सामाजिक

सुप्रीम कोर्ट की चाल

गत् मंगलवार को रामजन्मभूमि-बाबरी मस्ज़िद मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह सलाह देकर कि मामले का समाधान आपसी बातचीत के द्वारा निकालना ज्यादा अच्छा होगा, अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की है। सुप्रीम कोर्ट अपने दायित्वों से भागने की कोशिश कर रहा है, जिसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती। कल को सुप्रीम कोर्ट यह भी सलाह दे सकता है कि सेना और आतंकवादी मिलबैठकर कश्मीर में पत्थरबाज़ी रोकने का समाधान निकाल लें तो बहुत अच्छा होगा। तीन तलाक के मुद्दे पर भी कोर्ट कह सकता है कि मौलाना और मुस्लिम महिलाएं बातचीत से समाधान तलाश करें।

मन्दिर-मस्ज़िद विवाद कितना जटिल है, सुप्रीम कोर्ट को पता होना चाहिए। सन्‌ १५२८ में बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा तोड़े जाने के पूर्व वहां एक भव्य राम मन्दिर था। हिन्दू धर्म में आस्था रखनेवालों का यह अटूट विश्वास है कि प्रभु श्रीराम का जन्म वहीं हुआ था। हिन्दुओं ने रामजन्मभूमि फिर से प्राप्त करने के लिए असंख्य संघर्ष किए हैं। अकबर के समय भी तुलसीदास ने वहां रामकथा कहने का निर्णय लिया था। जनमानस के दबाव में वहां राम चबूतरा बनवाकर अकबर को रामकथा की अनुमति देनी पड़ी। मन्दिर-मस्ज़िद का मामला पहली बार अदालत में तब पहुंचा जब एक हिन्दू पुजारी ने १८८५ में एक याचिका दायर करके मस्ज़िद के बगल में मन्दिर बनाने की इज़ाज़त मांगी। काशी और मथुरा में मन्दिर और मस्ज़िद साथ-साथ हैं। हालांकि वहां भी मन्दिर तोड़कर ही मस्ज़िद बनाई गई थी, लेकिन वर्तमान में न कोई तनाव है और ना ही कोई विशेष विवाद है। कोर्ट ने समस्या का कोई समाधान नहीं निकाला और समस्या बनी रही। लगभग ६५ वर्षों के बाद सन्‌ १९४९ में मस्ज़िद में जिसे हिन्दू मन्दिर का गर्भगृह मानते हैं प्रभु श्रीराम का विग्रह प्रकट हुआ और उस समय से लगातार हिन्दू वहां पूजा-अर्चना करने लगे। तात्कालीन कांग्रेस सरकार ने मस्ज़िद से मूर्ति हटाने का प्रयास किया लेकिन १९५० में महन्थ परमहंस रामचन्द्रदास ने अदालत से मूर्ति न हटाए जाने की गुहार की और मूर्ति यथावत रही और अखंड कीर्तन भी जारी रहा। १९५९ में निर्मोही अखाड़ा ने परिसर के स्वामित्व का दावा कोर्ट में ठोका जिसकी प्रतिक्रिया में सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ़ बोर्ड ने भी १९६१ में अपना दावा ठोका। कोर्ट में मामला चलता रहा।

