लघुकथा

नीम की दातुन

माही ने सारे छोटे गमले ट्रक में सामान के साथ लडवा कर नए फ्लेट की बालकनी में रखवाने को भेज दिए थे ! एक बार अपनी बगिया को बड़े ममत्व से निहारा मानो बगिया की हरितिमा को आँखों से घूँट-घूँट पी रही हो ! फिर बगिया के साथ अपनी और अपनी सात वर्षीया पोती इना की सेल्फी खींची ! माली से बगिया में उपजे छह-सात नीम की नन्ही पोधें निकलवाई और तीन चार अमियाँ की सीपी से प्रस्फुटित नन्हे पोधे निकलवा इना का हाथ थामे सामने ‘होली पार्क ‘ में जा पहुँचीं !
“प्रेमपाल ओ प्रेमपाल ….ये लो नीम और आम की कुछ पोध ! नीम को चारों कोनो में और बीच की पंक्ति में आम लगा देना ! मैं तुम्हे फ्लेट से हर महीने 200 रुपये भिजवाती रहूंगी और खुद भी आउंगी !देखना इन्हें अच्छे से खाद-पानी मिलता रहे !
“आप चिंता ना करो बीवी जी,शिकायत का मौका नहीं दूंगा !” कह कर प्रेमपाल पोधों को लगाने में जुट गया !
“दादी, अब तो हम लोग अपने नए घर में जा रहे हैं तो फिर आप यहाँ इन्हें क्यों लगवा रही हो ?” नन्ही इना के मन का निष्कपट कौतुहल पूछ बैठा !
“इना बेटे,वहां सातवीं मंजिल पर हम गमले ही रख सकते हैं वहां पेड़ तो नहीं उगा सकते !”
“फिर क्या जरुरी है पेड़ उगाना ?” सवाल थे कि ख़त्म नहीं हो रहे थे ,” और आम और नीम ही क्यों ?”
“तुम्हे एक पते की बात बताती हूँ इनू, जब ये पेड़ बनेंगे ना तो पर्यावरण को जीवनदायनी  आक्सीजन देंगे !इनके जो नन्हे पीले फल गिरे हैं ना ज़मीन पर? इन्हें निम्बोरी कहते हैं इन्हें खाने से त्वचा के रोग नहीं होते ….”
“और दादी,इसकी लकड़ी, आप दांत साफ करती हैं उससे ? “इना को याद आ गया तो बात बीच में काट दी !
इना के मुहं से ‘लकड़ी’ शब्द सुनकर माही मुस्कुरा दी,” उसे दातौन कहते हैं दातुन करने से दांत साफ़ ही नहीं बहुत मजबूत भी होते हैं ! पता है अमरीका में 10 दातौन का पेकेट 8 या 9 डॉलर में मिलता है जो हमे मुफ्त में ….”
अब आखिरी सवाल दागा इना ने,” दादी,जब घर में मुफ्त का डॉ है फिर हम लोग क्लोजअप या कॉलगेट क्यों खरीद कर लाते हैं ? अबसे मैं भी नीम दातुन करूँगी !”

पूर्णिमा शर्मा

पूर्णिमा शर्मा

नाम--पूर्णिमा शर्मा पिता का नाम--श्री राजीव लोचन शर्मा माता का नाम-- श्रीमती राजकुमारी शर्मा शिक्षा--एम ए (हिंदी ),एम एड जन्म--3 अक्टूबर 1952 पता- बी-150,जिगर कॉलोनी,मुरादाबाद (यू पी ) मेल आई डी-- Jun 12 कविता और कहानी लिखने का शौक बचपन से रहा ! कोलेज मैगजीन में प्रकाशित होने के अलावा एक साझा लघुकथा संग्रह अभी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है ,"मुट्ठी भर अक्षर " नाम से !