कहानी

कहानी : अकेलापन

सुबह के दस बज चुके थे सभी आँफिस पहुँच चुके थे देव हमेशा की तरह लेट था.रोज बाॅस की डाँट खाता था पर उस पर कोई असर नहीं होता था.भरोसेमंद और ईमानदार था इस लिए बाॅस का चहेता था.देव पैतीस साल का था पाँच साल पहले उसकी शादी हो चुकी थी तीन साल के दो जुड़वा बेटे थे.छः साल से बेंगलूर में जाॅब कर रहा है.भोपाल में माँ पापा और एक भाई बहन रहते है.छुट्टियों में ही वह घर जा पाता था.बीबी बच्चे साथ रहते थे.कुल मिलाकर जिन्दगी अच्छे से कट रहीं थी.देव के चेहरे से सिर्फ वर्तमान ही झलकता था भूत या भविष्य की परछाई भी उसे छूकर नहीं गुजरती थी.अपने विचारों में मस्त वह जैसे ही अपने केबिन में दाखिल हुआ कि पीछे से चपरासी की आवाज आई- “देव सर–आपको बाॅस ने बुलाया है”
“ओके,आता हूँ”– देव ने बिना घूमें ही जवाब दिया और बड़बड़ाने लगा- ‘इतनी जल्दी बुलाया,,अभी तो मैने कुछ किया भी नहीं–क्या बात है क्यों बुलाया है’ –फाइलों को व्यवस्थित रख कर वह बाॅस के केबिन की तरफ बढ गया.
“मे आई कमइन सर”
“कमइन–बैठो” –चेयर की तरफ इशारा करते हुए बाॅस बोला
थैक्यू सर–देव अदब से बोला
देव कल तुम्हें अर्जेन्टली आगरा जाना है—एक लेटर देव की तरफ बढाते हुए बाॅस ने कहा
कल सर, वो भी आगरा—-एकदम से उछल पड़ा देव आगरा का नाम सुनकर
हाँ कल–क्यों कोई प्राबलम्—खा जाने वाली नजरों से देखते हुए वो बोला– “एक्चुअली मै नही जा पा रहा हूँ अर्जेन्ट मीटिंग है–तुम्हारे अलावा मै किसी को भेज नहीं सकता”
“ओके बाॅस”–जबरजस्ती ओके करके वह उठकर जाने लगा
“सुनो” –बाॅस ने आवाज दी. देव ने मुड़कर देखा उनके हाथ में एक पार्सल पैकेट था. “ये तुम्हारे नाम से आया है” –शक भरी निगाह से बाॅस ने देखा
“मेरे नाम से–किसने भेजा–कहाँ से आया?” –एक साथ कई सवाल देव ने अनजाने ही बाॅस से कर दिए.
बाॅस ने घूरती नजर से देखा देव को–देव हड़बड़ा गया पार्सल लेकर जल्दी अपने केविन की ओर लपका.वह जल्दी से जल्दी पार्सल देखना चाहता था. अनगिनत सवाल उसके जेहन में कौध रहें थे
जैसे ही पार्सल खोला उसके शरीर में जोरदार करेंट सा लगा.हजारों बिजलियाँ एक साथ गिर गई.धड़कन थम सी गई आँखो में शायद पहली बार नमी आई हो या वर्षो से सूखे बंजर की आज प्यास बुझी हो–पार्सल से निकली वस्तु को वह दोनों हाथों से पकड़ें अतीत की यादों में खोता चला गया.
करीब छः साल पहले की बात थी जब वह दिल्ली में जाॅब करता था.शनिवार रविवार छुट्टी रहती थी.दोस्तों के नाम पर उसके दो दोस्त थे विक्की और शरद..हरिद्वार घूमने का तीनो ने प्लान बनाया.शाम की ट्रेन थी तीनों ने तैयारी की और निकल गये.सुबह हरिद्वार पहुँचा दिया चूँकि तीर्थस्थल है तो वहाँ यात्रियों की भीड़ हमेशा ही बनी रहती है.दिन भर मौज मस्ती करने के बाद तीनों ने प्लान बनाया कि दो दिन और रुका जाये.रात के आठ बज गये एक ढाबे पर खाना खाने के बाद तीनो होटल के लिए निकले होटल में एक ही रूम खाली था तीनों ने ले लिया.चूकि सब थक गये थे तो कुछ देर बातें करने के बाद सो गये.
