही तो वोह भी माइक्रोवेव में रख कर गर्म कर लेता हूँ। अपनी स्पैशल चेअर में बैठ कर मज़े से खा पी लेता हूँ। मेरा बैलेंस अब बिलकुल ख़त्म है लेकिन अपने थ्री वीलर वाकिंग फ्रेम से अपना आप मैनेज कर लेता हूँ। वैसे जब कुलवंत घर भी हो और थक्की थक्की हो तो मैं दोनों के लिए चाय बना लेता हूँ और सिटिंग रूम में आ कर बैठ जाता हूँ। कुलवंत बनी हुई चाय को क्प्पों में डाल कर अन्दर ले आती है और हम दोनों बातें करते हुए चाय का मज़ा लेते हैं। मुझे हंसी आती है, कभी कभी कुलवंत टेलीफून पे अपनी सखिओं को भी मेरी इस छोटी सी चाय बनाने वाली बात को बहुत बड़ा चढ़ा के बताती है। मुझे पता है, वोह खुश इस लिए होती है कि मैं बहुत हिम्मत करता हूँ। कभी कभी घर में छोटा मोटा सकरिऊ ढीला हो तो वोह भी टाइट कर देता हूँ। घड़ी में बैटरी डालनी हो तो वोह भी खुद डाल लेता हूँ। ज़िन्दगी में काम से कभी सुस्ती नहीं की थी, इस लिए अभी तक आदत छूटती नहीं। अब ऐसी स्थिति है कि एक सकरिऊ टाइट करने से ही मुझे एक सन्तुष्टता सी मिल जाती है।
दुसरी बात जो आदत मुझे पढ़ने की थी, उस ने मुझे बोर नहीं होने दिया। अभी तक कुलवंत लाएब्रेरी से मुझे किताबें ला देती है, जिन को पड़ता भी हूँ और कुछ मिंट ऊंची ऊंची बोल के स्पीच थैरेपी भी करता हूँ। हाथों की एक्सरसाइज़ तो सब से ज़्यादा करता हूँ, चाहता हूँ हाथों की स्पीड बढ़ जाए और दुबारा नया कीबोर्ड ले लूँ। और नहीं तो कमज़कम फ़िल्मी गानों की धुनें बजाता रहूँ। इन सब से ज़्यादा मेरी रूचि लैप टौप में बहुत बढ़ गई है, जिस का फायदा मुझे बहुत है। इंटरनेट पे मैंने किताबों से भी ज़्यादा हासिल किया,कोई भी बात मन में आये, एक दो मिंट में मेरी आखों के सामने होती है। कोई भी चीज़ ज़्यादा पड़ने की मुझे जरुरत नहीं होती, बस कुछ पैराग्राफ पढ़के तसल्ली हो जाती है और फिर कोई और वैबसाइट की ओर धिआन चले जाता है। इन सब से ऊपर मुझे फायदा हुआ ईपेपर देखने का, जिस का पहले मुझे कोई गियान नहीं था।
इस से कुछ पहले की बात करूँ ! धीरे धीरे मैंने ईपेपर पड़ने शुरू किये तो मेरी दिलचस्पी इन में बढ़ने लगी और नई नई अखबारों को, जिन को मैंने इंडिया में पढ़ा हुआ था, डायल करके देखने लगा और इस तरह देखते देखते अचानक ही मुझे नवभारतटाईम्ज़ दिखाई दिया। यह पेपर मुझे अच्छा लगा और रोज़ाना इसे पढ़ने लगा। इंडिया के पेपर तो और भी बहुत हैं लेकिन मेरे दिलचस्पी नवभारतटाईम्ज़ तक ही सीमत हो गई, जो मेरी जरुरत के मुताबक काफी था। अभी तक भी मुझे इंटरनेट की ख़ास सूझ बूझ नहीं थी। ब्लॉग किया होता है, मुझे पता ही नहीं था। यह ईपेपर रोज़ाना देखते देखते मेरी नज़र एक ब्लॉग पर पढ़ी, किस ने लिखा होगा, मुझे याद नहीं लेकिन पढ़ कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इस ब्लॉग पर लोगों के कॉमेंट भी लिखे हुए थे। मैं भी अपना कॉमेंट देना चाहता था लेकिन मुझे पता नहीं था कि कैसे लिखना है। डर भी लगता था कि कुछ गलत ना कर दूँ और कुछ खराब हो जाए। झिज्ज्कते झिज्कते मैंने अंग्रेज़ी के अक्षरों