गीतिका/ग़ज़ल

मेरा नाम होने लगा है

शहर की गलियों में चर्चा आम होने लगा है।
एक तेरे नाम से अब मेरा नाम होने लगा है ।।

वो जो बैठे थे अब तलक मुँह पर ताले डाले ।
ज़ुबाँ से उनकी भी अब ये काम होने लगा है।।

कोई बोला निगाहन और कोई जुबानी बोला।
हवाओं का रुख़ कुछ बेलगाम होने लगा है ।।

कौन कहता है बेकारी भरी है इस दुनिया में ।
हर तरफ हर शहर रोज़ ही झाम होने लगा है।।

वो चौबारे जो एक मुद्दत पड़े रहे थे सुनसान ।
मुद्दा ए चर्चा ए इश्क वो मुकाम होने लगा है ।।

शौक ए ज़माना की बात क्या कहें अब तुमसे।
कल के अखबार ख़बर ए इंतजाम होने लगा है ।।
प्रियंवदा अवस्थी©2015

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।