उपन्यास अंश

आजादी भाग –४१ ( अन्तिम कड़ी )

विनोद की मनुहार से आनंदित दरोगा दयाल ने आगे कहना शुरू किया ”  विनोद जी ! सबसे पहले तो मैं आपको मुबारकबाद देना चाहुंगा कि भगवान ने आपके इस होनहार बेटे को आप तक सही सलामत पहुंचा दिया । इसी विषय में मेरा आपसे यह कहना है कि एक संतान की जुदाई का दर्द आप अनुभव कर चुके हैं और हम चाहेंगे कि आपके इस होनहार बेटे की मदद से हम कुछ और पालकों के अधरों पर मुस्कान ले आयें । हमें अब राहुल के मदद की दरकार है और हमें पूरी उम्मीद है कि आप मना नहीं करेंगे । हमारे पास वक्त बहुत कम है और कार्रवाई शीघ्र करना ही मुनासिब है । इससे पहले कि अपराधी संभल जाएँ हमें उन्हें दबोच लेना चाहिए । हो सकता है उनके पास और भी मासूम बच्चे हों जो अपनी रिहाई का इंतजार कर रहे हों …………”
दयाल अभी और कुछ कहता कि तभी उसकी बात बीच में ही काटकर विनोद बोल पड़ा ” साहब ! आपने अभी खुद ही कहा है ज्यादा वक्त नहीं है हमारे पास तो मैं तो यही कहूँगा कि देर करना मुनासिब नहीं है । जितनी जल्द हो सके हमें अपराधियों को संभलने का मौका दिए बगैर उन्हें दबोच लेना चाहिए । आप तो आदेश कीजिये हमें क्या सहयोग करना है ? ”
तभी राहुल और उसके साथ ही मनोज ने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा ” अंकल ! आप ठीक कह रहे हैं । हमें तनिक भी देर नहीं करना चाहिए । कहीं ऐसा न हो कि कमाल हमसे पहले पहुँच कर सबको सावधान कर दे ।  ”
थोड़ी ही देर बाद एक जीप में सवार राहुल मनोज विनोद बंटी के संग दयाल कालू के अड्डे की तरफ बढ़ रहे थे । दयाल ने अपने उच्चाधिकारियों को फोन करके पूरा मामला बताते हुए अपनी मदद के लिए और पुलिस बल मंगा लिया था ताकि कार्रवाई में कोई दिक्कत न रहे । शीघ्र ही राहुल की निशानदेही पर कालू के अड्डे पर छापा मारा गया और मौके से कुछ गुंडों के साथ ही कालू भी पकड़ा गया । गुंडों ने बच्चों के अंग भंग की तैयारी पूरी कर ली थी लेकिन ऐन वक्त पर दयाल ने सबको बचा लिया था । उसी वक्त पुलिस की एक टीम ने सुरेंद्रनगर पुलिस के सहयोग से असलम भाई के अड्डे पर भी छापा मारा । अपने कई सहयोगियों के साथ ही असलम भाई भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया था ।
थाने में पहुँच कर दयाल ने शर्मा व उनके साथियों को कार्रवाई में सहयोग करने के लिए धन्यवाद दिया ।
विनोद व राहुल को विशेष धन्यवाद देते हुए दयाल ने उन्हें शर्माजी के साथ विदा कर दिया । बंटी भी उनके साथ ही था । दयाल ने मनोज सहित सभी बच्चों को उनके घरों तक पहुँचाने का इंतजाम कर दिया । विनोद को अपने शहर के थाने पर पहुंचते पहुंचते रात के आठ बज गए थे ।थाने पर कई उच्चाधिकारी व कई अखबारों के पत्रकार  अपने कैमरों के साथ मौजूद थे । इस बीच कई बार कल्पना का फोन आ चुका था । अपने बेटे से मिलने को वह जहाँ बेताब थी वहीँ राहुल भी अपनी माँ की गोद में सर रखकर रो कर अपने गलतियों की माफ़ी मांगने के लिए उतावला हो रहा था ।
रात लगभग नौ बजे विनोद जब पुलिस की गाड़ी से राहुल के साथ अपने घर पहुंचा वहां का नजारा देखकर वह हैरान रह गया । सैकड़ों लोगों की भीड़ उसके घर के सामने जमा थी । ऐसा लग रहा था मोहल्ले के सारे लोग किसी बड़े नेता की अगवानी के लिए खड़े हों ।
विनोद ने अपने घर में प्रवेश किया । अपनी दादी और दादाजी के चरण स्पर्श कर राहुल अपनी माँ की गोद में जा बैठा । उसे अपने सीने से लिपटाती हुयी कल्पना फूट फूट कर रो पड़ी   वह बहुत कुछ कहना चाहती थी लेकिन उसकी जुबान ने उसका साथ नहीं दिया । जुबान की कमी कुछ हद तक आंसुओं ने पूरी कर दी थी । माँ बेटे का यह करूण रुदन सभी को भावुक बना गया । एक एक कर लोग आते और विनोद और राहुल से हालचाल पूछ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते और निकल जाते ।
इन बीन बुलाये मेहमानों को विदा करते करते काफी रात हो गयी थी । नतीजतन सुबह राहुल की नींद बड़ी देर से खुली ।
आँखें मलते हुए राहुल ने हॉल में प्रवेश किया । कुछ पड़ोसियों के साथ उसके दादाजी व पापा भी अखबार पढ़ रहे थे । राहुल ने भी उत्सुकता से वहीँ रखे एक स्थानीय अखबार की प्रति उठाई और उसका मुख्य पृष्ठ देखकर दंग रह गया ।
उस स्थानीय अखबार में मुख्य पृष्ठ पर उसका स्वयं का फोटो छपा हुआ था और उसके नीचे ही हथकड़ियों में जकडे असलम भाई की तस्वीर भी थी ।  बड़े बड़े अक्षरों में समाचार का शीर्षक लिखा हुआ था ‘ नगराध्यक्ष पंडित रामसनेही गिरफ्तार ‘

★★★★★★★★इति शुभम ★★★★★★★★★

 

ईस लघु उपन्यास के प्रकाशन के दौरान आप सभी पाठकों से मिले प्यार व स्नेह से अभिभूत हूँ । इस कहानी को पसंद करने , प्रतिक्रियाएं लिखने तथा समय समय पर मार्गदर्शन करते रहने के लिए मैं हृदय की गहराइयों से आप सभी का शुक्रगुजार हूँ !

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।