कविता

नव वर्ष की छटा

नव वर्ष की छटा निराली हो
हर ओर बिखरती लाली हो
संकल्प रहे जनमानस का
बसुधा हर किसी की आली हो–!
मनुहार निराले हो जाए
गुबार भी सारे धुल जाए
मन उजला दर्पण हो जाए
मुस्कान समर्पण वाली हो–!
हो जाए सभ्यता फिर जीवित
कलियों का सभ्य परिधान रहे
टूटेगी नही डाली से कली
हर भँवरा बाग का माली हो–!
न प्रेम हो गठबन्धन जैसा
न झूठ लगे चन्दन जैसा
डेरा झूठा कहलाए भले
पर सच से न दामन खाली हो–!
रस प्रेम में, है मदहोशी बड़ी
कद छोटा रख पर सोच बड़ी
कलकल नदियाँ बहती हो भले
पर आँस की आस निराली हो–!!
आगमन रहे नव दुल्हन सा
सिंगार रहे परिवर्तन सा
सूरज का ताप सहे धरती
नव वर्ष दीवाली होली हो—!!
नीरू ‘निराली’, कानपुर

नीरू श्रीवास्तव

शिक्षा-एम.ए.हिन्दी साहित्य,माॅस कम्यूनिकेशन डिप्लोमा साहित्यिक परिचय-स्वतन्त्र टिप्पणीकार,राज एक्सप्रेस समाचार पत्र भोपाल में प्रकाशित सम्पादकीय पृष्ट में प्रकाशित लेख,अग्रज्ञान समाचार पत्र,ज्ञान सबेरा समाचार पत्र शाॅहजहाॅपुर,इडियाॅ फास्ट न्यूज,हिनदुस्तान दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित कविताये एवं लेख। 9ए/8 विजय नगर कानपुर - 208005