गीतिका
सरे महफिल यूं मुस्कुराना गजब हो गया !
नग्मे गाकर उनको मनाना गजब हो गया !!
खो गई वो बस्तियां खो गये वो काफिले !
मिलकर उनको रिझाना गजब हो गया!!
इश्क तो कीजिये रिहाई नही है मगर !
इबादत करते ही जाना गजब हो गया !!
दे दे वो जो तोहफा तो कर लो कुबूल !
आरजू अपनी जताना गजब हो गया!!
थी उनको भी उम्मीदे इस नाचीज से !
हमसफर उनको बनाना गजब हो गया !!
जख्म न तीरो ने किया न तलवारो से हुआ!
निगाहो का यूं उलझ जाना गजब हो गया !!
होती जो उनसे ही मेरी यारी मेरे खुदा !
महफिल से रूठकर जाना गजब हो गया !!
साज है आवाज है गीत भी धुन भी वही!
वही तेरा तराना पुराना गजब हो गया!!
— प्रीती श्रीवास्तव