लघुकथा

लहलहाती फसल

चुनाव के नतीजे देखते हुए नेताजी खुश हो गए । अपने सहायक को बुलाकर बोले ” अरे गुप्ताजी ! हमारी सरकार बनने जा रही है । मिठाइयाँ बंटवाना व पटाखे चलाकर जश्न मनाना शुरू कर दो । ”
” नेताजी ! अब तो हम चुनाव जीत ही गए हैं । अब इस फिजूलखर्ची की क्या जरूरत है ? ”
” अरे गुप्ताजी ! अब फिजूलखर्ची की क्या चिंता है ? फसल लहलहा रही है । बस पांच साल तक काटो और ……”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

2 thoughts on “लहलहाती फसल

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, आज के यथार्थ का मार्मिक चित्रण करने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.जन्मदिन पर कविताएं

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय बहनजी ! अति सुंदर , सार्थक व उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद !

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