से हिन्दी टाइप करना शुरू किया, जिस से बहुत उत्साह और ख़ुशी मिली। छोटा सा कॉमेंट लिखने में काफी वक्त लगा, झिझकते झिझकते सैंड कर दिया। कोई एक घंटे बाद मेरे कॉमेंट का जवाब आ गया। इस को पढ़ कर इतनी ख़ुशी हुई कि मैं एक के बाद एक कॉमेंट लिखने लगा। फिर मैं नभाटा की ख़बरों के कॉमेंट भी देने लगा। जवाब आते और मैं उत्साहत होता, साथ ही इंग्लिश में हिंदी का अभ्यास बढ़ने लगा। यह दिन मेरे ऐसे थे जैसे मुझे कोई बहुत बड़ी उपलभ्दी मिल गई हो। देर रात तक मैं नभाटा पे कॉमेंट लिखता रहता। ब्लॉग पड़ने की रूचि भी बढ़ गई और मैं मिहनत करके लंबे लंबे कॉमेंट लिखता लेकिन मुझे उस का जवाब मुक्तसर सा मिलता, जिस से मुझे निरास्ता होती, मैं चाहता था, मेरे कॉमेंट का जवाब विस्तार से मिले। ब्लॉग लिखने वाले पर मैं सवाल करता था लेकिन कोई ख़ास जवाब नहीं आता था, यह मेरे लिए निराशाजनक होता था।
फिर एक दिन एक चमत्कार हुआ, मैं इसे चमत्कार ही कहूंगा, क्योंकि इस चम्तकार की वजह से ही आज मैं यह “अपनी कहानी” लिख रहा हूँ जो मार्च 2015 में शुरू की थी और अब जल्दी ख़तम होने जा रही है । ब्लॉग पड़ते पड़ते लीला तेवानी जी के ब्लॉग के दर्शन हुए। यह ब्लॉग था “आज का श्रवण कुमार 12 मारच 2014 “, इस ब्लॉग को पढ़ कर मन में एक कसक सी उठी और मैंने कॉमेंट लिखना शुरू कर दिया। इस कॉमेंट का जवाब इतना अच्छा आया कि लगा जैसे, मुझे अपने कॉमेंट के जवाब की तलाश ख़तम हो गई थी और यहीं से शुरू हुआ लीला तेवानी जी से संपर्क। इस ब्लॉग के कॉमेंट मैंने बहुत भावुक हो कर लिखे थे और कुछ चीज़ें गलत भी लिख हो गई थी, जैसे गोवा में दुर्घटना मैंने हम्पी से आने के बाद लिखी थी, जब कि यह हम्पी जाने से पहले हुई थी। एक दो और गलतियां हैं लेकिन मैं अब उस ब्लॉग और उन के कॉमेंट्स को उसी तरह लिखूंगा जो नीचे है, इस में मेरा पहला कॉमेंट नीचे है और दूसरा कुछ ऊपर, दरअसल यह मेरा एक ही कॉमेंट था जो दो पार्टों में लिखा हुआ था । इस के बाद लीला बहन ने गुरमेल गौरव गाथा और ऐसे कई ब्लॉग हम पर लिखे। इस ब्लॉग के बाद लीला बहन के कलम दर्शन आज तक जारी हैं। मेरी सारी ईबुक्स उन्होंने बना कर मुझे एक नई दिशा की ओर ला खड़ा किया। एक बात लीला जी ने और की, मेरा संपर्क विजय सिंघल जी की जयविजय पत्रिका, जो उस वक्त युवासुघोष कहलाती थी, से करा दिया, जिस में मेरी पहली रचना एक लघु कथा दुल्ला 13 जून 2014 में प्रकाशत हुई और यह सिलिसिला “मेरी कहानी” के साथ साथ लगातार आज तक चला आ रहा है और इस के लिए मैं विजय सिंघल जी का तहेदिल से बहुत बहुत आभारी हूँ। अगर यह पत्रिका ना होती तो शायद आज मेरी कहानी भी ना होती। अपनी रचना को किसी पत्रिका में छपी हुई देखना भी एक तरह का नशा ही होता है। लीला बहन के पहले ब्लॉग ,जिस पर मैंने दस्तक दी थी, उस को मैने कॉमेंट समेत सारे का सारा उसी तरह पब्लिश कर दिया है, जो नीचे है और यह सारे का सारा ब्लॉग मैंने इस लिए लिखा है, क्योंकि यहां से ही मेरी ज़िन्दगी का एक नया कांड शुरू हुआ था. . . . . . . .

