कविता

दर्पण

मैं भी वही हूँ,
ये दर्पण वही है,
दिखता है जो चेहरा…
वो बदल सा गया है !

बुढ़ा गया है,
शायद ये दर्पण !
थका हुआ,
अधेड़ सा चेहरा
ये दिखला रहा है !
मैं भी वही हूँ…..

कुछ – कुछ ये चेहरा
मेरी तरह है !
पर चेहरे पे कुछ झुर्रियां
ये दिखला रहा है
हाँ ! ये दर्पण बुढ़ा गया है ! !
यकीनन ये दर्पण बुढ़ा गया है ! !

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed