कविता

भूत, भविष्य, वर्तमान

भूत, भविष्य, वर्तमान,
मानव के हैं तीन वस्त्र।
भूतकाल के वस्त्र बदलकर,
वर्तमान में रह लो मस्त।
जो भविष्य की चिंता में चिंतित,
सदा रहे वह मानव त्रस्त।
भूतकाल की जो कमियाँ थी,
वर्तमान में शोधन कर।
भविष्य और अधिक उज्वल हो,
इसका भी अनुमोदन कर।
जो बीता, वह सीखा गया,
आज सीख, कल उद्बोधन कर।
अ कीर्तिवर्धन