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रसलीला
लीला तिवानी
आज का श्रवणकुमार
लीला तिवानी Wednesday March 12, 2014
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हमने बचपन से ही माता-पिता की अथक सेवा करने वाले श्रवणकुमार जैसे सुपुत्र की बात सुन चुके हैं. आज हम जिस श्रवणकुमार की चर्चा कर रहे हैं वे एक सुपुत्र नहीं बल्कि, एक सुपुत्र के लिए गजब का त्याग करने वाले दुनिया के ‘बेस्ट पापा’ हैं. पेइचिंग के इस पिता के जज्बे को सलाम किए बिना आप भी नहीं रह पाएंगे. चीन का यह शख्स जन्म से अपाहिज अपने बेटे को पढ़ा-लिखाकर कुछ बनाने का सपना संजोए हर दिन उसे पीठ पर लेकर 18 मील ( करीब 29 किलोमीटर) चलता है. वह बेटे को स्कूल छोड़ता है, फिर वापस लौटकर काम पर जाता है और फिर बेटे के स्कूल जाकर उसे पीठ पर लादकर घर लाता है. पीठ में तकलीफ के बाद भी यह जुनूनी पिता हार मानने को तैयार नहीं है. अच्छी खबर यह है कि स्थानीय मीडिया में खबर आने के बाद स्थानीय प्रशासन अब इस बच्चे को स्कूल के पास ही आवास देने की सोच रहा है. चीन के शुचुवान प्रांत में रहने वाले 40 वर्षीय ये शियांग का 12 साल का बेटा शियांओ चियांग जन्म से शारीरिक रूप से अक्षम है. शियांग नौ साल पहले अपनी पत्नी से अलग हो चुके हैं। शियांग ने बेटे को अकेले पालने और उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा देने की ठानी है.

शियांग ने बताया कि, “आसपास के स्कूलों में उनके बेटे को दाखिला नहीं मिला. आखिरकार उन्हें घर से 5 मील (करीब 8 किलोमीटर) दूर शुचुवान प्रांत के प्राइमरी स्कूल में दाखिला मिला। इलाके में बस की सुविधा न होने को कारण शियांग के सामने सबसे बड़ी समस्या बेटे को स्कूल ले जाने की थी. शियांग ने बेटे को पीठ पर लादकर स्कूल लाने-ले जाने का बेहद कठिन फैसला लिया. उन्होंने इसके लिए एक खास तरह का टोकरा बनाया (ठीक उसी तरह जिस प्रकार हमारे श्रवणकुमार ने माता-पिता की तीर्थयात्रा की इच्छा पूरी करने के लिए बहंगी बनाई जिसके, एक पलड़े में माता थी और दूसरे में पिता ). इस टोकरे में बेटे को रखकर शियांग सितंबर से रोज बेटे को स्कूल ले जाते हैं.”

शियांग ने बताया कि, “वह हर सुबह 5 बजे उठ जाते हैं. बेटे के लिए लंच बनाते हैं और फिर ऊबड़-खाब़ड़ रास्तों से गुज़रते हुए उसे स्कूल छोड़ते हैं. फिर काम करने के लिए वापस आते हैं. इसके बाद वह फिर स्कूल जाते हैं और बेटे को घर लाते हैं. बेटे को पीठ पर लगातार ले जाने के कारण उनकी पीठ में तकलीफ भी शुरू हो गई है, लेकिन वह हार मानने को तैयार नहीं है.”

