धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

निरोगी जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र

“निरोग जीवन” एक ऐसी विभूति है जो हर किसी को अभीष्ट है .कौन नहीं चाहता कि उसे चिकित्सालयों-चिकित्सकों का दरवाजा बार-बार न खटखटाना पड़े,उन्हीं का, ओषधियों का मोहताज होकर न जीना पड़े.
पर कितने ऐसे हैं जो सब कुछ जानते हुए भी रोग मुक्त नहीं रह पाते ?
यह इस कारण कि आपकी जीवन शैली ही त्रुटि पूर्ण है मनुष्य क्या खाये, कैसे खाये! यह उसी को निर्णय करना है .
आहार में क्या हो यह हमारे ऋषिगण निर्धारित कर गए हैं .
वे एक ऐसी व्यवस्था बना गए हैं, जिसका अनुपालन करने पर व्यक्ति को कभी कोई रोग सता नहीं सकता .आहार के साथ विहार के संबंध में भी हमारी संस्कृति स्पष्ट चिन्तन देती है,
इसके बावजूद भी व्यक्ति का रहन-सहन, गड़बड़ाता चला जा रहा है .प्रत्येक के लिए जीवन दर्शक कुछ सूत्र दिए हैं जिनका मनन अनुशीलन करने पर निश्चित ही स्वस्थ, नीरोग,
शतायु बना जा सकता है .सामान्यतया मनुष्य अध्यात्म को जप-चमत्कार, ऋद्धि-सिद्धियों से जोड़ते हैं,किंतु जिसने जीवन सही अर्थों में सीख लिया उसने सब कुछ प्राप्त कर लिया .
जीवन जीने की कला का पहला ककहरा ही सही आहार है. इस संबंध में अनेकानेक भ्रान्तियाँ है कि क्या खाने योग्य है क्या नहीं ? ऐसी अनेकों भ्रान्तियों यथा नमक जरूरी है, पौष्टिता संवर्धन हेतु वसा प्रधान भोजन होना चाहिए, शाकाहार या मांसाहार जो तल-भूनकर स्वाद के लिए वह खा रहा है वह खाद्य है या अखाद्य इसका मनुष्य विचार करें ,सही आहार का चयन करें क्योंकि यही उसकी बनावट नियन्ता ने बनायी है तथा उसे और अधिक विकृति न बनाकर अधिकाधिक प्राकृतिक् रूप में लें.
अनेक व्यक्ति यह जानते नहीं हैं कि उन्हें क्या खाना चाहिए, क्या नहीं ? उनके बच्चों के लिए सही सात्विक संस्कार वर्धक आहार कौन सा है, कौन सा नहीं ? सही, गलत की पहचान कराते हुए की एक क्रांति आहार संबंधी होनी चाहिए, पाककला में परिवर्तन कर जीवन्त खाद्यों को निष्प्राण बनाने की प्रक्रिया कैसे रोकी जाय, यह मार्गदर्शन भी चाहिए . अंकुरित मूँग-चना-मूँगफली-हरी सब्जियों के सलाद आदि की व्यवस्था कर सस्ते शाकाहारी भोजन व इनके भी व्यंजन कैसे बनाये जायँ ,हमारी जीवन शैली में कुछ कुटेवें ऐसी प्रेवश कर गयी हैं कि
वे हमारे ‘स्टेटस’ का अंग बनकर अब शान का प्रतीक बन गयीं हैं .इनमें हैं तम्बाकू का सेवन, खैनी, पान मसाले या बीड़ी-सिगरेट के रूप में तथा मद्यपान .दोनों ही घातक व्यसन हैं .
दोनों ही रोगों को जन्म देते हैं.काया को व घर को जीर्ण-शीर्ण कर बरबादी की कगार पर लाकर छोड़ देते हैं .
इनका वर्णन विस्तार से वैज्ञानिक विवेचन हो कर इसे छोड़ने का आव्हान होना चाहिए .
इन सबके अतिरिक्त जीवन का एक महत्वपूर्ण सूत्र है हमारा रहन-सहन .
हम क्या पहनते हैं ? हमारी जीवनचर्या क्या है ?इन्द्रियों पर हमारा कितना नियंत्रण है ? क्या हमारी रहने की जगह में धूप व प्रचुर मात्रा में है या हम सीलन से भरी बंद जगह में रहकर स्वयं को धीरे-धीरे रोगाणुओं की निवास स्थली बना रहे है.आभूषणों, सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग, नकली मिलावटी चीजों का शरीर पर व शरीर के अन्दर प्रयोग यह सब हमारे स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डालता है यह बहुसंख्य व्यक्ति नहीं जानते .हमारी जीवन-शैली कैसे समरसता से युक्त, सुसंतुलित एवं तनावमुक्त बने, यह शिक्षण जीवन जीने की कला का सर्वांगपूर्ण
शिक्षण है , जीवन शैली ,आहार-विहार का क्रम बदल कर हर व्यक्ति अच्छा जीवन जी सकता है.

प्रतिभा देशमुख

श्रीमती प्रतिभा देशमुख W / O स्वर्गीय डॉ. पी. आर. देशमुख . (वैज्ञानिक सीरी पिलानी ,राजस्थान.) जन्म दिनांक : 12-07-1953 पेंशनर हूँ. दो बेटे दो बहुए तथा पोती है . अध्यात्म , ज्योतिष तथा वास्तु परामर्श का कार्य घर से ही करती हूँ . वडोदरा गुज. मे स्थायी निवास है .