रात के 11 बज चुके थे अचानक किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी और साथ में किसी महिला की आवाज भी आ रही थी.शायद बगल वाले रूम में कोई ठहरा हुआ था.देव की आँख खुल गई.महिला की आवाज बहुत नजदीक से आने लगी.देव धीरे से उठा और थोड़ा सा दरवाजा खोला तो देखा सामने कुछ दूरी पर एक परछाई सी दिखाई दी.वह शायद पानी लेने आई थी .वह अभी भी बड़बड़ा रही थी.वो वापस आ रही थी शायद उसको पानी नहीं मिला था बच्चे के रोने की आवाज अभी भी आ रही थी .वह लड़की उसके कमरे के पास से गुजर गई देव ने झटके से अपने पानी की बोतल उठाई और उसके पीछे तेजी से लपका
सुनिये,,,,देव ने आवाज दी
पीछे से आवाज सुनकर वह हड़बड़ा गई और अचानक से डर कर पीछे मुड़ी
कौन–डरी सहमी आवाज में बोली वह
जी डरिये नहीं मै बगल के रूम में रूका हूँ आपको शायद पानी चाहिए…बोतल आगे बढाते मुए देव ने कहा था
पहले वह हिचकिचाई पर क्या करती कोई चारा भी नही था सो हाथ बढा दिया
जी…थैक्स…कहकर वह जल्दी से रूम में चली गई
देव वही खड़ा हक्का बक्का सा खड़ा देखता रह गया था उसे..वह बहुत खूबसूरत थी देव की आँखे मुस्कुरा दी थी..वह अपने कमरे में आकर सोने की कोशिश करने लगा.
सुबह सबको हरिद्वार की गंगा नदी में स्नान करने जाना था तो सब जल्दी उठकर तैयार हो गये होटल से दूर थी गंगा जी तो उन्हें बस द्वारा जाना था.बस भी सुना आठ बजे निकल जाती थी.बस निकलने ही वाली थी कि ये तीनों पहुँच गये.बस भर चुकी थी एक दो सीट ही खाली थी देव ने नजर दौड़ाई तो देखा कि रात वाली लड़की एक सीट पर अकेली बैठी हुई थी दूसरी सीट पर दो औरतें और एक देव की ही उम्र का लड़का बैठा था.जिससे वह बाते कर रही थी.उसकी नजर जैसे ही देव पर पड़ी उसने अपनी खाली सीट की तरफ देखा और फिर देव की तरफ.देव को लगा जैसे वह उसे बैठने को कह रही थी.
एस्क्यूज मी..क्या मै यहाँ बैठ सकता हूँ…देव ने हिचकिचाते हुए पूछा था
जी..क्यों नहीं..वह बोली थी
देव के दोस्त पीछे बैठे थे बस चल दी थी कुछ देर दोनो चुपचाप बैठे रहे.अचानक बस में ब्रेक लगे सारे यात्री एक दूसरे पर गिरे.वह लड़की भी देव से टकराई पर जल्दी सम्भल गई.
साॅरी…वह देव की तरफ देखकर बोली थी
देव की सांसे तेज हो गई. एक टक उसकी आँखो में देखता रह गया वह.वह भी मुस्करा दी.देव का रोम-रोम खिल उठा
क्या मै नाम जान सकता हूँ आपका…
शिखा…
कहाँ रहती है..
आगरा..
कब तक रूकेंगी..
कल तक…
आखिरी जवाब सुनकर देव के चेहरे पर उदासी छा गई शिखा ने भी सिर झुका लिया था..
फिर वह दोनो बाते करते रहे शिखा आगरा में किसी कम्पनी में जाॅब करती थी.अपनी भाभी और भाई के साथ घूमने आई थी. जरा देर में ही दोनों बहुत घुलमिल गये थे.
