कविता

अपनी छोड़…

कभी अपनी छोड़
दूसरों की सुन लेना,
कभी खुदको परे रख
दूसरों के अंदर झांकना,
कभी पोंछ अपने आँसू
दूसरों को खुशी देना,
कभी खोखले ढ़कोसलों से बाहर निकल
कभी अपनी…
कभी दूसरों की सुध लेना…
कभी कटे पेड़ की जगह
एक दूसरा पौधा लगाना
समय निकाल उसे रोज सींचना
पल-पल /क्षण-क्षण
बढ़ता पौधा
उम्मीद किरण जगायेगा
बर्षा…गर्मी…ओला… पाला
सहकर भी वो
बढ़ता जायेगा
गर उससे सीख तू ले पायेगा
तेरा जीवन भी मुस्कायेगा…
ज्योति साह

ज्योति साह

हिंदी प्राध्यापिका रामगढ़,झारखंड 829117 मो.8210766836