कविता

बहुत नाराज़ हैं अपने

बहुत नाराज़ हैं अपने

मनाऊँ मैं भला कैसे

वो जो हालात बिगड़े हैं

संवारुं मैं भला कैसे

गरीब हालात थे पर सब

बड़ा मिल जुल के रहते थे

जरा सी बात हो तो आसमां

सिर पर उठाते थे

सहर की वो रहीसी जब

मेरे ख्वाबों को सहलाई

मेरे जज़्बात की डिबिया

ना जाने कब बड़ी हो गई

जो मिलते थे मुझे कल तक

बड़ा सूकून मिलता था

ना जाने आज ये आँखें

उनको क्युं दगा दे गयी

बहुत नाराज़ हैं अपने….

कदम दो कदम मेरे बढते चले

पीछे सारे करीबी बिछड़ते चले

मैने मुड़ के कभी पीछे देखा नहीं

वो पुकारे तो होंगे मैं रुका ना कभी

यूँ तो उस मोड़ पर मैं अकेला ना था

मेरे पीछे खड़ी थीं कयी महफिलें

कोयी भूखा महज़ मेरे रंग-रूप का

तो किसी को मेरी सिर्फ दौलत दिखी

मैने समझा की मोल मेरे पैसों का है

यहां पर कोई मेरा अपना नहीं

अश्क आँखों से छलका

दिल में तबाही उठी

मुझको मेरे पुराने

दिन याद आ गए….

— कवि आर्यन उपाध्याय

आर्यन उपाध्याय ऐरावत

मेरा नाम आर्यन उपाध्याय है. मैं अभी एम. एस. सी कर रहा हूं. लेखन का शौक मुझे बचपन से है. मैं गाने भी लिखता हूँ और कविता लेखन का भी मुझे शौक है. मैं वाराणसी का रहने वाला हूँ.