तुम कब आओगे
हे प्रियतम! तुम अब आओगे ?
मन मरुथल में प्यास जगी है ,
प्रेम जलद कब बरसाओगे ?
देखों कैसे रजत चाँदनी ,
खेल रही सरिता के तल पर।
सरिता के तन से उलझा हो,
मानो विधु का वसन फिसलकर ।
कब आकर तुम अपने कर से,
मेरी लट को सुलझाओगे ?
हे प्रियतम! …………………….
आधी रात खिली बगिया में,
महक उठी रातों की रानी ।
मुझे जलाती ,लेकर आती –
सौरभ,निष्ठुर हवा दिवानी ।
मन विह्वल है,कब आकर
-तुम मेरी रातें महकाओगे?
हे प्रियतम!………………
रोज विरह का गीत सुनाता,
बादल को चातक बेचारा ।
मैं विरहन सब समझ रही हूँ,
क्या समझे बादल आवारा ।
गीत विरह के सह न पाऊँ,
गीत प्रणय के कब गाओगे?
हे प्रियतम!……………….
कारे बदरा आये ,लेकिन
काजल कहाँ सजा पाई मैं?
तेरे बिना महावर,बिंदिया,
लाली कहाँ लगा पाई मैं ?
तभी सजूँगी जब चूड़ी,
लाली, काजल बिंदिया,लाओगे ।
हे प्रियतम!…………….
© डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी