लघुकथा

गर्म कपड़े

दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद बेघर किशन रैनबसेरे में सोने का प्रयास कर रहा था । शीतलहर का प्रकोप अपने चरम पर था । रैनबसेरे के सामने जल रहा नाममात्र का लकड़ी विहीन सरकारी अलाव भी ठंड के आगे समर्पण कर ठंडा हो चुका था । कड़कड़ाती ठंड के आगे किशन की नींद भी गायब हो चुकी थी । नींद की तलाश में किशन ने सिरहाने रखा अखबार खंगालना शुरू किया । अखबार के पहले ही पन्ने पर खबर थी ‘ विश्व हिंदू परिषद ने श्री राम लला की मूर्तियों को ठंड से बचाने के लिए सरकार से गरम कपड़ों व हीटर के प्रबंध की गुहार की । ‘

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

2 thoughts on “गर्म कपड़े

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय बहनजी ! सुंदर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार !

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, वाह क्या बात है! ऐसा ही होता भी है. आज के यथार्थ का मार्मिक चित्रण करने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.जन्मदिन पर कविताएं

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