अचानक बस रूकी दोनो को लगा जैसे जिन्दगी रूक गई हो.सभी यात्री उतर चुके थे.देव ने हसरत भरी नजर से देखा शिखा को जैसे कह रहा हो कि काश! सफर जारी रहता.सभी अपने अपने साथियों के साथ चलें गये.देव का तो बिलकुल मन नही लग रहा था .वह जल्दी से जल्दी होटल पहुँच जाना चाहते थे.
गंगा स्नान के बाद दोनों दोस्तों ने खूब मस्ती की जबकि देव शिखा को ढूढता रहा.
वहाँ पर उसे कही भी शिखा नजर नही आई घूमते घूमते सात बज गये होटल आ गये थे वो तीनों देव ने शिखा के रूम की तरफ नजर डाली पर उसमें अभी लाॅक लगा हुआ था.एक ठंडी आह भरके वह रूम में घुस गया.दोंनों दोस्त तो एक घंटे बाते करने के बाद सो गये पर देव की ऑखो में शिखा का चेहरा घूम रहा था.वह आ तो गई थी होटल के रूम में पर दिखी नही थी.
आखिर क्यों वह परेशान है इतना शिखा के लिए.क्या उसे प्यार हो गया है.??ढेर सारे सवाल थे.उसके नाम और काम के शिवाय वह शिखा के बारे में जानता ही क्या है.? कल वह भी चली जायेगी और मै भी.क्या अस्तित्व है हमारे प्यार का ? अचानक दिमाग को सात्वना देकर वह सोने की कोशिश करने लगा.
तभी बाहर फिर किसी की आवाज सुनाई दी वह एक झटके में उठा पल में दरवाजा खोला और उसे पानी की ठंकी के पास परछाई दिखी.उसे विस्वास था वह शिखा ही है.वह जल्दी से वहाॅ जा पहुँचा.
शिखा पानी भर रही थी कि अचानक देव ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया और एक पल भी बिना गँवाये वो उसकी आँखो में झाँक कर बोला.
शिखा मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ ….
शिखा ने घबराकर अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की. पकड़ मजबूत होने के कारण वह छुड़ा न सकी
शिखा की नजर नीची होती गई और बिना कुछ बोले उसने अपने हाथ की पकड़ ढीली कर दी. देव का साहस बढा.उसने उसे अपनी तरफ घुमाया. कपकपाते हाथों से उसका चेहरा ऊपर उठाया तो उसकी आँखो में आँसू देखकर वह बेहाल हो गया. वह समझ गया शिखा भी उसे चाहने लगी है
ओह! ये एक पल में हुआ प्यार का क्या अंजाम होगा किसी ने नही सोचा
उसकी झुकी नजरे जैसे कह रही हो कि मुसाफिर भी कभी प्यार करते है क्या.?
देव ने उसे भींच लिया अपनी बाहों में वह भी पलभर के लिये सिमट गई जैसे हिमालय के आगोस में सारा संसार सिमट गया हो
इस प्यार का क्या अंजाम होगा..पूछा था उसने देव से
पता नही…देव ने जवाब दिया था
कुछ देर यूँ ही खड़े रहने के जैसे तन्द्रा टूटी दोंनो की अलग हुए
कल सुबह हम चले जायेंगे..शायद कभी न मिले फिर…शिखा ने कहा था
नहीं…हम मिलेंगे..मै जल्दी ही आऊगा तुमसे मिलने….देव ने उसके दोनो हाथ थामकर कहा था
दोनो ने फोन नम्बर ले लिए थे.किसी की आहट सुनाई दी शायद गेटमैन था .जल्दी हाथ छोड़कर दोंनो अपने अपने रूम की तरफ बढ गये.
