उपन्यास अंश

इंसानियत – एक धर्म ( भाग – पैंतालिसवां )

नंदिनी की भीगी पलकें किसी से छिपी नहीं थीं । फिर भी बरामदे की सीढ़ियां चढ़ते हुए उसने बड़ी सफाई से पलकों पर छलक आये आंसुओं को साड़ी के पल्लू से पोंछ दिया था और फिर संयत स्वर में आगे कहना शुरू किया ” अमर की पोस्टिंग काश्मीर में हुई थी । सिमा पर आए दिन आतंकियों से होनेवाली मुठभेड़ों की खबरें दिल को दहला देतीं । और फिर एक दिन वह मनहूस खबर भी आ गयी जिसने हमारी पूरी दुनिया ही उजाड़ दी । एक ही पल में सब कुछ तहस नहस हो गया । ” बरामदे में ही बिछी कुर्सियों में से एक पर बैठती हुई नंदिनी ने मुनीर व बिरजू को सामने रखी कुर्सियों पर बैठने का ईशारा किया । मुनीर एक कुर्सी पर बैठ गया जबकि बिरजू खड़ा ही रहा । नंदिनी ने शून्य में कुछ घूरते हुए आगे कहना शुरू किया । उसकी आपबीती सुनते हुए मुनीर और बिरजू ऐसा महसूस कर रहे थे जैसे वो दोनों नंदिनी की आपबीती पर फिल्माई गयी कोई फ़िल्म देख रहे हों ।