शियांग कहते हैं कि, “मेरा बेटा शारीरिक रूप से सक्षम न होने के कारण स्कूल नहीं जा सकता. 12 साल का होने के बाद भी उसका कद 90 सेंटीमीटर बढ़ा है. लेकिन मुझे अपने बेटे पर गर्व है. वह अपने क्लास में सबसे आगे रहता है. मुझे भरोसा है कि वह एक दिन कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ेगा. शियांग का सपना बेटे को कॉलेज में पढ़ाने का है.”

शियांग भाई आपके और आपके सुपुत्र शियांओ चियांग के जज़्बे को कोटिशः सलाम. मालिक आपकी मुरादें पूरी करें.
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Prakash Gupta (Ghaziabad, India)
April 13,2014 at 05:31 PM IST
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हमेशा की टरह प्रेरणादायक प्रसंगों को जनता के सामने लाने के लिये आप पुन: बधाई की पात्र हें . बहुत सुन्दर व मार्मिक प्रसंग लिखा है आपने टीचर जी.
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(Prakash Gupta को जवाब )- लीला तिवानी (Unknown)
April 13,2014 at 06:14 PM IST
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प्रिय ब्लॉगर भाई प्रकाश जी, खूबसूरती को सच्चे मन से पहचानने वाले आप भी बधाई के पात्र हैं. इतने हार्दिक कामेंट के लिए ह्रदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
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Rahim Gautm (gurgaon)
March 16,2014 at 03:29 PM IST
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अच्छा किया…याद दिला दिया..शुक्रिया….अभी थोड़ी देर पहले टीवी देख रहा था…रोहतक के पास निमवाला गाव मे एक मज़दूर के लड़के ने अंटी हॅकिंग सॉफ्टवेयर बनाया और माइक्रोसॉफ्ट को उसका डेमो दिया…अब माइक्रोसॉफ्ट वालो ने उसको 1.50 करोड़ साल की तन्खवाह का ऑफर दिया है…यह उस परिवार की लगन थी..जिस मे मा कह रही है की जब तक बच्चा सोता नही था..वो जागती रहती थी..क्योकि लाइट ना होने की वजह से मोमबती का इंतज़ाम रखना पड़ता था…यही लगन आज उसको उसका फल दे रही है…
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(Rahim Gautm को जवाब )- लीला तिवानी (Unknown)
March 16,2014 at 06:49 PM IST
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गौतम भाई, आपने भी बहुत अच्छे श्रवणकुमार का उल्लेख किया है. कहीं बेटा श्रवणकुमार होता है तो, कहीं पिता श्रवणकुमार और आपके उदाहरण में पूरा परिवार ही श्रवणकुमार की भूमिका में है. पूरे परिवार को हमारी ओर से भी बधाई. इतने हार्दिक कामेंट के लिए ह्रदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
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Leela Tewani (Unknown)
March 16,2014 at 10:39 AM IST
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आज 16 मार्च का दिन क्रिकेट के बेताज बादशाह मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के प्रथम अंतराष्ट्रीय शतक के लिए याद किया जाएगा. उनको हमारी हार्दिक बधाई.
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Leela Tewani (Unknown)
March 16,2014 at 10:38 AM IST
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आज 16 मार्च को महान साहित्यकार अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की पुण्यतिथि है. उनका नाम खड़ी बोली को काव्य भाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने वाले कवियों में बहुत आदर से लिया जाता है. उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में 1890 ई. के आस-पास अयोध्यासिंह उपाध्याय ने साहित्य सेवा के क्षेत्र में पदार्पण किया. उनको हमारा कोटि-कोटि नमन.
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leela tewani (Unknown)
March 15,2014 at 11:33 AM IST
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आज देश की गंगा जमनी तहजीब के अमर स्तम्भ डॉ राही मासूम रज़ा की पुण्यतिथि है. 15 मार्च सन 1992 को इस बेहतरीन शख्सियत ने हमें अलविदा कह दिया. नीम का पेड़,आधा गाँव, टोपी शुक्ला, सीन 75 तथा हिम्मत जौनपुरी नामक उनके उपन्यास हिंदी साहित्य की विशिष्ट विभूति हैं. किसी समय के सर्वाधिक लोकप्रिय महाभारत टी वी सीरियल में उन्होंने संवाद एवं पटकथा लेखन का काम किया. इसके अतिरिक्त भी अनेक फिल्मों व सीरियल्स की पटकथा व संवाद लिखे जो, अत्यंत सराहे गए. उनको हमारा कोटि-कोटि नमन.
