गीत/नवगीत

मौन में भी तरन्नुम होता है

कुछ दिनों से
रेडियो सुनने का
मन नहीं करता
लगने लगा है कि
टेलिविज़न में भी
कोई ढंग का
कार्यक्रम नहीं आता
इसलिए मौन को
अपना साथी बनाया है
सच पूछो तो इसी मौन ने
जादू जगाया है
पहली बार लगा कि
मौन का पल भी विशेष होता है
मौन में भी तरन्नुम होता है.
पोतों को
“चिड़िया-चिड़िया उड़ती जा,
चिड़िया-चिड़िया गाती जा.”
सिखाते-सिखाते
चिड़ियों की चहचहाहट में भी
लगता है
इसी गीत का गुंजन होता है
मौन में भी तरन्नुम होता है.
चलते-चलते
एक पुराना गीत सुना था
“मिल गए, मिल गए आज मेरे सजन,
आज मेरे नहीं हैं ज़मीं पे कदम.”
कुछ गीत में रवानी थी
कुछ मौसम में जवानी थी
अधरों पर इसी गीत की
गुनगुनाहट थी
बरसों से संगीत की
एक जैसी ही धुन में
काम करते हुए
वाटर फिल्टर की
मधुर झनझनाहट में
लगता है
इसी गीत का गुंजन होता है
मौन में भी तरन्नुम होता है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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