इसी बीच विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल पर भव्य मन्दिर की स्थापना के लिए एक देशव्यापी प्रभावी आन्दोलन आरंभ किया। फ़ैज़ाबाद की ज़िला अदालत ने १९८६ में विवाद का आंशिक समाधान तलाशते हुए गर्भगृह का ताला खुलवाया और पूजा करने की अनुमति प्रदान की। इस निर्णय के विरोध में बाबरी मस्ज़िद एक्शन कमिटी का गठन किया गया। उनके विरोध को नज़रअन्दाज़ करते हुए तात्कालीन प्रधान मन्त्री राजीव गान्धी ने विश्व हिन्दू परिषद को १९८९ में विवादित स्थल के समीप ही मन्दिर के शिलान्यास की अनुमति प्रदान की और शिलान्यास कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न भी हो गया। सितंबर १९९० में भव्य राम मन्दिर निर्माण के लिए विश्व हिन्दू परिषद द्वारा चलाए जा रहे प्रबल जन आन्दोलन का भारतीय जनता पार्टी का सक्रिय सहयोग मिला। श्री लालकृष्ण आडवानी ने मन्दिर निर्माण के समर्थन में ऐतिहासिक रामरथ-यात्रा निकाली। आन्दोलन को खत्म करने की नीयत से तात्कालीन प्रधान मन्त्री वी. पी. सिंह ने एक अध्यादेश लाकर विवादित भूमि विश्व हिन्दू परिषद को देने की तैयारी कर ली थी, तभी रथयात्रा के दौरान बिहार के समस्तीपुर में आडवानी को गिरफ़्तार करके लालू यादव ने सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। रामजन्मभूमि आन्दोलन थमने के बजाय वृहद्‌ रूप लेता गया जिसकी परिणति कारसेवकों द्वारा विवादित ढांचे को ६, दिसंबर १९९२ में जबरन गिराए जाने के रूप में हुई। विवादित स्थल पर एक अस्थाई मन्दिर का निर्माण भी आन्दोलन के दौरान कर दिया गया लेकिन सरकारी हस्तक्षेप के कारण मन्दिर की छत नहीं पड़ पाई। आज की तारीख में वहां मूर्ति भी है, तिरपाल की छत के साथ एक छोटा मन्दिर भी है तथा पुलिस की देखरेख में पूजा-अर्चना भी चल रही है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्वामित्व का मामला फिर गरमाया। कोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्त्व विभाग ने मन्दिर के पास काफी खुदाई कराई और १५२८ के पूर्व वहां मन्दिर होने के अनेक साक्ष्य प्राप्त किए जिसके आधार पर ३०, सितंबर २०१० को हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाया जिसके अनुसार विवादित परिसर की एक तिहाई जमीन मुसलमानों को और शेष दो तिहाई जमीन हिन्दुओं को देने का आदेश पारित किया गया। लेकिन कोर्ट ने गर्भगृह पर रामलला का ही स्वामित्व स्वीकार किया। मुसलमानों ने कोर्ट के इस फैसले को स्वीकार नहीं किया और सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी आदत के अनुसार बड़ी आसानी से हाई कोर्ट के  आदेश पर मई २०११ में स्टे लगा दिया। मामला आज भी वहां लंबित है। ६ साल के बाद टालने के अंदाज़ में सुप्रीम कोर्ट ने आपसी बातचीत के द्वारा समाधान निकालने की सलाह दी है। ऐसा नहीं है कि आपसी बातचीत द्वारा समाधान निकालने के प्रयास नहीं हुए हैं। १९९० में स्व. चन्द्रशेखर के प्रधान मन्त्री के काल एवं उसके बाद स्व. नरसिंहा राव के प्रधान मन्त्री के काल में भी दोनों पक्षों के धार्मिक नेताओं द्वारा स्वयं प्रधान मन्त्री के सक्रिय सहयोग से वार्ताओं के कई दौर चले लेकिन सफलता दूर की कौड़ी रही। सन्‌ २००२ में प्रधान मन्त्री बनने के बाद श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधान मन्त्री कार्यालय में अलग से एक अयोध्या सेल का गठन किया और वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी श्री शत्रुघ्न सिंह उसके प्रभारी बनाए गए। वार्ताओं के कई दौर चले लेकिन मुस्लिम धार्मिक गुरुओं की हठधर्मी के कारण कोई परिणाम नहीं निकल सका। सुप्रीम कोर्ट की सलाह के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सेक्रेटरी जेनरल मौलाना वली रहमानी ने  कहा है कि वार्त्ता से समस्या का समाधान निकलना असंभव है। इस मुकदमें पर निर्णय सुप्रीम कोर्ट को ही लेना होगा।

सुप्रीम कोर्ट को यह समझना चाहिए कि समाधान के जब सारे रास्ते बंद हो गए, तभी दोनों पक्ष उसकी शरण में गए। सुप्रीम कोर्ट को अपना प्रो-सेकुलर चरित्र का त्याग करते हुए मुकदमे की त्वरित सुनवाई करनी चाहिए। समझ में नहीं आता है कि आतंकवादियों के मुकदमें सुप्रीम कोर्ट रात में भी सुनता है, गोवा में सरकार बनाने के राज्यपाल के आमंत्रण पर विचार करने के लिए मा. मुख्य न्यायाधीश रात के १२ बजे भी कांग्रेसियों के लिए अपने दरवाजे खोल देते हैं और राम मन्दिर के मुकदमे की त्वरित सुनवाई करने के बदले सिर्फ सलाह देकर छुट्टी पा लेते हैं। क्या कश्मीर समस्या का समाधान बातचीत से संभव है? क्या ISIS को बातचीत के माध्यम से आतंकवाद से विमुख किया जा सकता है? हमारी समझ से कभी नहीं। उसी तरह बातचीत से मन्दिर-मस्ज़िद विवाद के निपटारे की बात सोचना दिवास्वप्न के अलावे और कुछ भी नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मुसलमानों को हजार वर्ष बाद देश के दोनों बड़े समुदायों के बीच सौहार्द्र स्थापित करने का एक सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है, लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं कि वे इसका सदुपयोग नहीं कर पायेंगे।

 

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.