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leela tewani (Unknown)
March 15,2014 at 11:20 AM IST
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आज सुप्रसिद्ध कवयित्री, साहित्यकार व देशभक्ति की नायिका सुभद्राकुमारी चौहान की पुण्यतिथि है. गांधीजी के असमय व दुखद देहावसान के ग़म में इन्होंने चार दिन तक कुछ नहीं खाया-पीया. उनको हमारा कोटि-कोटि नमन.
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leela tewani (Unknown)
March 14,2014 at 10:50 AM IST
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आज 10 मार्च को ही सिने जगत के लिए एक और खुशखबरी है. आज ही के दिन 1965 में सुप्रसिद्ध-बहुमुखी प्रतिभा के धनी आमिर खान का जन्मदिन भी है. उनको हमारी कोटि-कोटि शुभकामनाएं.
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leela tewani (Unknown)
March 14,2014 at 10:47 AM IST
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आज 14 मार्च सिने जगत के लिए एक विशेष दिवस है. इसी दिन सिनेमा-जगत ने मूक फिल्मों से बोलती सिनेमा में फिल्म “आलमआरा” से प्रवेश किया था. सिने जगत को हमारी कोटि-कोटि शुभकामनाएं.
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Gurmail (Unknown)
March 13,2014 at 08:19 PM IST
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मैं भीतर से मैग्नीफाइंग गलास ले आया जिस से बहुत सॉफ दिखाई दे रहा था. स्पाईडर इतना अच्छा बुन रहा था जैसे औरतें करोशिये से मेज पोश बनाती हैं. मैं देख देख कर खुश होता. फिर अचानक पड़ोस के घर के आंगन से खेलते हुए बचों का गेंद आ कर उस जाल पर गिरा और उन छोटी सी गली हो हो गई. मुझे बहुत दुख हुआ और बचों को कोसने लगा. हर सुबह मैं फुलवारी जिस को हम यहाँ गार्डन कहते हैं में बैठ जाता पर स्पाईडर वहीं ऐक जगह बैठा होता जैसे अपना घर टूट जाने का मातम कर रहा हो. ऐक दिन जब आ कर देखा तो आँखों को विश्वास नहीं हुआ. स्पाईडर ने सारा जाल रीपेअर कर दिया था और ऐक तरफ़ बैठा था जैसे वोह जीत गिया हो. मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा और दोनो हाथों से ताली वजाई. वाइफ मेरी तरफ़ देखने लगी और मुस्कराई. बस उसी वक्त मैने हाथों की ऐइक्सरसाइज़ शुरु कर दी. धीरे धीरे मैं ऐइक्सरसाइज़ बड़ाता चला गिया. कभी कभी हार जाता, फिर हौसला करता और लग जाता. ऐक वर्ष के बाद कुछ चेंज दिखाई देने लगी. यहाँ मैं चाए का कप दो हाथों से उठाता था अब दो किल्लो के डंबल सेट की 100 मूवमैंट करने की क्षमता हो गई. यहाँ दस्तखत करने से डर लगता था आज मैं कई सफे लिख लेता हूँ वोह भी अच्छे हैंडराइटिंग से. यहाँ मैं लेट कर अपनी टांग को उठा नहीं सकता था, आज मैं 100 दफा उठाता हूँ. हर रोज़ डेढ़ घंटा सुबाह को ऐइक्सरसाइज़ करता हूँ, फिर सटैंड के सहारे आधा घंटा कमरे में इधर उधर घूमता हूँ. सपीच की भी ऐइक्सरसाइज़ करता हूँ लेकिन कुछ बन पड़ता दिखाई नहीं देता. इस का यह मतलब भी नहीं कि मैने हार मान ली है. हर छे महीने बाद हस्पताल जाता हूँ और मेरा निउरोसर्जन मिस्टर बैन्मर हैरान हो जाता है और कहता है कि उस की ज़िंदगी में मैं पहला पेशेंट हूँ जो अभी तक सरवाइव कर रहा हूँ. मुझे भी पता है कि यह बीमारी ठीक नहीं होगी किओंकी अभी तक इस का कोई इलाज नही है. इस बीमारी में जीन मिउटेशन हो जाती है. इस का सिर्फ यह ही है कि रोज़ाना ऐइक्सरसाइज़ करनी जरूरी है जिस से जीने के दिन बड जाते हैं. अब मैं अपनी कहानी से दूसरों को परेरत करने की चाहत रखता हूँ कि स्पाईडर ने अपनी हिम्मत से डैमेज हुआ जाल रीपेअर कर दिया और मैने अपने को फिर पटड़ी पर ला खड़ा किया. बैहनों भाइओ दुख से मत घबराओ. इंसान वोह ही है जो यहाँ गिरे वहीं से खुद उठे. रोने से और तो कुछ मिलेगा नहीं, हां डीपरैशन आसानी से मिल जाएगा.
