कहानी

कुसूरवार (कड़ी १)

प्रज्ञा के मन मष्तिष्क में एक ही बात बार बार आ रही थी , कि वह कुसूरवार हैं । शायद यह उसकी आत्म ग्लानि ही थी , खुद से खुद वह वर्षों से लड़ रही थी । ऐसा नहीं उसके मन की बात उसतक ही सिमित थी , पर उसकी आत्मा का बोज़ दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था ।
प्रज्ञा , चाहते हुए भी अपने अतीत से नहीं निकल पा रही थी । जब भी कुछ सोचती , उसके सामने अनेकों सवाल खड़े मिलते ।
प्रज्ञा , मेरे कहानी की नायिका । आप जानना चाहेंगे न कौन है यह प्रज्ञा । आईये आपको उसके घर ले चलती हूँ ।

एक बड़ा सा शहर , उस शहर में एक फ्लैट एक बेड रूम , हॉल , किचन का , उसमें रहते हैं कुल तीन लोग , वर्षा , संजय (प्रज्ञा के माता पिता) और नन्ही सी प्रज्ञा ।

वर्षा और संजय की शादी , किस तरह से हुई एहि सोच रहें होंगे न आप । शायद नहीं शादी तो शादी है , क्या फर्क होता है ?
वर्षा और संजय दोनों का है परिवार बड़ा था । विडम्बना कहेंगे या कुछ और पता नहीं शायद नियति का खेल । दोनों के पिताजी ने दूसरी शादी कर ली थी । वर्षा पहली पत्नी से पैदा हुई थी । पांच बच्चों में उसका नंबर तीसरा था । नयी माँ के आने के बाद जो होता है आम तौर पर वही हुआ था । नयी माँ तो नयी माँ ही होती है । संयुक्त परिवार में चाचा चाची , के बीच उनकी परवरिश हो रही थी , पर माता पिता का प्यार !
उस दौरान लड़कियों की शिक्षा पर भी ध्यान नहीं दिया जाता था , सो वर्षा को मुश्किल से तीसरी कक्षा तक पढ़ाया गया फिर उनका स्कुल जाना बन्द हो गया । वर्षा की माँ की एक सहेली थी , जो अक्सर उनके घर आया जाया करती थीं । उनके कोई औलाद नहीं थी । वर्षा से वे बेहद प्यार करतीं थी ।
वर्षा के पिताजी ने उनके दुःख को देखते हुए वर्षा को उन्हें सौंप दिया यह कहकर अब से यह तुम्हारी बेटी है । अब वर्षा को एक पिता और माँ मिल गए थे । चाचा चाची के तानों से बाहर आ गयीं थी पर कहते है न बालमन में जो बीज बो दिया जाए वो अपनी जड़ जमा लेता है , शायद ऐसा ही कुछ वर्षा के साथ भी हुआ था । वो अपने माता पिता के प्यार से वंचित रही मन ही मन शायद वो उनको कभी माफ़ नहीं कर पायीं थी।

दूसरी और संजय भी एक बड़े परिवार से थे , संजय के दादाजी एक गाँव के ज़मींदार थे , उनके चार बेटे और सात बेटियां थी । उनके देहांत के बाद उनकी ज़मींदारी को कोई नहीं संभाल पाया । उनके बड़े बेटे को फ़िल्मो का बहुत शौक़ था , उनके तीन बेटे थे , तीन बेटे को जन्म देने के बाद उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया । परिवार के लोगों के कहने पर उनका दूसरा विवाह करवा दिया गया । उनके बाकि सभी भाइयों ने भी गाँव छोड़ दिया और सभी अपनी अपनी राह चल दिए थे ।
यह जो दूसरी पत्नी आयीं थी , उस वक़्त संजय की उम्र कुछ नौ साल की रही होगी । नयी माँ और संजय की उम्र में ज्यादा फासला न था , नयी माँ को वे स्वीकार न कर पाये और ना ही नयी माँ संजय को माँ का प्यार दें पायीं , संजय ने मौका देखा और घर छोड़ दिया । भटकते भटकते वे अपने तीसरे नंबर के चाचा के पास पहुँच गए । जहाँ उन्होंने बारहवी तक की पढ़ाई पूरी की और एक लांड्री में काम करने लगे । संजय की एक बुआ वर्षा के दूसरे नंबर के चाचाजी से ब्याही गयीं थी । सो संजय का आना जाना वहां रहता था ।
वहीँ वर्षा के पिताजी ने संजय को वर्षा के लिए पसन्द कर लिया और दोनों की शादी कर दी गयी ।
दोनों अपने छोटे से फ्लैट में रहने लगे । शादी के दो वर्ष बाद प्रज्ञा का जन्म हुआ ।

क्रमशः

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377