सामाजिक

सच मानिए ‘आप और हम’ कुछ विशेष है

ये बात तो सब मानते है की भगवान् है हर व्यक्ति की सोच, शारीरिकर मानसिक स्थिति भिन्न बनाई है| हर व्यक्ति आकार प्रकार में दुसरे व्यक्ति से भिन्न है स्वभाव व् गुणों से लेकर हर चीज़ सब में अलग-अलग है निराली है क्या अपने कभी भी शांति से बैठकर ये सोचा है की हमारे अंदर क्या चीज़ ऐसी है जो हमको दूसरों से अलग करती है शायद हमने अपने अन्दर यह पता लगाने का प्रयत्न कभी नहीं किया कि वहाँ कोई विचारक, कलाकार, नेता, समाज-सेवक, कोई बड़ा व्यापारी अथवा कोई महान व्यक्ति तो छिपा नहीं बैठा है? हाँ, हमने अवश्य ही इस बात को प्रमाद में लिया है। अन्यथा हम आज इस साधारण स्थिति में न पड़े होते। अवश्य ही अब तक हम समाज, सेवा, कला अथवा वाणिज्य के माध्यम से अपना महत्वपूर्ण स्थान बना कर मानव जीवन को काफी दूर तक सफलता की ओर बढ़ा चुके होते।

भला हम अपने भीतर छिपे विशिष्ट व्यक्ति को खोज भी कैसे सकते थे? क्योंकि हमारे घर परिवार ने प्रारम्भ से ही हमे कमाने.खाने और आने वाली पीढ़ियों के लिए जोडने की शिक्षा प्रारम्भ से ही दी है | यह कर्तव्य तो तभी पूरा हो सकता था जब हम उसके लिये कुछ समय देते। एकान्त में जाकर और दुनिया की सामान्य बातों से दूर होकर थोड़ी देर अपने को महत्वपूर्ण व्यक्ति समझ कर गम्भीरतापूर्वक विचार करते, और अपने से बार-बार यह प्रश्न करके उत्तर माँगते कि क्या मैं ऐसा ही साधारण एवं स्वार्थपूर्ण जीवन बिताने और महत्वहीन मौत मर कर दुनिया से चले जाने के लिये ही संसार में आया हूँ। क्या केवल इस कमाने खाने और मर जाने भर के लिये ही मैंने अपने जन्म एवं पालन-पोषण द्वारा माता का शारीरिक और पिता का आर्थिक रूप से जर्जर कर डाला है?

हमारे इन तीखे प्रश्नों को बार-बार सुन कर हमारे अन्दर का सोया हुआ विशिष्ट व्यक्ति अवश्य ही जाग कर यह उत्तर देता- ‘‘नहीं महाशय! ऐसा नहीं है, हम संसार में कुछ अच्छा, ऊँचा और कल्याणकारी काम करने के लिये ही आये हैं। आप मुझे अपने साथ लीजिए मेरे महत्व का मूल्याँकन एवं उपयोग कीजिए और देखिये कि हम समाज के एक महान् व्यक्ति बन सकते हैं।’’

सच मानिए ईश्वर संसार के प्रत्येक मनुष्य के भीतर कोई-न-कोई महान योग्यता का खजाना छुपा है। हमरे अन्दर भी है। यदि ऐसा न होता तो एक साधारण ही नहीं दीन-हीन मजदूर का एक अपढ़ पुत्र अब्राहमलिंकन संसार का महान व्यक्ति न हो पाता। एक साधारण जिल्द साज की नौकरी करने वाला लड़का माइकल फैराडे संसार का आश्चर्यजनक वैज्ञानिक न होता। साधारण वकील के स्तर से महात्मा गाँधी विश्व-बन्धु बापू न हो पाते और दो पैसे की रोटी पर जीवन चलाने वाले स्वामी रामतीर्थ अध्यात्म क्षेत्र के महारथी और एक कारखाने में छोटी-सी नौकरी करने वाला लड़का फोर्ड संसार का महानतम उद्योगपति एवं धनकुबेर न हो पाता।

मनुष्य जब अपने को कर्तव्य कर्मों की कमान पर चढ़ाता है, परिश्रम एवं पुरुषार्थ की आग में तपाता है तो उसके भीतर सोया पड़ा नेता, समाज सुधारक, लेखक, धर्मप्रचारक, वैज्ञानिक, कलाकार, सन्त अथवा उद्योगपति जाग कर ऊपर उभर आता है।