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(Gurmail को जवाब )- लीला तिवानी (Unknown)
March 13,2014 at 10:31 PM IST
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गुरमैल भाई, आपके दिल को देखने के लिए तो मैग्नीफाइंग ग्लास की भी आवश्यकता नहीं है. आपके अनुभवों से एक भी व्यक्ति प्रेरणा पा सके तो, समाज का कल्याण हो जाए. हम आपकी कहानी को ब्लॉग के रूप में लिखने की अवश्य कोशिश करेंगे. आपकी दरियादिली व इतने हार्दिक कामेंट के लिए ह्रदय से शुक्रिया और धन्यवाद
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(Gurmail को जवाब )- लीला तिवानी (Unknown)
March 17,2014 at 10:13 AM IST
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गुरमैल भाई, आपके कामेंट का उत्तर देने के बाद मेरे पास एक पोस्टर आया जो, इस प्रकार है, “मालिक को यह कहने के पहले कि, आपको क्या चाहिए, मालिक ने जो आपको पहले से ही दे रखा है, उसके लिए उसका धन्यवाद करो.” आपकी गाथा छप गई है, देख लीजिएगा. इतने हार्दिक कामेंट के लिए ह्रदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
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Gurmail (Unknown)
March 13,2014 at 07:18 PM IST
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लीला बैहन,आप ने अति उतम शबद लिखे जिस के मैं आप का बहुत अभारी हूँ. सभ से पहले मैं यह बताना जरूरी समझता हूँ कि 70 वर्ष का ऐक retired विअक्ती हूँ और इंग्लैंड में रहता हूँ. मेरी वाइफ और बच्चे सभी मुझे सपोर्ट देते हैं और हकूमत की तरफ़ से भी बहुत मदद मिलती है. अगर मैं इंडिया होता तो आप से मदद लेने को सुभागशाली समझता. आप बहुत अच्छा दिल रखती हैं. अक्सर मैं इंडियन मीडिया में खबरें देख कर सोच में प़ड जाता हूँ कि मेरे देश में लोग कैसे हो गये हैं, भरशटाचार बेईमानी घूसखोरी को देख कर मन बुझ सा जाता है. लेकिन आप जैसे लोग भी हैं जो दूसरों के परति इतनी सहानभूति रखते हैं. सच्च है किसी चीज़ का बीज्नास नहीं होता. यहाँ बुराई है वहं अच्छाई भी है, बुराई को हम बड़े ध्यान से देखते हैं लेकिन अच्छाई को सरसरी नज़र से देखते हैं. हाँ तो अब मैं अपनी कहानी लिखता हूँ, आप चाहें तो किसी रसाले में छाप सकती हो. 2003 में हम मियाँ बीवी गोआ आये, फिर कर्नाटिक हैंपी रुइंज़ देखने गये जो कभी विजय नगर ऐम्पाएर कहलाता था. वापिस फिर गोआ आ गये और अंजुना बीच पर घूम रहे थे कि ऐक बहुत ऊंची पानी की लहर आई और मुझे पानी में घसीट कर ले गई, मुझे लगा मेरा अंत हो जायेगा. फिर ऐक और लहर ने मुझे बीच पर पटक दिया और बहुत चोटें लगीं. जब हम इंग्लैंड आये तो मैं गिरने लगा, आवाज़ बदलने लगी. शरीर में शक्ति खतम होने