राजनीति

बढती जनसंख्या विकास के मार्ग में अवरोधक

बेहताशा बढती जनसंख्या हमारे देश के विकास क्रम में अवरोधक होने के साथ ही हमारे आम जन जीवन को भी दिन-प्रतिदिन प्रभावित कर रही है। विकास का मॉडल व कोई भी परियोजना वर्तमान जनसंख्या दर को ध्यान में रखकर बनायी जाती है पर अचानक आबादी में इजाफा होने के कारण परियोजना का जमीनी धरातल पर साकार हो पाना दूभर हो जाता है। जिसके परिमाणस्वरुप विकास धरा का धरा रह जाता है। ये साफ तौर पर जाहिर है कि जैसे-जैसे भारत की जनसंख्या बढेगी वैसे-वैसे गरीबी का रुप भी विकराल होता जायेगा। महंगाई बढती जायेगी और जीवन के अस्तित्व के लिए संघर्ष होना प्रारंभ हो जायेगा। इन्हीं समस्त समस्या पर जन साधारण का ध्यान केंद्रित करने के लिए वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के संचालक परिषद ने 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाने का फैसला लिया।

अभी हाल में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या 2024 तक चीन की भारी आबादी को पीछे छोड़कर काफी आगे निकल जायेगी। सन 2100 तक भारत दुनिया का सबसे बडी जनसंख्या वाला देश बन जायेगा। अभी तेजी से बढ़ने वाली जनसंख्या वाले दुनिया में 10 देश हैं। जिनमें चीन, भारत, नाईजीरिया, काँगों, पाकिस्तान, इथियोपिया-तंजानिया, संयुक्त राष्ट्र, युगांडा, इंडोनेशिया और मिश्र शामिल हैं। इनमें से नाईजीरिया की आबादी बडी तेजी से बढ़ रही हैं। संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या पुनरिक्षण 2017 के एक अनुमान के अनुसार भारत की आबादी 2030 में 1.5 बिलियन हो जायेगी। अभी चीन की आबादी 1.41 बिलियन के लगभग है और भारत की जनसंख्या 1.34 बिलियन हैं। इन दोनों देशों में दुनिया की सबसे ज्यादा 18-19 प्रतिशत मानव बसाव रहती है। चीन के मुकाबले भारत की ये बढ़ती हुई जनसंख्या की खबर सुनकर हम खुश तो हो सकते हैं परंतु ये आगे चलकर एक गंभीर समस्या बनेगी।

सवाल है इस बढती जनसंख्या के लिए जिम्मेदार कौन है ? दरअसल‚ जितनी सरकार जिम्मेदार नजर आती है उससे कई अधिक जिम्मेदार भारत की आम जनता यानि हम और आप है। आखिर हम क्यूं भूखे और नंगों की तादाद खडी करने में तुले हुए है ? सरकार अपना वोटबैंक सुरक्षित करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण अभियान व योजनाओं को हल्के में जाने देती है। वरन् इतिहास गवाह है कि इंदिरा गांधी को जनसंख्या नियंत्रण के लिए पुरुष नशबंदी के कारण सत्ता से बेदखल होना पडा था। आखिर कोई सरकार क्यूं अपने ही हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाडी चलायेगी ! इन्हीं सब कारणों की वजह से एक बच्चा नीति भारत में लागू हो पानी अंसभव-सी प्रतीत होती है। हकीकत तो यह की हम दो बच्चे ही अच्छे के सिद्धांत से भी कोसों दूर है। यदि आंकडों के अनुसार देखे तो आजादी के समय भारत की जनसंख्या 34 करोड़ थी जो जनसंख्या सर्वेक्षण रिर्पोट 2011 के मुताबिक भारत की आबादी बढकर लगभग 121.5 करोड़ हो गई है तथा साल 2017 तक हमारे देश की कुल आबादी लगभग 133 करोड़ से अधिक आंकी जा रही है। देश की कुल आबादी में 62.31 करोड़ जनसंख्या पुरुषों की व 58.47 करोड़ जनसंख्या महिलाओं की है। सर्वोधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश है जहां की कुल आबादी 19.98 करोड़ है तो वहीं न्यूनतम आबादी वाला राज्य सिक्किम है जहां की कुल आबादी लगभग 6 लाख है।

हमारे देश में बढती जनसंख्या के कारण भारी मात्रा में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो रहा है। अलबत्ता जिसके कारण देश में भूखमरी, पानी व बिजली की समस्या, आवास की समस्या, अशिक्षा का दंश, चिकित्सा की बदइंतजामी व रोजगार के कम होते विकल्प इत्यादि प्रकार की समस्याओं से जूंझना पड रहा है। हमारे देश में विशाल होती जनसंख्या का एक कारण पुरुषवादी मानसिकता का होना भी है। घर चलाने व वंश की पहचान के तौर पर बेटे के इंतजार में बेटियों की संख्या में वृद्धि कर लंबा-चौड़ा परिवार बढाया जाता है। वहीं सरकार द्वारा निर्धारित उम्र से कम उम्र में बालविवाह कराये जाने से भी जनसंख्या का भार बढ रहा है। देश की अधिकांश आबादी निरक्षर होने के कारण वे देश व अर्थव्यवस्था पर पड रहे जनसंख्या के प्रतिकूल प्रभावों से अछूते ही रहते है। यह सच है कि आज कई राज्यों की राज्य सरकारे इस विषय को गंभीर हुई है। जिसके परिणामस्वरूप असम की राज्य सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए दो से अधिक संतान वाले लोगों को सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य करार दिया। वहीं राजस्थान सरकार ने शगुन में निरोध देने जैसे योजनाओं को संचाालित कर जनसंख्या नियंत्रण में योगदान किया। ध्यान रहे कि बढती जनसंख्या पर अंकुश और देश का विकास दोनों ही आम जनता और सरकार के हाथों में है। अब ऐसे में सोचना दोनों को है। क्या हम जनसंख्या की तीव्र वृद्धि कर भविष्य का खतरा तो मौल नहीं ले रहे है ?

जरुरत है कि सरकार इस दिशा में मुहिम चलायें और एक या दो बच्चा नीति की अनुपालना राष्ट्रीय स्तर पर हो। सरकारी कर्मचारियों व आरक्षण के भुगतभोगियों के लिए एक बच्चा नीति चलायी जायें। ताकि वे आरक्षण व सरकारी ओहदे का बाँड भर सके। सरकार पदोन्नति के लिए भी बच्चों की संख्या को आधार मानें। उदाहरण के तौर पर एक बच्चे वालों को पहले और दो या दो से अधिक बच्चें वालों को उसके बाद प्रोमोशन प्रदत्त करे। साथ ही परिवार नियोजन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यौनाचार के लिए निरोध, गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल, पुरुष व महिला नशबंदी काफी हद तक बढती जनसंख्या की रफ्तार थामने में कारगर साबित हो सकती है। तद्परांत हमें देश की उन्नति के साथ अपने सुरक्षित भविष्य व बेहतर जीवन की अभिलाषा के लिए आज और अभी से सचेत होना होंगा।

– देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com