गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका : चूड़ियों के विविध रंग

अभिसार में किसी के खनकती हैं चूड़ियाँ ।
परिणय की सेज पर तो महकती हैं चूड़ियाँ ।।

जिनके कई हैं रंग, और रूप भी कई,
प्रियतम नहीं हैं पास, बिलखती हैं चूड़ियाँ ।

आये बलम विदेश से तो खिल उठे अधर,
तो तोड़ सारे बंध, मचलती हैं चूड़ियाँ ।

जब रात में नयन से नींद दूदूर रहे तब ,
यादों में संग नेह, बहकती हैं  चूड़ियाँ ।

जब रैन हो मिलन की,गीत जब जगे नया ,
हंसती हैं,मुस्कराती,किलकती हैं चूड़ियाँ ।

प्यासी निगाहें खोजती,कोई हमसफर मिले,
मिलता है मन का मीत,तो हंसती हैं चूड़ियाँ ।

अबला समझ के कोई जो,डाले बुरी नज़र,
अस्मत पे अगर वार, बिफरती हैं चूड़ियाँ ।

नारीत्व का वरदान हैं, लज्जा भी  हैं ‘नीलम,
श्रंगार के लिए तो, संवरती हैं चूड़ियाँ ।

डॉ. नीलम खरे

डॉ. नीलम खरे

डॉ.नीलम खरे आज़ाद वार्ड, मंडला (म.प्र) -481661