कविता

माता-पिता

मेरे लिए तो…
हर दिन ही मातृ- पितृ दिवस!
पलभर के लिए भी ये दोनों
ओझल नहीं होते मेरी यादों से….
लेकिन, फिरभी..
जब भी ! किसी खास दिन
कानों में गूंजता है
मातृ, पितृ दिवस का शोर !
तो, आँखें नम और
मन शांत हो जाता है
चाहती हूँ लिखूं मैं भी !
एक मर्मस्पर्शी कविता पर….
पर क्या करूँ !
कलम साथ नहीं देती
खामोश… चुप्पी साध लेती…
शायद, यही सोचती!
कैसे चुका पाएगी
उनके प्यार को चंद गिने-चुने शब्दों
के अल्फाजों से
इसी ख्याल से, भावनाएं मन में दबाए
चुपचाप रोती हूँ मैं और मेरी कविता
और देखते ही देखते….
गीले हो जाते हैं
कुछ लिखने से पहले ही
कोरे पन्ने
जिस पर चलने से भी
सिसकती है मेरी कलम;
हाँ! नहीं लिख पाती मैं
अपने स्वर्गीय माता-पिता का
अनमोल हीरे जैसा प्रेम
जिसकी चमक से!
उजियारा हो उठा मेरा जीवन
उनके दिए शिक्षा, संस्कार, प्यार
जिसने समाज में दिया मुझे
गर्व से जीने का अधिकार;
अहम है माँ-बाप का जीवन में होना..
वर्ना ! ये कमी उम्र भर खलती है
आगे कुछ और लिखने का सामर्थ्य नहीं
थरथराने लगी है उँगलियाँ अब
बस इतना ही….
मेरे पूज्य माता-पिता को मेरा शत-शत नमन।

*बबली सिन्हा

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