गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कांटों मे या गुलाब,, में लिख,
नाम दिल की किताब, में लिख!
इतने सारे सवाल मेरे हैं,
एक ख़त तो ज़वाब, में लिख!
मज़िल या कोई ठिकाना मिले,
किनारे नहीं दोआब, में लिख!
वो चांद भी पूनम का आज,
रोशन है तेरे शबाब, में लिख!
है एक सा नशा दोनो मे,
तुझमे या शराब, में लिख!
सारे पुण्य खुदा तु रखले,
मेरे पाप हिसाब, में लिख!
बस पूरा उपन्यास तेरा है,
‘जय’ को लब्बोलुआब, में लिख!
—  जयकृष्ण चांडक “जय”

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से