गीत/नवगीत

गीत

उद्गार मेरे, सुन प्राण प्रिये
इक गीत बना कर लाया हूँ
मैं तेरे लिये, सुन प्राण प्रिये।

ख्वाबों में तुझको बुलाता हूँ
सपनों में तुझको सजाता हूँ
दिन रात जलाये रखता हूँ
आँखों में तेरी चाहत के दिये
•••••सुन प्राण प्रिये।

कुछ खट्टी मीठी यादों को
सीने से लगाये रखता हूँ
और दिल में तुझसे मिलने की
जीता हूँ कोई उम्मीद लिये।
•••••सुन प्राण प्रिये।

इक चाहत दी जीने के लिये
कुछ दर्द दिये सीने के लिये
पर मूरख मन कब समझ सका
उपकार जो तूने मुझपे किये
•••••सुन प्राण प्रिये

कुछ रित-प्रीत के झंझट हैं
कुछ लोकलाज के संकट हैं
तुझको अपनाने निकला हूँ
आसान नहीं है यद्यपि ये।
•••••सुन प्राण प्रिये
इक गीत बना कर लाया हूँ
मै तेरे लिये, सुन प्राण प्रिये।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।