सुबह बिना मिले ही दोंनो चले गये थे कुछ समय यूँ ही बीत गया.दोनो ज्यादा से ज्यादा फोन पर बात करते रहते थे.तीन महीने बाद देव ने एक दिन शिखा से कहा कि वह उससे मिलना चाहता है शिखा तो जैसे यही चाहती थी
15 अगस्त की छुट्टियाँ थी तीन दिन की एक दिन मिल रहा था
देव आगरा एक होटल में पहुँच गया था शिखा ऑफिस के लिए निकली थी पर ऑफिस न जाकर होटल आ गई
रूम में पहुँचते ही देव उसको बाहों में भर लेता है जैसे बर्षो के बिछड़े प्रेमी मिल रहे हो पाँच मिनट तक शिखा देव से यूँ ही लिपटी रही.फिर बाते करने लगते है दोनो वही पहली बार देव को पता चलता था कि शिखा शादीशुदा है एक बेटा भी है उसके.देव को सुनकर झटका सा लगता था वह उसके पति के बारे में पूँछा था जो कि ज्यादातर टूर पर रहता था
गहरा संनाटा छा गया था रूम में एक पल के लिए देव को लगा कि क्या उसने गलत कर दिया है
पर प्यार तो प्यार था वह शिखा का सिन्दूर और मंगलसूत्र देखकर नही हुआ था. प्यार अगर समाज की मर्यादाए मानता तो यह किसी को होता ही नहीं..
मै भी तुम्हे उतना ही प्यार करती हूँ जितना तुम मुझे..देव को परेशान देकर अचानक शिखा बोली थी
तुमने पहले क्यों नही बताया शिखा…देव ने पूछा था
तुमने पूछा ही नहीं था…सिर्फ तुम्हें होता तो बताती मै भी तो अनचाही चाहत में सुलगने लगी थी….आसानी से कहा था उसने और अपना सिर टिका दिया था देव के कंधे से..जिस्म छूते ही आकांक्षाए भड़क उठी थी..एक हो जाने को मचल गई तमन्नाऐ.लहू गरम हो रेंगने लगा रूह में..जैसे जन्मों के प्यासे दो पंक्षी तड़फ उठे और समा गये एक दूसरे की बाहों…अंजाम-ए मुहब्बत से बेखबर..
शांम के छः बजे शिखा को घर जाना था 7 घंटे साथ रहने के बाद शिखा चली गई थी देव की ट्रेन रात आठ बजे की थी..दोनो सबकुछ भूलकर बहुत खुश थे
इस तरह देव तीन बार आगरा मिलने आ चुका था.. शिखा के तो जैसे पर लग गये हो जबसे देव से मिली थी वह बहुत खुश रहने लगी थी
फोन पर रोज ही घंटो बात होती थी .एक दिन देव ने बताया कि उसको नई जाॅब मिल गई है.जिसका पैकेज इस जाॅब से दो गुना ज्यादा है.बेंगलूर जाना होगा उसको अब.जिसको सुनकर शिखा के पैरों तले जमीन खिसक गई ये तो उसने कभी सोचा ही नही था कि देव कभी हमेशा के लिए भी उसकी जिन्दगी से जायेगा.वह बहुत रोई थी देव ने कहा वह जाने से पहले मिलने आयेगा एक दिन.वह आया भी
क्या यह आखिरी मिलन होगा उसका..?….काँप रही थी शिखा ये सोच सोचकर
क्या अब कभी नही मिलेगा देव उससे..?….ढेर सारे सवाल कौध रहे थे उसके जेहन में जिनका दोनो के पास कोई जवाब नही था
फिर मिलने का वादा करके देव चला गया था.शिखा फिर से तन्हा और अकेली हो गई थी
बेंगलूर जाकर देव ने कुछ दिन तो शिखा से ठीक से बात की पर कुछ दिन बाद बात करना कम कर दिया ये कहकर कि काम बहुत है. शिखा दिनरात फोन को हाथ में लिए देव का इंतजार करती पर देव खुद में मस्त रहने लगा था
चार छः महीने शिखा ने देव के सुधरने का इंतजार किया आखिर हार गई वह देव भी जैसे भूल ही गया था.उसने पीछे कभी मुड़कर नहीं देखा था.
शिखा देव को समझ ही नही पाई थी अब उसे लगने लगा था कि देव कभी वापस नही आयेगा.पहले ही क्या उसके जाने का दुःख कम था कि बात न करके देव ने और बढा दिया.