लगी. डाक्टरों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. धीरे धीरे हाथों की शक्ति इतनी कमज़ोर हो गई कि चाए का कप दो हाथों से पकड़ना पड़ता, दस्तखत करना मुश्किल हो गिया. फिर मेरे डाक्टर ने मुझे हौस्पिटल भेज दिया. वहां सभी टैस्ट हुए और डाक्टरों ने बताया कि मोटर निऊरोंन डीज़ीज़ है और तीन वर्ष में बिस्तरे में प़ड जाऊगा. ऐक वर्ष तक मैं सोफे में रोता रहता. मेरी आवाज सिर्फ मेरी बीवी ही समझ पाती. मैने सारी ज़िंदगी बहुत सख्त मिहनत की थी. इंडिया खेतों में हल चलाए, बीए तक पड़ाई भी की और इंग्लैंड आ के 40 वर्ष काम किया और इंडिया आ कर चैरिटी का काम भी करते. अब अचानक सटैंड सॅटिल होने से ज़िंदगी बोझ लगने लगी. घर के पीछे ऐक छोटी सी फुलवारी है, उस में बैठा फूलों को देखता रहता. वाइफ हर तरह मेरी दिलजोई करती रहती पर मेरा मन भीतर से खुश ना होता. ऐक दिन मैं सुबह सुबह बाहिर आया तो अचानक नज़र सेब के दरख्त पर ऐक स्पाईडर पर पड़ी जो ताना बाना बुन रहा था. आगे ,,,,
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(Gurmail को जवाब )- लीला तिवानी (Unknown)
March 13,2014 at 10:24 PM IST
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गुरमैल भाई, हम तो आपके आभारी हैं कि, आपने अपनी आपबीती के साथ-साथ हमको भी एक उत्तम संदेश दिया है. सचमुच आपके अनुभव से बहुत लोग हौसले की प्रेरणा ले सकते हैं. आप शायद विश्वास ही करेंगे क्योंकि, आपका दिल नेक और साफ है कि, मैं इंसानियत से जुड़े प्रसंग व ब्लॉग आदि ही पढ़ती हूं व उन पर कामेंट भी करती हूं. राजनीतिक व सांप्रदायिक आलेख मुझे रास नहीं आते.आप के हौसले की फुलवारी फलती-फूलती रहे. इसी शुभकामना के साथ इतने हार्दिक कामेंट के लिए ह्रदय से शुक्रिया और धन्यवाद
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Gurmail (Unknown)
March 13,2014 at 01:46 AM IST
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लीला बैहन,आप के इस लेख ने जो सच्च है मेरी आँखें नम कर दी किओंकी मैं खुद डिसेबल हूँ. पिछ्ले दस साल से बोल नहीं सकता बाहिर नहीं जा सकता. सटैंड के सहारे चलता हूँ वोह भी सिर्फ अपने घर में. शियांग जो अपने बेटे के लिये कुर्बानी दे रहा है उस की मिसाल कहीं नहीं मिलेगी. मैं 99% पौसेटिव हूँ, फिर भी इंसान हूँ कभी डोल भी जाता हूँ. भला हो जिसने कॅंपियूटर इज़ाद किया है. पड़ने का मुझ को बचपन से शौक था. इस लिये सारा वकत पड़ने और इन्टरनैट पर खो जाने में बतीत हो जाता है. मुझे डिसेबिलिटी का सोचने के लिये वकत ही नहीं. इसी तरह शियांग अपने बेटे को उस मुकाम पर पौहञ्चा देगा यहाँ वोह डिसेबिलिटी के बारे में सोचेगा भी नहीं. ऐसे लोगों को मेरा कोटि कोटि परनाम.
