गीत/नवगीत

गीत : मोम-सा मन

अब प्रिय मन आप बिन, हर दिवस जलने लगा है,
रात का गहरा अंधेरा, अब मुझे डसने लगा है ।
अब प्रिय मन…..

इस अंधेरी जिंदगी में दीप की लौ अब बनो तुम…
तुम बिना ये मोम- सा मन, बिन जले जलने लगा है।
अब प्रिय मन …..

यादों का ऐसा बवंडर-सा उठा जिंदगी में…
दर्दो गम का एक तूफां हर दिशा चलने लगा है।
अब प्रिय मन……

क्या पढूं मैं उस प्रणय के ग्रंथ को तुम ही बताओ…
प्रीत के इतिहास पर जो धूल -सी मलने लगा है
अब प्रिय मन आप बिन हर दिवस जलने लगा है।

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा(पूर्व हिन्दी/संस्कृत विभाग) एम.ए.बी.एड.(हिन्दी साहित्य) ६३९/१०-ए सेक्टर गुडगाँव-१२२००१. email. surekhasharma56@gmail.com