बाल कविता

जिद्दी गुड़िया रानी

(सार ललित छ्न्द)

हठ कर बैठी गुड़िया रानी, चाँद मुझे दिलवा दो।
दादी बाबा नाना नानी, चाँद मुझे दिलवा दो।
छोड़ दिया है दाना पानी, चाँद मुझे दिलवा दो।
करती रहती आनाकानी,चाँद मुझे दिलवा दो।

चाँद गगन में दूर बहुत है, समझो गुड़िया रानी।
आते आते धरती पर हो,जाये सुबह सुहानी।
खाओ पहले एक चपाती, पीलो थोड़ा पानी।
नींद अभी भर लो आंखों में, करो नही मनमानी।

ममता की बाहों में घिरकर, सोई गुड़िया रानी।
सपन सलोने आये फिर तो,खोई गुड़िया रानी।
मिलने आये नील गगन से, चन्दा मामा प्यारे।
किन्तु शिकायत करती गुड़िया,लाए नही सितारे।

भूल गया मैं माफी दे दो, गुड़िया रानी प्यारी।
लेकर के मैं आऊँगा कल, तारों भरी सवारी।
बढ़ती जाती देख मांग को, चंदा भी घबराया।
नील गगन पर ही था अच्छा, क्यूँ सपने में आया।

रूठी मटकी बोली माँ से, गुड़िया सुबह सवेरे।
चन्दा झगड़ा करता अच्छे, खेल खिलौने मेरे।
भूल गयी थी अपनी जिद को, भूली सब मन मानी।
चहक रही थी घर आँगन में, अब तो गुड़िया रानी।

अनहद गुंजन 14/11/17

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*