अपने भीतर सोये महापुरुष अथवा विशिष्ट व्यक्ति के लिये उद्बोधक कर्म न करके जो व्यक्ति प्रमाद, आलस्य, अविद्या अथवा अकर्मों में लगे रहते हैं, वे साधारण से अधिक सामान्य स्थिति में तो उतर सकते हैं किन्तु असाधारण स्थिति की ओर कदापि नहीं बढ़ सकते। विशिष्ट व्यक्तित्व के लिए जिन कठोर कर्मों तथा अखण्ड पुरुषार्थ की आवश्यकता है, उनकी पूर्ति भोग-विलास से भरी और ढीली-पोली जिन्दगी में नहीं की जा सकती। जिन महत्वाकांक्षियों को अपनी विशिष्टता में विश्वास और समाज में सम्मानपूर्ण स्थान की लगन होती है वे नियम संयम से आबद्ध एवं व्यवस्थित जीवन को स्वीकार कर परिश्रम के लिये दिन को दिन और रात को रात नहीं समझते। उन्हें धूप का ताप, शीत का कम्पन और वर्षा की बूँदें प्रभावित नहीं कर पातीं और न हीं कोई प्रलोभनपूर्ण अवरोधक हो पाता है |

स्वयं के प्रति हमारा दृष्टिकोण क्या है ये भी हमारी वृत्तियों पर व्यापक प्रभाव डालता है यदि हम स्वयं का सम्मान करते है नकारात्कता को त्याग कर ऊँची भावनाओं और लक्ष्यों का चयन करते है तो हमारे अंदर सुप्त पढ़ी भावनाएं भी जागृत हो उठती है और उसी प्रकार की प्रेरणा देकर हमे उसी दिशा की ओर अग्रसर करती है| यदि स्वयं के प्रति हमारा दृष्टिकोण सृजनात्मक है तो सच मानिए हमारी प्रुवृत्तियाँ वैसी ही होती जाती है और प्रबुद्ध होकर हमारी सहायता करने लगती है |

इसके विपरीत निराश व्यक्ति की नई शक्तियाँ जगाना तो दूर उल्टे उसकी जागरूक शक्तियाँ, कार्य क्षमतायें, आगे देख सकने की दृष्टि तथा परिस्थितियों का अध्ययन कर सकने वाली सूझ-बूझ तक समाप्त हो जाती है। ऐसे निराश व्यक्ति में न तो साहस शेष रहता है और न समाज में कोई व्यक्ति उसकी सहायता करने के लिये उत्साहित होता है। निराशा का अन्धकार आते ही मनुष्य को दुर्दैव का प्रकोप धर दबाता है फिर वो समाज के लिए घातक बनता चला जाता है |

यदि हम आशापूर्ण दृष्टिकोण से अपने अन्दर छुपे हुए विशिष्ट गुणों पर विश्वास लेकर आगे बढ़ते हैं तो हमारे सामने ऐसे मार्ग अपने आप खुलते चले जायेंगे, जिन पर चल कर अभीष्ट लक्ष्य तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। लक्ष्य सिद्धि का विश्वास और उसकी कठिनाई अथवा दूरी की अकल्पना मनुष्य के मार्ग को बहुत कुछ सुखद एवं सरल बना देती है। विश्वास से जिस मनोबल का जन्म होता है, उसमें बड़ी प्रेरक एवं सृजनात्मक शक्ति होती है, वह मनुष्य को भय, शंकाओं एवं सन्देहों से दूर रख कर उमंग एवं उत्साह से भरपूर बनाये रखती है।

ये मानकर चलिए हमारे अन्दर भी एक महापुरुष एक विशिष्ट व्यक्ति सोया पड़ा है। उसे वाँछित साधन एवं अध्यात्म द्वारा प्रबुद्ध कीजिये और समाज में अपना वह महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कीजिये, जो कहीं न कहीं पहले से ही आपके लिए सुरक्षित रखा है। आज हम जिन समस्याओं एवं  विषय-वासना की कीचड़ में पड़े हैं, जिस भोग-विलास अथवा दिखावे का जीवन अपनाये हुये हैं, उसे त्यागिये और अपने अनुरूप उच्च विचारधारा-उदात्त कार्यशैली का अवलंबन लेते हुए उन्नत जीवन-लक्ष्य चुनिये। केवल कमाने ,खाने और जोड़ने की धमाल चौकड़ी में हम अपने बहुमूल्य जीवन को कौड़ी मोल लुटा रहे हैं।

इसी जीवन का कुछ अंश यदि हम समाज सेवा, अध्ययन एवं परोपकार में लगा दें तो वह दिन दूर नहीं रहे जबकि समाज हमको अपने सर आँखों चढ़ा कर अपना मार्गदर्शक मान ले। उठिये और ऋषिकेश (श्री कृष्ण) की तरह आज ही शुभारम्भ का पाञ्चजन्य फूँककर कुप्रवृत्तियों की कौरवीय सेना को निरस्त कर डालिये।

 

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' लेखक, विचारक, लघुकथाकार एवं वरिष्ठ स्तम्भकार सम्पर्क:- 8824851984 सुन्दर नगर, कोटा (राज.)