बहुत चाहने का दम भरने वाले देव ने फिर कभी जानने की कोशिश नही की थी कि वह किस हाल में जी रही थी.कभी किस्मत को कभी खुद को दोष देती थी वह.नौकरी भी छोड़ दी थी उसने.पूरा दिन घर में पड़ी रहती…देव देव की घंटियाँ उसके दिमाग को शून्य किए दे रही थी
वह समझ ही नही पाई थी देव के प्यार को.इतना प्यार का दम भरने के बाद कैसे कोई इस तरह बदल सकता है.क्या मर्द के लिए औरत का जिस्म ही सबकुछ होता है.इनके लिए भावनाए निरर्थक होती है .क्यो रौदते है ये शरीर के साथ आत्मा भी.?..
क्यों इन मर्दो में दम नही होता है सच कहने का कि उन्हे किसी का दिल नही सिर्फ शरीर चाहिए…?…
क्षण भर की हवस के लिए क्यों इन्हें जिन्दगी भर के लिए झूठा होना पड़ता है…?..
प्यार का भरपूर नाटक कर लेते है ये.
क्या बजूद है समाज में औरत और मर्द का..?ऐसी औरत को समाज औरत के नाम पर धब्बा कहते नहीं चूकता है..मर्द के नाम पर छलावा क्यों नही कहता है कोई..?..
आखिर क्यों औरते सह लेती है चुपचाप ये दर्द..?..
हजारो सवाल रहते थे शिखा के जेहन में पर कोई जवाब नही मिलता था कभी.
या फिर ऐसे रिस्तों का यही अंजाम होता है.
पाँच साल बीत गये थे पर शिखा देव को अभी तक नही भूली थी फोन और मैसेज करना बन्द कर दिया था. इधर देव की शादी हो चुकी थी. उसे ख्याल भी नही आता था कभी शिखा का.वह भूल चुका था शिखा को बिलकुल.
साहब चाय….अचानक चपरासी की आवाज सुनकर चौक गया देव.
उसने हाथ में पकड़े पैकेट को खोला तो उसकी सांसे रूकने सी लगी.हलक से हिचकी निकल गई.देव ने गिफ्ट में शिखा को एक सूट दिया था. ये वही सूट था और साथ में एक पीली सर्ट थी जो शायद शिखा ने पहले देव के लिए खरीदी होगी .देख कर अनायास ही देव के मुह से निकला..
ओह शिखा ! मुझे अभी तक रखा फिर ये गिफ्ट क्यों नही रख पाई.ये क्या किया मैने.?
सर्ट को चूमकर फफक पड़ा देव. शर्ट की जेब से एक कागज गिरा देव ने जल्दी खोला जिसको पढकर तो देव बिलख पड़ा
“देव, मै तुम्हारा अंतिम क्षण हूँ” तुम आज भी मेरे पहले और हसीन पल हो…..तुम्हारी शिखा
जमाने भर की खुशियाँ के बीच देव आज खुद को अकेला पा रहा था.पश्चाताप के आँसू रूकने का नाम नही ले रहे थे.
भविष्य की चाह ने कैसे उसने अतीत को भुलाया था वो भी तो उसकी जिन्दगी का एक हिस्सा था. गलत रिस्ते को भी सही दिशा मिल सकती थी. देव ने निश्चय किया कि वह शिखा आगरा में शिखा से मिलकर ही आयेगा..
नीरू”निराली”

नीरू श्रीवास्तव

शिक्षा-एम.ए.हिन्दी साहित्य,माॅस कम्यूनिकेशन डिप्लोमा साहित्यिक परिचय-स्वतन्त्र टिप्पणीकार,राज एक्सप्रेस समाचार पत्र भोपाल में प्रकाशित सम्पादकीय पृष्ट में प्रकाशित लेख,अग्रज्ञान समाचार पत्र,ज्ञान सबेरा समाचार पत्र शाॅहजहाॅपुर,इडियाॅ फास्ट न्यूज,हिनदुस्तान दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित कविताये एवं लेख। 9ए/8 विजय नगर कानपुर - 208005