रात गहरा गयी थी । बंगले के बाहर अंधेरे का साम्राज्य पसरा हुआ था । नंदिनी अपने कमरे में नन्हीं परी को थपकियाँ देकर सुलाने का प्रयास कर रही थी । कर्नल साहब अपने कमरे में टी वी पर नजरें गड़ाए बीच बीच में सिगार के कश लगा रहे थे । सीमापार से हुई हैवानियत के शिकार शहीद हेमराज की विधवा धर्मवती अपने देवर के साथ सरकारी रवैये से नाराज होकर भूख हड़ताल पर बैठी थी । उनके साथ ही शहीद हेमराज की माताजी भी थी । धर्मवती की हालत बिगड़ती जा रही थी । डॉक्टरों की एक टीम लगातार धर्मवती का चेक अप कर रही थी । गिरता रक्तचाप उनकी चिंता का विषय था । डॉक्टरों द्वारा लाख समझाने बुझाने पर भी वह अपना अनशन त्यागने को तैयार न थी । समाचार देखते देखते कर्नल साहब अचानक ही भावुक हो गए । सोफे से उठकर टी वी बंद करते हुए बड़बड़ाने लगे ” क्या जमाना आ गया है ? अब शहीद के परिजनों को भी इंसाफ नहीं मिल रहा है । उन्हें भी इंसाफ के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है । अनशन करना पड़ रहा है । कितना दुखद है , वह जिसका पति देश की रक्षा के लिए सिमा पर शहीद हुआ हो उसे अपना हक पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है । ” क्षुब्ध होकर खिन्न मन से डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ते हुए कर्नल साहब ने रामू को आवाज लगाई । उनका भोजन का समय हो गया था । रामु अपने काम के प्रति बड़ा ही मुस्तैद रहता था और कर्नल साहब की हर छोटी बड़ी जरूरतों का हमेशा ख्याल रखता था । डाइनिंग टेबल पर कर्नल साहब के बैठते ही रामु भोजन की थाली उनके सामने रख गया । कर्नल साहब ने भोजन का पहला कौर अभी उठाया ही था कि हॉल में रखी फोन की घंटी घनघना उठी । रामु दौड़कर हॉल में पहुंचा और वह सुंदर स्टाइलिश बेतार का फोन उठाकर कर्नल साहब के सामने रखते हुए फोन का रिसीवर कर्नल साहब को पकड़ा दिया । नैपकिन से हाथ पोंछते हुए रिसीवर थामकर कानों से लगाते हुए कर्नल साहब की रोबदार आवाज गूंजी ” यस ! कर्नल सत्यप्रकाश स्पीकिंग ! ”
दूसरी तरफ से आवाज आई ” जय हिंद कर्नल साहब ! मैं बटालियन 36 से ब्रिगेडियर जगदीश राणा बोल रहा हूँ । ”
” जय हिंद ब्रिगेडियर साहब ! कहिए कैसे याद किया ? ” किसी अनहोनी की आशंका से कर्नल साहब का दिल जोरों से धड़क उठा । फौज के किसी बड़े अधिकारी का फोन यूँ ही तो नहीं आता ।
” आपके लिए एक बुरी खबर है कर्नल साहब ! ” उधर से ब्रिगेडियर राणा की आवाज आई ।
अब तक कर्नल साहब खुद को संभावित खबर का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार कर चुके थे । पूर्ववत शांत लेकिन ठोस रोबीली आवाज एक बार फिर गूंज उठी ” ब्रिगेडियर साहब ! एक फौजी के लिए अपनी मातृभूमि पर किसी दुश्मन के पड़ते हुए पांव देखना ही सबसे दुखद होता है । इसके अलावा सभी खबरें हम फौजियों के जीवन का एक हिस्सा हैं । तुम बेहिचक कह दो क्या खबर है ? ”
कर्नल साहब के हिम्मत और जज्बे की भूरी प्रशंसा करते हुए ब्रिगेडियर राणा ने कहना जारी रखा ” कर्नल साहब ! अत्यंत दुःख के साथ आपको सूचित करना पड़ रहा है कि आपके सुपुत्र लेफ्टिनेंट कर्नल श्री अमर सिंह जी और हमारे दो और जवान दुश्मनों से दो दो हाथ करते हुए शहीद हो गए ……”
बस ! इसके आगे कर्नल साहब कुछ सुन नहीं सके । रिसीवर उनके हाथ से फिसल कर गिरने ही वाला था कि नजदीक ही खड़े रामु ने रिसीवर थाम लिया । माउथपीस से ब्रिगेडियर राणा की उन्हें सांत्वना प्रदान करने की कोशश करती आवाज अभी भी मध्यम स्वर में गूंज रही थी । एक ही पल में कर्नल साहब के चेहरे पर कई भाव आये और गए । लेकिन आश्चर्यजनक रूप से खुद को संयत करते हुए कर्नल साहब ने रिसीवर पुनः थाम लिया और बोले ” मातृभूमि की सेवा करते हुए शहीद होने का सौभाग्य बिरलों को ही मिलता है और हमें गर्व है अपने बेटे की शहादत पर ब्रिगेडियर साहब ! कृपया इसे दुःखद घटना कहकर मेरे बेटे की शहादत का अपमान न करें । जय हिंद ! ” कहकर कर्नल साहब ने फोन काट दिया ।
नजदीक ही खड़ा रामु सारा माजरा समझ गया था । कर्नल साहब ने रामु की तरफ देखा जो अंदर ही अंदर अपने आंसुओं को पीने की कोशिश कर रहा था और आंसू थे कि उससे विद्रोह करने पर आमादा थे । पलकों के किनारे तोड़कर छलक पड़ने को बेताब । कंधे पर रखे अंगोछे को मुंह में ठूंसते हुए रामु काका की आवाज भर्रा गयी थी । जबकि शांत व स्थिर मुखमुद्रा लिए हुए कर्नल साहब गजब के धैर्य का परिचय दे रहे थे । इससे पहले कि रामु की हिचकियाँ रुदन का स्वरूप लेतीं कर्नल साहब ने अपने होठों पर उंगली रखकर उसे खामोश रहने का संकेत किया और फिर ऊंची और रोबीली आवाज में बोले ” रामु ! यह भोजन की थाली उठा ले जाओ । आज बाजार में मोहन ने प्रेम से जबरदस्ती समोसे खिला दिए थे । अब ये कमबख्त सुंदर हलवाई के समोसे होते ही हैं इतने मजेदार कि बस खाते जाओ , खाते जाओ । अब ये और भोजन हमसे न खाया जाएगा । ”
कंधे पर रखे अंगोछे से छलक आये आंसुओं को पोंछते हुए रामु काका मेज पर रखी थाली उठाने के लिए आगे बढ़े । उनके बिल्कुल कान के यहां मुंह ले जाकर कर्नल साहब फुसफुसाए ” खबरदार ! अभी नंदिनी को कुछ पता नहीं चलना चाहिए । ”
” जी ! ” रामु काका धीरे से बुदबुदाए थे । वह भी यही चाहते थे कि अभी तुरंत ही बहू को यह दर्दनाक खबर देना मुनासिब नहीं है । उसकी तो पूरी दुनिया ही लूट चुकी है जितने भी पल सुख से बीत जाएं उतना ही उसके लिए बेहतर है फिर तो रोना है ही ।
तभी नंदिनी ने कमरे में प्रवेश किया । नन्हीं परी अपने कमरे में सो रही थी । कर्नल साहब की तेज आवाज सुनकर नंदिनी बड़ी तेजी से वहां आयी थी और रामु के हाथ में थमी थाली में पूरा भोजन ज्यों का त्यों रखा देखकर शिकायती लहजे में कहने लगी ” ये क्या बाबूजी ! आपने तो कुछ खाया ही नहीं । पूरी थाली तो वैसी ही भरी हुई है । आपकी तबियत तो ठीक है न ? ” मेरी तबियत बिल्कुल ठीक है बहू ! बस आज यूँही मुझसे खाया नहीं गया । दरअसल आज बाजार में बड़े दिनों बाद मेरा पुराना परिचित मोहन मिल गया था और उसके आग्रह पर हमने पेट भर समोसे खा लिए थे । अब भूख भला कैसे लगती ? ” कर्नल साहब ने साफ झूठ बोलने का प्रयास किया था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

4 thoughts on “इंसानियत – एक धर्म ( भाग – पैंतालिसवां )

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, हमेशा की तरह यह कड़ी भी बहुत सुंदर, रोचक व सटीक लगी, पूरी कड़ी बहुत खूबसूरत बन पड़ी है. आपने बहुत दिनों बाद इस कथा को आगे बढ़ाया है. कहानी में एक नया मोड़ आ गया है, साथ ही खूबसूरती और रोचकता कायम है. इतनी नायाब कड़ी के लिए बधाई व अभिनंदन. इंसानियत के प्रति जागरुक करने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.जन्मदिन पर कविताएं

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय बहनजी ! अति सुंदर सार्थक व सटीक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद !

  • विजय कुमार सिंघल

    मार्मिक कहानी। जिज्ञासा बढ़ रही है।

    • राजकुमार कांदु

      हार्दिक आभार आदरणीय !

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