कविता

प्रेम….

प्रेम जब अपने चरम पर आकर ठहरता है,
तो इंसान बदला- बदला- सा नजर आता है॥

अंतस का कोना- कोना, प्रेम संतृप्तता से भरा होता है,
वक्त का हर एक लम्हा, खुशनुमा एहसास होता है॥

झील सी सुंदरता, नजरों के आईने में उतर आती है,
हर तरफ जिंदगी, चटक रंगों से सजी नजर आती है॥

उठती है लहरें सीने में, अरमानों को मकाम देती हैं,
जज्बातों के आलिंगन में, तमाम दूरियां मिट जाती हैं॥

प्रेमसिक्त एहसासों में, अंगड़ाई लेते-लेते, यह पोषित होता है,
उत्तेजनाओं की होती है बारिशें, तनमन को भिगो जाती है॥

चारों दिशाओं की हलचल, आहट तक शांत पड़ जाती है,
बस शीतल हवाएं मन को ठंडक पहुंचाने को… बहती हैं॥

प्रेम जब अपने चरम पर आकर ठहरता है,
तो इंसान बदला- बदला – सा नजर आता है॥

*बबली सिन्हा

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