गीत/नवगीत

देख तमाशा कुर्सी का

देख तमाशा कुर्सी का
घर में घमासान मच गया, बाप बेटे का द्वन्द हो गया।
अपनी अपनी पकेगी खिचडी, भण्डारा अब बन्द हो गया।

मै तो एक कुर्सी हूं
अलंकार न कोई मुझमें, फिर मेरी गजब की शोभा-
न मै रंभा, न मै मेनका, न मै उर्वसी जैसी हॅू
मै तो एक कुर्सी हूं

घर में घमासान मै कर दूं, रंक में अहंकार मै भर दूं,
रस से भरे है पाये मेंरे, मै तो सागर जैसी हॅू।
मै तो एक कुर्सी हूं

मेरी खातिर कौन लडेगा मेरा चेहरा कौन पढेगा।
परवाह नही है मुझको इसकी हूँ तन्हा पर बज्म के जैसी हूूूं।
मै तो एक कुर्सी हूं

विछडों को मै मिलवा देती, अपनों को मैं छुडवा देती।
तकदीर मुझको कोई माने, किसी के लिये समसीर जैसी हॅू।
मै तो एक कुर्सी हूं।

कई मालदार लडेगें, कई चौकीदार लडेगे।
किसके दामन में जाउंगी, अभी तो ‘राज’ जैसी हूं।
मै तो एक कुर्सी हूं।

राजकुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782