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(Gurmail को जवाब )- लीला तिवानी (Unknown)
March 13,2014 at 07:50 AM IST
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गुरमैल भाई, सबसे पहले तो, आप पहली बार हमारे ब्लॉग से जुड़े और हमारा हौसला बुलंद किया, उसके लिए आपका हार्दिक स्वागत और धन्यवाद. आप की इस आपबीती ने तो सचमुच हमारी आँखें भी नम कर दीं. आपने लिखा है कि, आप खुद डिसेबल हैं, बोल नहीं सकते, बिना सहारे चल नहीं सकते, बाहर नहीं जा सकते फिर भी, इतनी हिम्मत और हौसले से जी रहे हैं कि, 99% पोज़ेटिव हैं. भाई, यह जानकर कि आप पढ़ने और इंटर्नेट पर खो जाने में व्यस्त रहते हैं, यह आपके लिए प्रभु का एक शुभ वरदान है. कम-से-कम आप लिखकर तो अपने विचार प्रकट कर सकते हैं. प्रभु एक दरवाज़ा बंद करते हैं तो, दस दरवाज़े खोल देते हैं. दोषी तो हम लोग हैं जो, आपकी सहायता नहीं कर पा रहे. जिनके पास सब कुछ है वे भी, 01% भी पोज़ेटिव नहीं हैं तभी तो, दुनिया में इतनी हाय-तौबा मची हुई है और आप जैसे महान पोज़ेटिव लोग गुमनाम ज़िंदगी जी रहे हैं. जहां तक आपने यहां पर डिसेबिलिटी के बारे में न सोचने वाली बात कही है, हमने खुद अपनी आंखों से देखा है कि, एक बड़े बैंक ऑफिसर हैं वे, अपनी 90 साल की डिसेबिल सास को न सिर्फ़ अपने घर रहाकर उनकी हर तरह से सेवा करते थे बल्कि, बैंक से आकर उनको पीठ पर लादकर पास के साईं बाबा मंदिर ले जाते थे और जितनी देर वे वहां बैठ सकती थीं, उनके साथ बैठकर पुनः पीठ पर लादकर घर वापिस लाते थे. अच्छे लोग सब जगह मिल जाते हैं. प्रभु आपको भी कोई-न-कोई राह अवश्य दिखाएंगे. तब तक आप मेरे ब्लॉग जो, मेरी दृष्टि से पोज़ेटिवनेस को प्रोत्साहित करने वाले हैं, पढ़ते रहिए और सबकी पोज़ेटिवनेस बढ़ाते रहिए. आप को भी मेरा कोटि कोटि प्रणाम और इतने हार्दिक कामेंट के लिए ह्रदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
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(Gurmail को जवाब )- लीला तिवानी (Unknown)
March 13,2014 at 11:17 AM IST
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गुरमैल भाई, आपकी आपबीती ने सचमुच हमें झकझोर दिया है. अध्यापिका होने के नाते हमारा नाता बहुत-से ऐसे छात्रों और अध्यापकों से रहा है जिनको हम डिसैब्लिड कहते हैं लेकिन, उनके हौसले को देखकर हमें तो ऐसा महसूस होता था कि, वे परफैक्ट हैं और हम ही उनके सामने बौने हैं. सबमें ऐसा कोई-न-कोई हुनर होता था कि, अध्यापकों से हमें सीखने को मिलता था और छात्रों के हुनर को हम पहचानकर उनके उस हुनर को परवान करने की पूरी कोशिश करते थे. मैं अक्सर सत्यकथाएं लिखती हूं और मेरे बहुत-से ब्लॉग्स में आपको ऐसे लोगों से मिलने का अवसर मिलेगा. मैं आपको ई.मेल करूंगी, आप मुझे अपना प्रोफाईल भेज दीजिएगा, हमसे जो कुछ बन पड़ेगा, आपके लिए करेंगे. आजकल तो बहुत-सी एन.जी.ओ. आप जैसे लोगों को स्वनियंत्रित गाड़ी आदि दिलाते हैं. आप अपने आसपास के किसी एन.जी.ओ से बात करिए. आपका पता मिलते ही हम भी कोशिश करेंगे. अच्छा तो यह होगा कि, आप इस कामेंट के जवाब में कामेंट पर ही पता लिख दें ताकि, हमारे पाठकगण व ब्लॉगर्स भी आपकी कुछ सहायता कर सकें. आपमें लिखने का हुनर तो है ही, उसको उभारिए ही, अन्य कोई हुनर हो तो उसे भी उजागर कीजिए. आप के हौसले को भी हमारा कोटि कोटि प्रणाम और इतने हार्दिक कामेंट के लिए ह्रदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
चलता . . . .